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08-09-2025

खेती में वृद्धि और निर्यात में कमी, अरंडी की कीमतों में गिरावट

  •  आजाद भारत के समय से ही हमारे देश में कमोडिटी का कारोबार विश्वास और रिश्तों पर चलता रहा है। लेकिन 200 साल पुरानी परंपरा अब पुरानी हो चुकी है। अब अनधिकृत रिपोर्टों पर विश्वास करके अविश्वसनीय कारोबार करने वालों को भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है। इस समय गुजरात और राजस्थान के खेतों में अरंडी की फसल लहलहा रही है, लेकिन बुआई और बारिश से हुए नुकसान के आंकड़े समझने में संघर्ष कर रहे लोग फिलहाल असमंजस में हैं। क्योंकि एनसीडीईएक्स वायदा पिछले दो महीनों में 500 रुपये प्रति क्विंटल गिर चुका है। बुआई शुरू होने पर यानी 3 जुलाई-2025 को अरंडी का भाव प्रति क्विंटल 7050 रुपये था, जो 2 सितंबर-2025 को  घटकर 6560 रुपये रह गया था। इस बार गुजरात में अरंडी की खेती 10 से 12 प्रतिशत बढऩे की संभावना है, लेकिन अपनी जगह बैठे व्यापारियों का कहना है कि भारी बारिश से हुए नुकसान के कारण उत्तर गुजरात के कई इलाकों में दो-तीन बार रोपाई करनी पड़ी है, जिसे सरकार नई रोपाई कहती है। अब सवाल यह है कि किस पर भरोसा किया जाए। एक सितंबर को जारी सरकारी आंकड़ों के अनुसार, भारत में अरंडी की बुवाई 7.53 लाख हेक्टेयर में हुई है। इसमें से 5.95 लाख हेक्टेयर गुजरात में और 1.29 लाख हेक्टेयर राजस्थान में हुई है। गौरतलब है कि पिछले साल पूरे सीजन में कुल बुवाई 8.56 लाख हेक्टेयर दर्ज की गई थी। इस बार बुवाई के अंतिम आंकड़े एक महीने बाद आएंगे, इसलिए सभी को बुवाई बढऩे की उम्मीद है।

    जनवरी से अगस्त तक अरंडी के आवक के आंकड़ों पर नजर डालें तो 2023 में 621107 लाख टन अरंडी  का आवक हुआ, जो 2024 में 566389 लाख टन था, जबकि 2025 में अब तक 503011 लाख टन अरंडी का आवक हो चुकी है। वहीं दूसरी ओर, जनवरी से अगस्त 2023 में 442969 टन अरंडी तेल का निर्यात हुआ, जबकि 2024 में 503329 टन और 2025 में अब तक 481508 टन अरंडी तेल का निर्यात हो चुका है। ये आंकड़े बताते हैं कि निर्यात में कमी आई है। इसी तरह, भारत ने अप्रैल-25 से जुलाई-25 की अवधि में 85032 टन अरंडी खल का निर्यात किया है, जो पिछले वर्ष इसी अवधि के 100901 टन निर्यात से कम है। इस प्रकार, अरंडी खल और तेल दोनों के निर्यात में कमी आई है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि निर्यात की गति इसी दर से जारी रही तो वर्ष के अंत तक निर्यात में 15 प्रतिशत तक की गिरावट आ सकती है। इसके अलावा टैरिफ का मुद्दा भी है। दूसरी ओर, खेती ज्यादा है, इसलिए स्टॉकिस्ट माल बेच रहे हैं, जिससे कीमतें गिर रही हैं। शायद यही वजह है कि एनसीडीईएक्स वायदा भाव और हाजिर बाजार भाव के बीच के अंतर को समझकर ब्याज पर कारोबार करने वाले व्यापारी इस समय सालाना 20 फीसदी तक का ऊंचा रिटर्न पा रहे हैं। वायदा में इस समय औसत दैनिक कारोबार 50 करोड़ रुपये का है, जबकि 37,000 टन का ओपन इंटरेस्ट है। हालांकि, अरंडी के  कारोबार का इतिहास यही कहता है कि जब भाव बहुत नीचे चला जाता है, तो किसान और व्यापारी स्टॉक कर लेते हैं क्योंकि यह कृषि उत्पाद तीन-चार सीजन तक खराब नहीं होता। फिर जब भाव बढ़ता है, तो अक्सर सीजन के कुल उत्पादन से भी ज्यादा माल बाजार में आ जाता है। इसलिए, सीजन शुरू होने पर निर्यात मांग कैसी रहेगी, इस पर भाव की तस्वीर साफ होगी।

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खेती में वृद्धि और निर्यात में कमी, अरंडी की कीमतों में गिरावट

 आजाद भारत के समय से ही हमारे देश में कमोडिटी का कारोबार विश्वास और रिश्तों पर चलता रहा है। लेकिन 200 साल पुरानी परंपरा अब पुरानी हो चुकी है। अब अनधिकृत रिपोर्टों पर विश्वास करके अविश्वसनीय कारोबार करने वालों को भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है। इस समय गुजरात और राजस्थान के खेतों में अरंडी की फसल लहलहा रही है, लेकिन बुआई और बारिश से हुए नुकसान के आंकड़े समझने में संघर्ष कर रहे लोग फिलहाल असमंजस में हैं। क्योंकि एनसीडीईएक्स वायदा पिछले दो महीनों में 500 रुपये प्रति क्विंटल गिर चुका है। बुआई शुरू होने पर यानी 3 जुलाई-2025 को अरंडी का भाव प्रति क्विंटल 7050 रुपये था, जो 2 सितंबर-2025 को  घटकर 6560 रुपये रह गया था। इस बार गुजरात में अरंडी की खेती 10 से 12 प्रतिशत बढऩे की संभावना है, लेकिन अपनी जगह बैठे व्यापारियों का कहना है कि भारी बारिश से हुए नुकसान के कारण उत्तर गुजरात के कई इलाकों में दो-तीन बार रोपाई करनी पड़ी है, जिसे सरकार नई रोपाई कहती है। अब सवाल यह है कि किस पर भरोसा किया जाए। एक सितंबर को जारी सरकारी आंकड़ों के अनुसार, भारत में अरंडी की बुवाई 7.53 लाख हेक्टेयर में हुई है। इसमें से 5.95 लाख हेक्टेयर गुजरात में और 1.29 लाख हेक्टेयर राजस्थान में हुई है। गौरतलब है कि पिछले साल पूरे सीजन में कुल बुवाई 8.56 लाख हेक्टेयर दर्ज की गई थी। इस बार बुवाई के अंतिम आंकड़े एक महीने बाद आएंगे, इसलिए सभी को बुवाई बढऩे की उम्मीद है।

जनवरी से अगस्त तक अरंडी के आवक के आंकड़ों पर नजर डालें तो 2023 में 621107 लाख टन अरंडी  का आवक हुआ, जो 2024 में 566389 लाख टन था, जबकि 2025 में अब तक 503011 लाख टन अरंडी का आवक हो चुकी है। वहीं दूसरी ओर, जनवरी से अगस्त 2023 में 442969 टन अरंडी तेल का निर्यात हुआ, जबकि 2024 में 503329 टन और 2025 में अब तक 481508 टन अरंडी तेल का निर्यात हो चुका है। ये आंकड़े बताते हैं कि निर्यात में कमी आई है। इसी तरह, भारत ने अप्रैल-25 से जुलाई-25 की अवधि में 85032 टन अरंडी खल का निर्यात किया है, जो पिछले वर्ष इसी अवधि के 100901 टन निर्यात से कम है। इस प्रकार, अरंडी खल और तेल दोनों के निर्यात में कमी आई है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि निर्यात की गति इसी दर से जारी रही तो वर्ष के अंत तक निर्यात में 15 प्रतिशत तक की गिरावट आ सकती है। इसके अलावा टैरिफ का मुद्दा भी है। दूसरी ओर, खेती ज्यादा है, इसलिए स्टॉकिस्ट माल बेच रहे हैं, जिससे कीमतें गिर रही हैं। शायद यही वजह है कि एनसीडीईएक्स वायदा भाव और हाजिर बाजार भाव के बीच के अंतर को समझकर ब्याज पर कारोबार करने वाले व्यापारी इस समय सालाना 20 फीसदी तक का ऊंचा रिटर्न पा रहे हैं। वायदा में इस समय औसत दैनिक कारोबार 50 करोड़ रुपये का है, जबकि 37,000 टन का ओपन इंटरेस्ट है। हालांकि, अरंडी के  कारोबार का इतिहास यही कहता है कि जब भाव बहुत नीचे चला जाता है, तो किसान और व्यापारी स्टॉक कर लेते हैं क्योंकि यह कृषि उत्पाद तीन-चार सीजन तक खराब नहीं होता। फिर जब भाव बढ़ता है, तो अक्सर सीजन के कुल उत्पादन से भी ज्यादा माल बाजार में आ जाता है। इसलिए, सीजन शुरू होने पर निर्यात मांग कैसी रहेगी, इस पर भाव की तस्वीर साफ होगी।


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