निम्न बोध कथा भी उदारता की एक बेमिसाल कहानी है- एक सम्पन्न व्यक्ति बहुत ही उदार थे। वे किसी भी दीन-दु:खी को निराश नहीं लौटाते थे लेकिन उन्हें अपनी उदारता पर गर्व था। उनका मानना था कि उनके समान कोई अन्य व्यक्ति उदार नहीं है। एक बार वे घूमते हुए एक खजूर के बगीचे में पहुंचे। उसी समय उस बाग की रखवाले के लिये उसके घर से एक लडक़ा रोटियाँ लेकर आया। लडक़ा रोटियां देकर चला गया। रखवाले ने हाथ धोये और रोटियाँ खोली। इतने में वहां एक कुत्ता आ गया। रखवाले ने अपने घर से आयी रोटियों में से एक रोटी उस कुत्ते को दे दी। कुत्ता बहुत दिनों से भूखा था, उसे भयंकर भूख सता रही थी, सो वह मिली हुए एक रोटी को झटपट खा गया और फिर अतिरिक्त रोटी की उम्मीद में पूंछ हिलाते हुए रखवाले की ओर देखने लगा। इस पर रखवाले ने करुणावश उसे दूसरी रोटी भी दे दी। पास में खड़े धनी सज्जन यह सब देख रहे थे। रखवाले के पास आकर उन्होंने रखवाले से पूछा- तुम्हारे लिये कितनी रोटियां आती हैं? रखवाले ने कहा- श्रीमान् मेरे लिये केवल दो ही रोटी आती हैं। इसके बाद धनी व्यक्ति बोला- फिर भी तुमने दोनों रोटियां कुत्ते को क्यों दे दी? अब रखवाले ने स्पष्ट करते हुए कहा- श्रीमान्, आप बड़े विचित्र आदमी हैं। यहां कोई कुत्ता पहले से नहीं था, यह कुत्ता पहले यहां कभी आया नहीं। यह भूखा कुत्ता यहां ठीक उसी समय आया, जब मेरे लिये रोटियां आई। मुझे यह लगा कि आज ये रोटियां इस कुत्ते के प्रारब्ध से आई हैं। अत: जिसकी वस्तु थी, वह मैंने उसे दे दी। इसमें मैंने कोई विचित्रता नहीं की और एक दिन भूखे रहने से मुझे कोई हानि भी नहीं होगी। रखवाले का जवाब सुनकर धनी मनुष्य स्तब्ध रह गया और उसका सिर रखवाले के सम्मान में झुक गया। इतना ही नहीं बल्कि धनी को अपनी उदारता का जो अभिमान था, वह भी तुरंत चूर-चूर हो गया।