वैश्विक मंच पर अमेरिका और चीन टैरिफ युद्ध की नई मिसाइलें दागते रहते हैं और इसका असर कच्चे तेल की कीमतों पर पड़ रहा है। वर्तमान में लोग कच्चे तेल की दलाली में हाथ काले कर रहे हैं। जो लोग लंबे समय से इस व्यवसाय से जुड़े हैं, उन्हें कोविड-19 काल के दौरान आई मंदी याद होगी, जब कच्चे तेल का वायदा नकारात्मक कीमतों पर बंद हुआ था। लेकिन जो लोग इस खेल में नए हैं, उन्हें पिछले एक सप्ताह में बहुत बुरा अनुभव हुआ है। हालांकि, अगर कोई कच्चे तेल के कारोबार में स्वर्णिम अध्याय लिखना चाहता है तो उसे बुरे अनुभव से गुजरना होगा। अकेले पिछले सप्ताह में, कच्चे तेल के वैश्विक बेंचमार्क ब्रेंट क्रूड ऑयल की कीमत में 10 डॉलर प्रति बैरल की गिरावट आई है। आंकड़ों पर नजर डालें तो एक साल पहले यानी 5 अप्रैल 2024 को वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट (ङ्खञ्जढ्ढ) कच्चे तेल की कीमत 86.91 डॉलर प्रति बैरल थी। जबकि 2 अप्रैल 2025 को यह 72 डॉलर प्रति बैरल था। लेकिन 4 अप्रैल 2025 को यह गिरकर 62 डॉलर प्रति बैरल पर आ गयी हैं। इसी तरह ब्रेंट क्रूड ऑयल की कीमत जो एक साल पहले 91.17 डॉलर थी, वह 2 अप्रैल 2025 को 75 डॉलर और 4 अप्रैल 2025 को और गिरकर 65.50 डॉलर हो गयी हैं। कच्चे तेल की कीमतों में यह अचानक गिरावट कोविड-19 के बाद सबसे बड़ी गिरावट है। वर्तमान में कच्चे तेल की कीमतें चार वर्ष के निम्नतम स्तर पर पहुंच गयी हैं। चीन द्वारा अमेरिका के विरुद्ध हाल ही में छेड़ा गया टैरिफ युद्ध कच्चे तेल की कीमतों में मौजूदा गिरावट के लिए जिम्मेदार है। चीन ने अचानक घोषणा की है कि वह 10 अप्रैल से अमेरिका से आने वाले सभी सामानों पर अतिरिक्त 34 प्रतिशत टैरिफ लगाएगा। वैश्विक निवेशकों को अब वैश्विक मंदी का डर सता रहा है। ओपेक देशों ने घोषणा की है कि अगले मई से ओपेक देशों की कच्चे तेल की आपूर्ति मौजूदा आपूर्ति से तीन गुना बढ़ जाएगी। पहले ओपेक देशों का कच्चे तेल का उत्पादन औसतन 135,000 बैरल प्रतिदिन था, जो अब बढक़र 411,000 बैरल हो जाएगा। अतीत में अक्सर देखा गया है कि ओपेक देश गिरती कीमतों के बीच अमेरिका जैसे प्रतिद्वंद्वियों को मात देने के लिए पूर्व घोषित आंकड़ों से अधिक उत्पादन करते हैं। अगर इस बार भी ऐसा ही कुछ हुआ तो कच्चा तेल पानी के भाव बिकेगा। निवेश बैंक जे.पी. मॉर्गन की रिपोर्ट कहती है कि इस वर्ष के अंत तक वैश्विक मंदी की संभावना पहले के 40 पर्सेंट से बढक़र अब 60 पर्सेंट हो गई है। जब कच्चे तेल की कीमतों में अप्रत्याशित गिरावट आती है, तो न केवल कच्चे तेल के व्यापारियों और वायदा कारोबारियों को नुकसान होता है, बल्कि भारत की तेल कंपनियों के शेयरधारकों को भी नुकसान होता है। इस बार भी यही हुआ है। एक सप्ताह में भारत की ओएनजीसी और इंडियन ऑयल के शेयर मूल्यों में छह से सात प्रतिशत की गिरावट देखी गई। हालांकि, पिछले छह महीनों में इन दोनों कंपनियों के शेयर की कीमतों में 25 से 35 प्रतिशत की गिरावट आई है। वैश्विक कंपनी फॉरेक्स डॉट कॉम के विशेषज्ञों का कहना है कि जब कच्चे तेल की कीमतें अचानक गिरती हैं, तो रिफाइनिंग कंपनियां नए मूल्य से कम कीमत पर रिफाइंड तेल बेचती हैं, जिससे कंपनी के मुनाफे में गिरावट आती है, क्योंकि कंपनी पुराने मूल्य पर कच्चा तेल खरीदती है। जब कच्चे तेल की कीमतें गिरती हैं तो निवेशकों और कंपनियों को नुकसान हो सकता है, लेकिन भारत सरकार के खजाने को बड़ा फायदा होता है। एक अनुमान के मुताबिक, यदि वैश्विक बाजार में कच्चे तेल की कीमत में एक डॉलर प्रति बैरल की कमी आती है तो देश के खजाने को 13,000 करोड़ रुपये का फायदा होगा। भारत वर्तमान में अपनी खपत का 87 से 88 पर्सेंट कच्चा तेल आयात करता है। क्या कच्चे तेल की कीमतों में हालिया गिरावट मंदी की शुरुआत है? क्या यह कीमत 50 डॉलर तक जा सकती है? यहां तक कि ट्रम्प के पास भी इस प्रश्न का उत्तर नहीं है। इसलिए, कच्चा तेल इस समय फिसलन भरी ढलान पर है। हर किसी को यह बात ध्यान में रखकर चलना होगा।