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Daily Business Newspaper | A Knowledge Powerhouse in Hindi

03-05-2025

फ्री में सैलेरी मिले तो भी काम करना नहीं छोड़ते जर्मन

  •  वर्ष 2019 के चुनाव के दौरान भारत में राहुल गांधी की कांग्रेस पार्टी ने यूविर्सल बेसिक इनकम देने का वायदा किया था। हालांकि इतने बड़े वादे के बावजूद राहुल गांधी चुनाव तो नहीं जीत पाए लेकिन हाल ही जर्मनी में यूनिवर्सल बेसिक इनकम के फील्ड ट्रायल किए गए जिसके नतीजे बड़े रोचक आए। बिना कुछ किए अगर जीवन चलाने भर का पैसा मिल जाए तो भी जर्मनी के लोग काम करना ना तो छोड़ते  और ना ही काम करने में कंजूसी करते हैं। हां ये जरूर है कि उनकी मानसिक स्थिति दूसरों से बेहतर हो जाती है। जर्मनी में हाल ही में हुई एक रिसर्च के बाद जो नतीजे आए हैं उससे यह जानकारी मिली है कि मुफ्त में पैसा मिले तो भी लोग काम नहीं छोड़ते। रिसर्च में 107 लोगों को बिना किसी काम के हर महीने 1,200 यूरो की रकम तीन साल तक दी गई। उसके बाद उनकी तुलना 1,580 लोगों के एक समूह से की गई जिन्हें इस तरह का कोई पैसा नहीं मिल रहा था। यूनिवर्सल बेसिक इनकम यानी सबके लिए आधारभूत आय के बारे में जानकारी जुटाने के लिए यह प्रयोग किया गया। कुछ अर्थशास्त्री मानते हैं कि अगर लोगों को उनके जरूरी खर्च के लिए बिना कुछ किए हर महीने पैसे दे दिए जाएं तो उससे उनका जीवन, काम और देश की अर्थव्यवस्था बेहतर होगी। प्रयोग के दौरान पता चला कि जिन लोगों को पैसा मिल रहा था उन्होंने अपना काम जारी रखा। इस पैसे के आने के साथ ही जीवन से उनकी संतुष्टि बढ़ गई और उनमें जीवन पर बेहतर नियंत्रण का भाव जगा। यह प्रयोग जर्मन इंस्टिट्यूट फॉर इकोनॉमिक रिसर्च ने किया है। पैसा पाने वाले लोगों ने औसत रूप से हर हफ्ते चार घंटे ज्यादा समय सामाजिक गतिविधियों में बिताया। और यह उन लोगों से भी ज्यादा था जिन्हें यह पैसा नहीं मिल रहा था। रिसर्चरों का कहना है कि शायद यह उनकी जेब में ज्यादा पैसा होने की वजह से हुआ। रिसर्चरों ने यह भी बताया है कि यूनिवर्सिल बेसिक इनकम पाने वाले प्रतिभागियों की राजनीतिक प्रतिबद्धताओं या फिर मनोवैज्ञानिक लक्षणों में कोई बदलाव नहीं देखा गया। रिसर्च में पता चला कि लोगों ने बिना काम के मिले पैसे का करीब एक तिहाई बचत के लिए रखा। आमतौर पर भी मासिक आय का एक तिहाई हिस्सा लोग औसत रूप से बचत के लिए रखते हैं। करीब 8 फीसदी रकम लोगों ने समाजसेवा पर खर्च की। पैसा मिलने के बावजूद किसी भी शख्स ने अपने काम में कमी नहीं की। प्रयोग में 21 से 40 साल के बीच के सिंगल युवाओं को चुना गया था। इन्हें तीन साल तक हर महीने 1,200 यूरो दिए गए। यह पैसा मिलने से पहले ये लोग 1,100 से 2,600 यूरो हर महीने कमा रहे थे। साल 2017-18 में इसी तरह की एक स्टडी फिनलैंड में हुई थी। उस रिसर्च के भी इसी तरह काफी सकारात्मक नतीजे आए थे. यूरोप के कुछ और देश भी इन उपायों पर विचार कर रहे हैं। 

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फ्री में सैलेरी मिले तो भी काम करना नहीं छोड़ते जर्मन

 वर्ष 2019 के चुनाव के दौरान भारत में राहुल गांधी की कांग्रेस पार्टी ने यूविर्सल बेसिक इनकम देने का वायदा किया था। हालांकि इतने बड़े वादे के बावजूद राहुल गांधी चुनाव तो नहीं जीत पाए लेकिन हाल ही जर्मनी में यूनिवर्सल बेसिक इनकम के फील्ड ट्रायल किए गए जिसके नतीजे बड़े रोचक आए। बिना कुछ किए अगर जीवन चलाने भर का पैसा मिल जाए तो भी जर्मनी के लोग काम करना ना तो छोड़ते  और ना ही काम करने में कंजूसी करते हैं। हां ये जरूर है कि उनकी मानसिक स्थिति दूसरों से बेहतर हो जाती है। जर्मनी में हाल ही में हुई एक रिसर्च के बाद जो नतीजे आए हैं उससे यह जानकारी मिली है कि मुफ्त में पैसा मिले तो भी लोग काम नहीं छोड़ते। रिसर्च में 107 लोगों को बिना किसी काम के हर महीने 1,200 यूरो की रकम तीन साल तक दी गई। उसके बाद उनकी तुलना 1,580 लोगों के एक समूह से की गई जिन्हें इस तरह का कोई पैसा नहीं मिल रहा था। यूनिवर्सल बेसिक इनकम यानी सबके लिए आधारभूत आय के बारे में जानकारी जुटाने के लिए यह प्रयोग किया गया। कुछ अर्थशास्त्री मानते हैं कि अगर लोगों को उनके जरूरी खर्च के लिए बिना कुछ किए हर महीने पैसे दे दिए जाएं तो उससे उनका जीवन, काम और देश की अर्थव्यवस्था बेहतर होगी। प्रयोग के दौरान पता चला कि जिन लोगों को पैसा मिल रहा था उन्होंने अपना काम जारी रखा। इस पैसे के आने के साथ ही जीवन से उनकी संतुष्टि बढ़ गई और उनमें जीवन पर बेहतर नियंत्रण का भाव जगा। यह प्रयोग जर्मन इंस्टिट्यूट फॉर इकोनॉमिक रिसर्च ने किया है। पैसा पाने वाले लोगों ने औसत रूप से हर हफ्ते चार घंटे ज्यादा समय सामाजिक गतिविधियों में बिताया। और यह उन लोगों से भी ज्यादा था जिन्हें यह पैसा नहीं मिल रहा था। रिसर्चरों का कहना है कि शायद यह उनकी जेब में ज्यादा पैसा होने की वजह से हुआ। रिसर्चरों ने यह भी बताया है कि यूनिवर्सिल बेसिक इनकम पाने वाले प्रतिभागियों की राजनीतिक प्रतिबद्धताओं या फिर मनोवैज्ञानिक लक्षणों में कोई बदलाव नहीं देखा गया। रिसर्च में पता चला कि लोगों ने बिना काम के मिले पैसे का करीब एक तिहाई बचत के लिए रखा। आमतौर पर भी मासिक आय का एक तिहाई हिस्सा लोग औसत रूप से बचत के लिए रखते हैं। करीब 8 फीसदी रकम लोगों ने समाजसेवा पर खर्च की। पैसा मिलने के बावजूद किसी भी शख्स ने अपने काम में कमी नहीं की। प्रयोग में 21 से 40 साल के बीच के सिंगल युवाओं को चुना गया था। इन्हें तीन साल तक हर महीने 1,200 यूरो दिए गए। यह पैसा मिलने से पहले ये लोग 1,100 से 2,600 यूरो हर महीने कमा रहे थे। साल 2017-18 में इसी तरह की एक स्टडी फिनलैंड में हुई थी। उस रिसर्च के भी इसी तरह काफी सकारात्मक नतीजे आए थे. यूरोप के कुछ और देश भी इन उपायों पर विचार कर रहे हैं। 


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