एक बड़ी डाइकोटॉमी है जो कोविड के बाद से ही जड़ जमा रही है। डाइकोटॉमी यानी विरोधाभास...। जापान को पछाड़ भारत ...फोर्थ लार्जेस्ट इकोनॉमी बन गया है। दूसरी ओर देश में पर कैपिटा जीडीपी अभी 2900 डॉलर भी नहीं है। इकोनॉमिस्ट्स, एक्टिविस्ट्स और थिंकटैंक्स का एक गुट ऐसा है जो कह रहा है अमीर और गरीब के बीच की खाई चौफाड़ हो रही है। दूसरी ओर तथ्य यह भी है जब दुनियाभर के देश ग्रोथ के क्राइसिस में है तब भी भारत कम से कम बढ़ तो रहा है। अपनी 145 करोड़ आबादी की एस्पिरेशन्स को हवा दे रहा है। देश में केवल 6 करोड़ लोग ऐसे हैं जो महीने में 10 हजार डॉलर यानी 8.5 लाख रुपये कमा पा रहे हैं। वहीं 11.2 करोड़ लोग 5 से 10 हजार डॉलर के बीच अटके हुए हैं। लेकिन गोल्ड लोन से लेकर पर्सनल लोन तक बेतहाशा ऐसे अनसिक्यॉर्ड लोन हैं जो एनपीए हो रहे हैं। इसका सीधा अर्थ है कि मिडल और लोअर मिडल क्लास पर अपनी लाइफस्टाइल को बनाए रखने का प्रेशर बढ़ रहा है। एक रिपोर्ट कहती है कि ऐसे अनसिक्यॉर्ड लोन बहुत तेजी से बढ़ रहे हैं जिन्हें असैट बनाने के लिए नहीं बल्कि घर चलाने के लिए लिया जा रहा है। है ना डाइकोटॉमी। आरबीआई ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि पिछले वित्त वर्ष में बैंकों विशेष रूप से प्राइवेट बैंक्स ने बहुत आक्रामक तरीके के एनपीए हो रहे अनसिक्यॉर्ड लोन अकाउंट्स को राइटऑफ किया है। देश के सबसे बड़े बैंक एसबीआई वित्त वर्ष25 में 26,542 करोड़ रुपये के लोन राइट-ऑफ किये जबकि वित्त वर्ष 24 में यह आंकड़ा केवल 17,645 करोड़ रुपये ही था। यानी एक ही साल में राइट ऑफ किए गए अनसिक्यॉर्ड लोन करीब डेढ़ गुना हो गए। आईसीआईसीआई बैंक ने वित्त वर्ष 25 में 9,271 करोड़ रुपये के लोन राइट-ऑफ किए जो वित्त वर्ष 24 में 6,091 करोड़ रुपये के ही थे। इस दौरान एक्सिस बैंक के राइट ऑफ 8865 करोड़ रुपये से बढक़र 11,833 करोड़ रुपये हो गए। रिपोर्ट में कहा गया है कि यही ट्रेंड मिड और स्मॉल साइज बैंकों में भी दिखाई दे रहा है। हालांकि पीएसयू बैंकों की इस मामले में परफॉर्मेंन्स बेहतर रही। एसबीआई के चेयरमैन सीएस सेट्टी ने कहा राइट-ऑफ मुख्य रूप से स्मॉल लोन के लिए किए जाते हैं। जब भी प्रोविजनिंग का कवरेज 100 परसेंट तक पहुंच जाता है उन्हें बुक्स से हटा दिया जाता है और रिकवरी की प्रॉसेस शुरू कर दी जाती है। दूसरी ओर एक्सिस बैंक के सीएफओ पुनीत शर्मा ने कहा राइटऑफ में कोई विवेकाधिकार की भूमिका नहीं होती है। एसोसिएशन ऑफ एआरसीज इन इंडिया के सीईओ हरीहर मिश्रा के अनुसार संसद में दिए गए एक उत्तर के अनुसार पिछले तीन वर्ष में राइट-ऑफ खातों में औसत 20 परसेंट की रिकवरी हुई है। हालांकि रिटेल लोन में रिकवरी रेट बहुत कम होती है। रिपोर्ट के अनुसार बैंक लोन की ग्रोथ रेट जो पिछले पांच वर्ष के दौरान 15.3 परसेंट थी वो वित्त वर्ष 2024-25 में घटकर 11.1 परसेंट पर आ गई है।
गांव बने लोन के गढ़
आरबीआई की रिपोर्ट से पता चला है कि पिछले पांच साल के दौरान बैंक की मेट्रो ब्रांच की लोन में हिस्सेदारी 63.5 परसेंट से कम होकर 58.7 परसेंट रह गई है। वहीं लोन देने के मामले में गांव और कस्बे की बैंक ब्रांच की परफॉर्मेन्स बहुत अच्छी रही है। हालांकि लोन के मामले में भले ही मेट्रो ब्रांच पीछे छूट गई हों लेकिन इनकी डिपॉजिट्स में 11.7 परसेंट का इजाफा हुआ है जबकि रूरल ब्रांच में 10.1 परसेंट और सेमी अर्बन ब्रांच में 8.9 परसेंट जबकि अर्बन ब्रांच में डिपॉजिट 9.3 परसेंट बढ़ी। पांच साल पहले जहां डिपॉजिट ग्रोथ रेट 13 परसेंट थी वो अब घटकर 10.6 परसेंट पर आ गई है।
