श्रीराम के उपरोक्त पत्र का संदेश देवताओं को सुनाकर देवराज इन्द्र सबके साथ परामर्श करके शीघ्र ही कल्पवृक्ष और पारिजात वृक्ष लेकर सभी देवताओं के साथ, विमान में आरुढ़ होकर श्रीराम की नगरी अयोध्या में पहुंचे और श्रीराम को प्रणाम कर, इन्द्र ने कल्पवृक्ष और पारिजात वृक्ष उन्हें समर्पित कर दिये। मुनि दुर्वासा स्नान करके, अपने शिष्यों सहित श्रीराम के भवन में आये, श्रीराम ने दुर्वासा मुनि को प्रणाम किया तथा अन्य गणों का स्वागत किया। तत्पश्चात् श्रीराम ने मुनि को, भगवान शिव की पूजा करने के लिये पारिजात वृक्ष के पुष्प प्रदान किये, जिनसे दुर्वासा मुनि ने भगवान शिव की पूजा अर्चना की। सीता मां ने कल्पवृक्ष तथा पारिजात वृक्षों का पूजन किया और कल्पवृक्ष के नीचे पाक-पात्रों को स्थापित किया, फिर वृषोत्तम कल्पवृक्ष को प्रार्थना करते हुए कहा- हे, कल्पवृक्ष आप क्षीर सागर से उत्पन्न हैं और देवताओं को उनके मनोरथ को प्रदान करने वाले हैं। अत: आज आप मुनि दुर्वासा एवं उनके शिषयों को भोजन से संतुष्ट कीजिये।