आमतौर पर जब भी किसी इंडस्ट्री के सामने चुनौतीपूर्ण स्थितियां पैदा होती हैं तो उसे सरकार से मदद की गुहार लगाते देखा जाता है। ऐसी ही स्थिति वर्तमान में कार इंडस्ट्री की हो गई है। पर यहां फर्क यह है कि इस बार पूरी कार इंडस्ट्री नहीं बल्कि केवल देश की सबसे बड़ी कार कंपनी मारुति सुजुकी को स्मॉल कारों के अपने सिमटते बाजार को देखते हुए सरकार की ‘याद’ आने लगी है। कंपनी के मार्केटिंग व सेल्स के सीनियर एक्जेक्टिव ऑफिसर पार्थो बनर्जी के अनुसार नए रेगुलेशंस के चलते स्मॉल कारों की प्राइस काफी बढ़ी हैं। सरकार को यह समझना होगा कि अगर ऑटोमोबाइल सेक्टर की ग्रोथ चाहिए, तो स्मॉल कार सैगमेंट के लिए इंसेंटिव जरूरी हैं, ताकि टू-व्हीलर्स से 4-व्हीलर्स में अपग्रेड करने वाले ग्राहकों को मदद मिल सके। एक दौर था जब भारत की पहचान स्मॉल कार कैपिटल ऑफ द वल्र्ड के रूप में थी। लेकिन अब अपने ही गढ़ में स्मॉल कार की सेल्स बेसुध है और मारुति सुजुकी ने सरकार ने इनकी सेल्स को पटरी पर लाने के लिए इंसेंटिव देने की मांग की है। सेफ्टी और एमिशन सहित कई नए रेगुलेशन के लागू हो जाने के कारण स्मॉल कार साइज में स्मॉल रह जाने के बावजूद प्राइस में बिग हो गई है। एंट्री-लेवल कारों की डिमांड में तो भारी गिरावट आई है। आमतौर पर एंट्री लेवल कारें टू-व्हीलर से कार में अपग्रेड करने वालों के लिए पहला स्टेपिंग स्टोन होता है। लेकिन प्राइस बढ़ जाने के कारण ये अनअफोर्डेबल हो गई हैं जिससे अब ये टू-व्हीलर वालों की एंट्री या कहें तो फस्र्ट कार की डेफिनेशन में फिट नहीं हो पा रही हैं। मारुति के मुताबिक 5 लाख से कम कीमत वाली एंट्री-लेवल कारों की सेल्स वित्त वर्ष16 में 9.34 लाख यूनिट्स की थी जो घटकर वित्त वर्ष 25 में केवल 25,402 यूनिट रह गई हैं। मारुति सुजुकी की स्मॉल कारों की स्थिति देखें तो एल्टो की सेल्स 2019-20 में 1.90 लाख यूनिट्स थी जो 2024-25 में मात्र 1.02 लाख यूनिट्स रह गई है। इसी तरह सेलेरियो की सेल्स इस दौरान 62625 यूनिट्स से घटकर 33060 व एस-प्रेसो की सेल्स 56962 यूनिट्स से घटकर 23638 यूनिट्स रह गई।
