FOMO का मतलब Fear of Missing Out और FOGI का मतलब है Fear of Getting IN! शेयर बाजारो में आज का माहौल ऐसा बन गया है कि इंवेस्टर FOGI से ग्रसित हो रहे हैं यानि बाजारों में इंवेस्ट करने में डर का माहौल ज्यादा हावी होता जा रहा है जिससे कुछ साल पहले जो इंवेस्टर FOMO यानि इस डर से इंवेस्ट करते थे कि बाजारों में पैसा डालने का मौका हाथ से न निकल जाए वे अब बाजारों में पैसा डालने में घबराहट महसूस कर रहे हैं। यह शेयर बाजारों की ऐसी पावर कही जा सकती है जिसमें ज्यादातर इंवेस्टर ऊंचे लेवल पर एंट्री लेते हैं और मार्केट की गिरावट में नुकसान झेलते हैं, जिसके बाद वापस मार्केट में इंवेस्ट करने की हिम्मत जुटाना मुश्किल हो जाता है। अमेरिका द्वारा लगाए गए टैरिफ के बीच बाजारो में आई भारी गिरावट ने कई इंवेस्टरों को चोट पहुंचाई जिन्हें भारत की ग्रोथ की कहानी पर तो पूरा भरोसा था, लेकिन अमेरिका से आने वाली टैरिफ की आंधी इतनी हलचल मचा देगी इसका अंदाजा नहीं था। इससे पहले ही बाजार कई अन्य कारणों से सितंबर 2024 से ही गिरावट की गिरफ्त में क्यो आ चुके थे, इस बात को ज्यादातर इंवेस्टर FOMO करते हुए गिरावट में भी इंवेस्ट करते रहे क्योंकि वे FOMO की भावना से ग्रसित थे। FOGI नई पीढ़ी के इंवेस्टरों की परेशानी ही नहीं है, बल्कि बाजार के पुराने मंझे हुए खिलाड़ी भी इससे जूझ रहे हैं, क्योंकि उन्हें कब और कितना इंवेस्ट करना है इस गणित को समझने में मुश्किल हो रही है। एक इंवेस्टर ने बताया कि बाजारों के Cycle को समझकर अपने इंवेस्टमेंट को मैनेज करने के लिए लंबा समय चाहिए जिसे वर्ष 2020 के बाद बाजारों से जुड़े इंवेस्टर नहीं समझते इसलिए इंवेस्टरों के लिए जरूरी है कि वे धीरज से काम करें व कभी भी स्नह्वद्यद्य4 ढ्ढठ्ठ1द्गह्यह्लद्गस्र (पूरे पैसो का इंवेस्टमेंट) न रहे क्योंकि बाजार किसी को बताकर मौके नहीं देता बल्कि ऐसे मौकों के लिए इंतजार करना पड़ता है व उस समय तैयार भी रहना पड़ता है।
अधिकतर इंवेस्टर दूसरों की कहानियां सुनकर उनकी जैसे सही समय पर इंवेस्ट न कर पाने के लिए पछताते रहते हैं। सच्चाई यह है कि बाजारों की चाल को पकडऩे की काबिलियत रखने वाले लोग बहुत कम होते हैं और ऐसे लोग लंबे समय तक बाजारों में बने रहते हैं जो हर तेजी मंदी के ष्ट4ष्द्यद्ग को धीरज के साथ बिना ज्यादा खरीद-बेच किए निकालने की पावर रखते हैं। बाजारों में वापस इंवेस्ट करने से डरना एक तरह से ष्टशठ्ठद्घह्वह्यद्ग दिमाग के काम जैसा है, क्योंकि कोई कितनी भी होशियारी दिखाए लेकिन खरीदने के बाद बाजार गिर जाए या बेचने के बाद बाजार तेज हो जाए, तो दोनों ही स्थितियों में इंवेस्टर खुद को ही बेवकूफ ठहराने लगता है। हाल ही में बाजारों में आई मंदी का खौफ व डर इंवेस्टरों के दिमाग में ताजा है, जिसके सामने मंदी से पहले जिस तेजी के बने रहने पर भरोसा था, वह भी टूटने लगा है। इंसान नेचुरल रूप से ऐसा सोचने लगता है कि उसके पहले लगाए गए अनुमान (क्कह्म्द्गस्रद्बष्ह्लद्बशठ्ठ) ज्यादा सही थे भले ही वे गलत साबित हुए हो और शायद इंसान के इसी नेचुरल बिहेवियर से बाजार खेलते हैं, जिसे रोजाना खरीद-बेच का मजा लूटने वाले समझ नहीं पाते और समय के साथ खोने की क्षमता को बढ़ाते रहते हैं। हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि चाहे कोविड संकट आया हो या राष्ट्रपति ट्रम्प ने टैरिफ वार छेड़ा हो पर हर खराब स्थिति में लोग, कंपनियां, सरकारें, बाजार व दुनिया कितनी जल्दी संभलकर खुद को उनके परिणामों के लिए तैयार कर लेती है व उन स्थितियों में काम करते हुए कैसे आगे बढ़ा जाए इसका रास्ता ढूंढ लेती है। अगर कोई कम समय में खुद के गलत साबित होने के कारण बाजारों से दूरी बनाकर इंवेस्ट करने से डर रहा है तो उसके लिए यह समझना जरूरी है कि ऐसी स्थितियां आने की संख्या बहुत कम रहती है और इनसे घबराकर तुरंत एक्शन लेने वाला कभी भी शेयर बाजारों से नहीं कमा सकता। इकोनॉमी, सेक्टर या कंपनी लंबे समय में कैसा प्रदर्शन करेगी या कर सकती है इस एक सवाल को अच्छी तरह समझने में अगर रोजाना खरीद-बेच करने या गिरावट में खरीदने और तेजी के पीक पर बेचने की ञ्जद्बद्वद्बठ्ठद्द को पकडऩे से ज्यादा समय लगाया जाए तो बाजारों से Reward (इनाम) मिलने की संभावना डवलप होती है, ऐसा इतिहास भी बताता है, इसलिए FOMO और FOGI से बचकर चलने की पावर डवलप करना बाजारों में कमाई के साथ बने रहने के लिए महत्वपूर्ण कहा जा सकता है।