जीरा की फसल पिछले 6 महीने से चल रही है तथा उत्पादन अधिक होने से गले तक माल भरा पड़ा है। पिछले एक सप्ताह के अंतराल वायदा में सटोरियों की नीचे वाले भाव में लिवाली चलने से 11/12 रुपए प्रति किलो की तेजी आ गई है, लेकिन इस बढ़े भाव में एक बार मुनाफा लेना चाहिए, इस तेजी में फंसने की जरूरत नहीं है जीरे की बिजाई गत सीजन में जबरदस्त हुई थी तथा गुजरात के उंझा काठियावाड़ मेहसाणा सहित पूरे सौराष्ट्र एवं राजस्थान के जोधपुर बीकानेर बाड़मेर लाइन में उत्पादन भी अनुकूल मौसम से जबरदस्त हुआ है। इसकी बिजाई 3 महीने बाद शुरू हो जाएगी, इसलिए खपत के लिए समय अब ज्यादा नहीं बचा है। यही कारण है कि पिछले 6 महीने से फसल आ रही है तथा जो व्यापार 280/282 रुपए प्रति किलो का हुआ था, उसके भाव 227/228 रुपए नीचे में बनने के बाद पिछले एक सप्ताह के अंतराल बढक़र 240/242 रुपए प्रति किलो हो गए हैं। नीचे वाले माल भी इसी अनुपात में बढ़ गए हैं जबकि ऊपर वाले माल, मीडियम माल की तुलना में कम बढ़े हैं। बाजारों में रुपए की भारी तंगी चल रही है, रुपए की वापसी नहीं हो रही है, माल चाहे जो भी बिक जाए, लेकिन भुगतान में बढिय़ा-बढिय़ा पार्टियों का भी विलंब हो रहा है। गौरतलब है कि बार-बार मिडिल ईस्ट देशों में युद्ध की स्थिति बनने से समुद्री मार्ग बाधित हुआ था तथा पहले के हुए सौदे पेंडिंग में थे, उनकी लिवाली पिछले सप्ताह निकली थी, जिससे बाजार बहुत कम समय में 11/12 रुपए प्रति किलो बढ़ गए हैं, लेकिन नए सौदे कोई विशेष ज्यादा नहीं हो रहे हैं तथा बाड़मेर जोधपुर लाइन से सस्ता जीरा लगातार लोडिंग उत्तर भारत की मंडियों के लिए हो रहा है, इन परिस्थितियों में अब इन भाव में एक बार जरूरत का व्यापार करना चाहिए। आगे भी मानसून बढिय़ा होने से बिजाई अच्छी होने की संभावना है तथा अभी वर्ष 2023 का जीरा भी पड़ा हुआ है, वर्ष 2024 एवं 25 का जीरा उत्पादक मंडियों में बड़े कारोबारियों के हाथ में है तथा हल्का क्वालिटी का जीरा राजस्थान वाला लगातार बिकवाली में आ रहा है। वायदा बाजारों में भी स्टॉक इसी जीरे का ज्यादा होने की व्यापारिक चर्चा है। यही कारण है की सटोरिए एक बार बाजार को तोडक़र पानी पानी कर दिए थे तथा अब नीचे वाले भाव में मार्केट से माल पकडऩे लगे हैं, जिससे बाजार बढ़ गया है, अब इन भाव में माल बेचकर चलना चाहिए।