दक्षिण कोरिया के टेक दिग्गजों एलजी और सैमसंग ने ई-वेस्ट पर रीसाइकलिंग चार्ज बढ़ा देने को लेकर भारत सरकार पर मुकदमा दायर किया है। इनका मानना है कि रीसाइकलिंग चार्ज बढ़ा देने से लागत बहुत बढ़ा जाएगी जो व्यावहारिक नहीं होगी। एलजी और सैमसंग के साथ ही अन्य कंपनियां भी कानूनी कार्यवाही कर रही हैं। माना जा रहा है देश की इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्युफैक्चरिंग के लिए बड़़ा महत्वाकांक्षी टार्गेट लेकर चल रहे प्रधानमंत्री मोदी की सरकार के लिए यह बहुत बड़ी चुनौती है। एनेलिस्ट कहते हैं कि इससे सरकार और कंपनियों के बीच गतिरोध बढ़ेगा और भरोसे की कमी के कारण इंवेस्टमेंट पर असर पड़ सकता है। चीन और अमेरिका के बाद भारत तीसरा सबसे बड़ा ई-वेस्ट उत्पादक है। लेकिन सरकार का कहना है कि पिछले साल देश के ई-कचरे का केवल 43 परसेंट ही रीसाइकल किया गया और इसमें भी 80 परसेंट स्क्रैप डीलरों का योगदान है। दाइकिन, हैवेल्स और टाटा की वोल्टास पहले ही मोदी सरकार पर मुकदमा कर चुकी हैं। सैमसंग और एलजी ने रीसाइकलरों को मिनिमम पेमेंट की दर तय करने के सरकार के फैसले का विरोध किया है। भारत सरकार का कहना है कि ई-वेस्ट को रीसाइकल करने में नए ऑर्गेनाइज्ड प्लेयर लाने की जरूरत है। जब तक मिनिमम रेट को बढ़ाया नहीं जाएगा बड़े प्लेयर इंवेस्टमेंट नहीं करेंगे। एलजी और सैमसंग आदि कंपनियों का कहना है प्राइस फिक्स कर देने से कंपनियों की कॉस्ट बढ़ती है और पॉल्यूटर से ही वसूली करने से ई-वेस्ट की रीसाइकलिंग को बढ़ाया नहीं जा सकता। इन कंपनियों का यह भी कहना है कि यदि सरकार अनऑर्गेनाइज्ड स्क्रैप डीलरों को नियमों के दायरे में नहीं ला पा रहे हैं तो यह सरकार की विफलता है। प्राइस रेगुलेट करने से पर्यावरण संरक्षण के उद्देश्यों को पूरा नहीं किया जा सकता। भारत के नए नियमों में कंज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनियों को रीसाइकल करने के लिए प्रति किलोग्राम न्यूनतम 22 रुपये का का भुगतान अनिवार्य कर दिया गया है। इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनियों का कहना है कि इससे उनकी लागत लगभग तीन गुना हो जाएगी और रीसाइकलर को फायदा होगा। रिसर्च फर्म रेडसीयर की रिपोर्ट कहती है कि अमेरिका में रीसाइकलिंग की रेट्स भारत से पांच गुना ज्यादा हैं और चीन में डेढ़ गुना।