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Daily Business Newspaper | A Knowledge Powerhouse in Hindi

02-05-2025

देसी चने में मंदे की गुंजाइश नहीं

  •  बाजार में रुपए की भारी तंगी होने से देशी चना सहित सभी दलहनों में मंदे का दौर चल रहा है, लेकिन उत्पादक मंडियों में देसी चने की आवक काफी टूट जाने तथा आस्ट्रेलिया के माल भी मुंदड़ा पोर्ट पर निबट जाने से इसमे आगे चलकर भरपूर लाभ मिलने की संभावना दिखाई दे रही है। इसमें दो दिनों से बिकवाल पीछे हट गए हैं। अत: आने वाले समय में इसमें अच्छी तेजी के आसार बन गए हैं। देश में दूसरे वर्ष भी देसी चने का उत्पादन सभी उत्पादक राज्यों में कम हुआ है, केवल वर्तमान का मंदा बाजारों में रुपए की भारी तंगी होने से आया हुआ है। दलहन के कारोबारियों को उड़द तुवर एवं देसी चने के फारवर्ड व्यापार ने तबाह कर दिया है, क्योंकि जो भी आयातको स्टॉकिस्टों ने फॉरवर्ड का माल बेचा था, जिसमें 70 प्रतिशत लिवाल पार्टियों ने माल संभालने से हाथ खड़ा कर दिए थे, वह आयातकों के गले में फंस गया था, उसे आयातकों ने होने पौने भाव में सेटलमेंट करना पड़ा, जिसमें लगभग 30 हजार करोड़ रुपए का घाटा लग गया है। इसका प्रभाव सभी दलहन कारोबारी पर पड़ा हुआ है, अब धीरे-धीरे सारा व्यापार सेटलमेंट विदेश के कारोबारी से हो चुका है, इसलिए अब देसी चना सहित सभी दलहनों  में और मंदे की धारणा समाप्त हो गई है। इसकी फसल पर 15 जनवरी से 15 फरवरी के बीच गर्मी पडऩे से प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है।  वर्तमान में आंध्र प्रदेश कर्नाटक में देसी चने की आपूर्ति 50-60 प्रतिशत घट गई है। महाराष्ट्र में भी आवक का प्रेशर पूरी तरह समाप्त हो गया है, बल्कि राजस्थान के कुछ मंडियों से इंदौर एवं ग्वालियर लाइन की बड़ी दाल मिलें खरीद चुकी है, जिससे वहां से माल कम आ रहा है। सभी उत्पादक क्षेत्रों में दाने छोटे निकल रहे हैं, जिससे प्रति हैक्टेयर उत्पादकता कम आ रही है। पिछले एक माह से राजस्थान के बीकानेर शेखावाटी तारानगर नोहरभाद्रा सवाई माधोपुर लाइन का माल आने लगा है, लेकिन मंडियों में गत वर्ष की समान अवधि की तुलना में 23 प्रतिशत कम आ रहा है। वहीं लोकल दाल मिलें मीलिंग के लिए कम खरीद रही हैं। एमपी की उक्त मंडियों में भाव ऊंचे होने से दिल्ली सहित एनसीआर की दाल मिलों के पड़ते नहीं लग रहे हैं। पिछले एक पखवाड़े से वितरक व खपत वाली मंडियों में ऑस्ट्रेलिया का चना कम दिखाई दे रहा है, राजस्थानी चने में दाल मिलों की पूछ परख आने से कुछ मजबूती पर 5800/5850 रुपए प्रति कुंतल हो गया।, उधर मुंदड़ा पोर्ट पर ज्यादा माल अब नहीं है। घरेलू फसलों में दम कम रहने से बाजार आगे चलकर बढ़ाने वाला है। वास्तविकता यह है कि किसी भी देश से आयात सस्ता नहीं लग रहा है तथा पुराना माल इस बार नयी फसल आने पर समाप्त हो चुका था। सरकार द्वारा पिछले दिनों कस्टम ड्यूटी भी 10 प्रतिशत लगा दिया गया था, इन सारी परिस्थितियों में वर्तमान वाले भाव नीचे के लग रहे हैं तथा इसमें इंतजार करने के बाद भरपूर लाभ मिलने की संभावना है।

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देसी चने में मंदे की गुंजाइश नहीं

 बाजार में रुपए की भारी तंगी होने से देशी चना सहित सभी दलहनों में मंदे का दौर चल रहा है, लेकिन उत्पादक मंडियों में देसी चने की आवक काफी टूट जाने तथा आस्ट्रेलिया के माल भी मुंदड़ा पोर्ट पर निबट जाने से इसमे आगे चलकर भरपूर लाभ मिलने की संभावना दिखाई दे रही है। इसमें दो दिनों से बिकवाल पीछे हट गए हैं। अत: आने वाले समय में इसमें अच्छी तेजी के आसार बन गए हैं। देश में दूसरे वर्ष भी देसी चने का उत्पादन सभी उत्पादक राज्यों में कम हुआ है, केवल वर्तमान का मंदा बाजारों में रुपए की भारी तंगी होने से आया हुआ है। दलहन के कारोबारियों को उड़द तुवर एवं देसी चने के फारवर्ड व्यापार ने तबाह कर दिया है, क्योंकि जो भी आयातको स्टॉकिस्टों ने फॉरवर्ड का माल बेचा था, जिसमें 70 प्रतिशत लिवाल पार्टियों ने माल संभालने से हाथ खड़ा कर दिए थे, वह आयातकों के गले में फंस गया था, उसे आयातकों ने होने पौने भाव में सेटलमेंट करना पड़ा, जिसमें लगभग 30 हजार करोड़ रुपए का घाटा लग गया है। इसका प्रभाव सभी दलहन कारोबारी पर पड़ा हुआ है, अब धीरे-धीरे सारा व्यापार सेटलमेंट विदेश के कारोबारी से हो चुका है, इसलिए अब देसी चना सहित सभी दलहनों  में और मंदे की धारणा समाप्त हो गई है। इसकी फसल पर 15 जनवरी से 15 फरवरी के बीच गर्मी पडऩे से प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है।  वर्तमान में आंध्र प्रदेश कर्नाटक में देसी चने की आपूर्ति 50-60 प्रतिशत घट गई है। महाराष्ट्र में भी आवक का प्रेशर पूरी तरह समाप्त हो गया है, बल्कि राजस्थान के कुछ मंडियों से इंदौर एवं ग्वालियर लाइन की बड़ी दाल मिलें खरीद चुकी है, जिससे वहां से माल कम आ रहा है। सभी उत्पादक क्षेत्रों में दाने छोटे निकल रहे हैं, जिससे प्रति हैक्टेयर उत्पादकता कम आ रही है। पिछले एक माह से राजस्थान के बीकानेर शेखावाटी तारानगर नोहरभाद्रा सवाई माधोपुर लाइन का माल आने लगा है, लेकिन मंडियों में गत वर्ष की समान अवधि की तुलना में 23 प्रतिशत कम आ रहा है। वहीं लोकल दाल मिलें मीलिंग के लिए कम खरीद रही हैं। एमपी की उक्त मंडियों में भाव ऊंचे होने से दिल्ली सहित एनसीआर की दाल मिलों के पड़ते नहीं लग रहे हैं। पिछले एक पखवाड़े से वितरक व खपत वाली मंडियों में ऑस्ट्रेलिया का चना कम दिखाई दे रहा है, राजस्थानी चने में दाल मिलों की पूछ परख आने से कुछ मजबूती पर 5800/5850 रुपए प्रति कुंतल हो गया।, उधर मुंदड़ा पोर्ट पर ज्यादा माल अब नहीं है। घरेलू फसलों में दम कम रहने से बाजार आगे चलकर बढ़ाने वाला है। वास्तविकता यह है कि किसी भी देश से आयात सस्ता नहीं लग रहा है तथा पुराना माल इस बार नयी फसल आने पर समाप्त हो चुका था। सरकार द्वारा पिछले दिनों कस्टम ड्यूटी भी 10 प्रतिशत लगा दिया गया था, इन सारी परिस्थितियों में वर्तमान वाले भाव नीचे के लग रहे हैं तथा इसमें इंतजार करने के बाद भरपूर लाभ मिलने की संभावना है।


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