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Daily Business Newspaper | A Knowledge Powerhouse in Hindi

06-06-2025

इकोनॉमिक डवलपमेंट एक साझा जिम्मेदारी

  •  इकोनॉमिक डवलपमेंट केवल सरकार की चिंता का विषय नहीं है और न ही यह केवल एक आंकड़ा है जिसे नीति दस्तावेजों में ट्रैक किया जाए। यह किसी राष्ट्र की सामूहिक प्रगति का प्रतिबिंब है जो यह दिखाता है कि देश के नागरिक कितनी अच्छी स्थिति में है कितने अवसर उत्पन्न हो रहे हैं और संसाधनों का उपयोग कितना प्रभावी ढंग से हो रहा है। अक्सर यह धारणा बन जाती है कि आर्थिक विकास की जिम्मेदारी केवल नीति निर्माताओं की होती है। परंतु सच यह है कि यह एक साझा जिम्मेदारी है, जिसमें सरकार, निजी क्षेत्र, शिक्षा संस्थान, वित्तीय संस्थान और हर नागरिक की सक्रिय भागीदारी आवश्यक होती है। सरकारों की भूमिका इस दिशा में आधारभूत होती है। वे ऐसा वातावरण बनाती हैं जिसमें विकास संभव हो सके, जैसे कि बुनियादी ढांचा सडक़ें, बिजली, इंटरनेट, सरल और पारदर्शी कानून और निवेश के अनुकूल नीतियां। शिक्षा, स्वास्थ्य और तकनीक जैसे क्षेत्रों में सरकारी निवेश निजी क्षेत्र को भी प्रेरित करता है लेकिन सिर्फ नीति बनाना काफी नहीं है। इन नीतियों को जमीन पर उतारने का जिम्मा निजी क्षेत्र को निभाना होता है। निजी व्यवसाय और उद्यमशीलता ही वे इंजन हैं जो रोजगार, नवाचार और उत्पादकता को गति देते हैं। छोटे और मध्यम स्तर के उद्योग विशेष रूप से देश की आर्थिक रीढ़ हैं। इन्हें सशक्त बनाकर हम स्थानीय स्तर पर बड़े बदलाव ला सकते हैं। वहीं बड़े कॉरपोरेट्स को भी सिर्फ मुनाफा कमाने तक सीमित नहीं रहना चाहिए बल्कि उन्हें सामाजिक और पर्यावरणीय उत्तरदायित्वों को भी अपनाना चाहिए। किसी भी देश की सबसे बड़ी पूंजी उसके लोग होते हैं। एक स्वस्थ, शिक्षित और कुशल जनसंख्या ही किसी इकोनॉमी की असली शक्ति होती है। इसलिए हमें शिक्षा और स्वास्थ्य में निरंतर निवेश करना होगा। शिक्षा केवल डिग्री तक सीमित न रहकर व्यावसायिक और तकनीकी दक्षता पर आधारित होनी चाहिए ताकि युवाओं को रोजगार योग्य बनाया जा सके। उद्योगों को चाहिए कि वे कौशल विकास, इंटर्नशिप और ट्रेनिंग प्रोग्राम के माध्यम से शिक्षा प्रणाली से जुड़ें। साथ ही महिलाओं और वंचित वर्गों को मुख्यधारा में लाना आर्थिक रूप से भी फायदेमंद है, क्योंकि इससे श्रमिक बल का विस्तार होता है और समावेशी विकास को बल मिलता है। तकनीक ने आर्थिक विकास को एक नई दिशा दी है।

    डिजिटल भुगतान, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, ऑटोमेशन और ई-कॉमर्स जैसे क्षेत्र देश के कोने-कोने तक पहुंच बना रहे हैं। इससे छोटे व्यवसायों को भी वैश्विक बाजार तक पहुंच मिल रही है लेकिन डिजिटल डिवाइड को समाप्त करना अत्यंत आवश्यक है ताकि रूरल इंडिया भी इस क्रांति का लाभ उठा सके। स्टार्टअप्स, इनोवेशन और रिसर्च को बढ़ावा देने के लिए सरकार और निजी क्षेत्र को मिलकर प्रयास करने होंगे। हालांकि तकनीकी विकास के साथ कुछ जोखिम भी हैं  जैसे कि रोजगार में कमी, डेटा की सुरक्षा और निजता का हनन। इसलिए यह आवश्यक है कि हम तकनीक का प्रयोग विवेकपूर्वक करें और उसके सामाजिक प्रभावों को भी समझें। अब जब हम भारत की बात करते हैं तो तस्वीर चुनौतीपूर्ण होने के साथ-साथ आशाजनक भी है। भारत के पास विश्व की सबसे बड़ी युवा जनसंख्या है जिसे डेमोग्राफिक डिविडेंड कहा जाता है। यदि इस युवा शक्ति को ठीक से प्रशिक्षित किया जाए तो यह देश की सबसे बड़ी आर्थिक ताकत बन सकती है। अगले 20 वर्षों में भारत के तीसरी सबसे बड़ी ग्लोबल इकोनॉमी बनने की संभावना है लेकिन यह अपने आप नहीं होगा। इसके लिए हमें लगातार बुनियादी ढांचे में निवेश करना होगा, युवाओं को व्यापक रूप से प्रशिक्षित करना होगा और डिजिटल तकनीक को हर वर्ग तक पहुंचाना होगा। स्टार्टअप्स को सहयोग, पूंजी और विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्धा करने के अवसर मिलने चाहिए। साथ ही कृषि क्षेत्र का आधुनिकीकरण और विनिर्माण क्षेत्र को मेक इन इंडिया 2.0 जैसे अभियानों से प्रोत्साहन देना होगा। शहरीकरण अवश्यंभावी है, लेकिन उसे सुनियोजित बनाना आवश्यक है। मेट्रो शहरों पर बोझ कम करने के लिए द्वितीय और तृतीय श्रेणी के शहरों को आर्थिक केंद्रों के रूप में विकसित किया जाना चाहिए। हरित ऊर्जा, इलेक्ट्रिक वाहनों और टिकाऊ औद्योगीकरण में भारत वैश्विक नेतृत्व कर सकता है। हमें केवल तकनीक के उपभोक्ता नहीं, बल्कि नवाचार और उत्पादन के क्षेत्र में भी अग्रणी बनना होगा। भविष्य का भारत सिर्फ जीडीपी की गति से नहीं, बल्कि उस गति से तय किया जाएगा कि यह विकास कितने लोगों की जिंदगी को बेहतर बनाता है। आखिरकार देश का हर नागरिक भी इस प्रक्रिया में भागीदार है। हर उपभोक्ता, कर्मचारी, व्यवसायी और निवेशक इकोनॉमी को आकार देता है। स्थानीय उत्पादों को अपनाना, ईमानदारी से टैक्स देना, संसाधनों की बचत करना और सामुदायिक कार्यों में भाग लेना ये सभी छोटे लेकिन महत्वपूर्ण कदम हैं जो आर्थिक मजबूती की नींव रखते हैं। आर्थिक विकास सिर्फ बड़ी योजनाओं या ग्लोबल समझौतों से नहीं आता, बल्कि लाखों छोटे योगदानों से बनता है जो हम सब रोज़ करते हैं। निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि आर्थिक विकास एक सामूहिक प्रयास है। जब हर क्षेत्र, हर नागरिक अपनी भूमिका को समझता है और उसे जिम्मेदारी से निभाता है, तभी हम तेज़ और संतुलित रूप से आगे बढ़ सकते हैं। हमें एक ऐसी इकोनॉमी बनानी है जो न केवल बड़ी हो, बल्कि सभी को साथ लेकर चले जहां विकास सभी की जिम्मेदारी हो और समृद्धि सबका अधिकार।

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इकोनॉमिक डवलपमेंट एक साझा जिम्मेदारी

 इकोनॉमिक डवलपमेंट केवल सरकार की चिंता का विषय नहीं है और न ही यह केवल एक आंकड़ा है जिसे नीति दस्तावेजों में ट्रैक किया जाए। यह किसी राष्ट्र की सामूहिक प्रगति का प्रतिबिंब है जो यह दिखाता है कि देश के नागरिक कितनी अच्छी स्थिति में है कितने अवसर उत्पन्न हो रहे हैं और संसाधनों का उपयोग कितना प्रभावी ढंग से हो रहा है। अक्सर यह धारणा बन जाती है कि आर्थिक विकास की जिम्मेदारी केवल नीति निर्माताओं की होती है। परंतु सच यह है कि यह एक साझा जिम्मेदारी है, जिसमें सरकार, निजी क्षेत्र, शिक्षा संस्थान, वित्तीय संस्थान और हर नागरिक की सक्रिय भागीदारी आवश्यक होती है। सरकारों की भूमिका इस दिशा में आधारभूत होती है। वे ऐसा वातावरण बनाती हैं जिसमें विकास संभव हो सके, जैसे कि बुनियादी ढांचा सडक़ें, बिजली, इंटरनेट, सरल और पारदर्शी कानून और निवेश के अनुकूल नीतियां। शिक्षा, स्वास्थ्य और तकनीक जैसे क्षेत्रों में सरकारी निवेश निजी क्षेत्र को भी प्रेरित करता है लेकिन सिर्फ नीति बनाना काफी नहीं है। इन नीतियों को जमीन पर उतारने का जिम्मा निजी क्षेत्र को निभाना होता है। निजी व्यवसाय और उद्यमशीलता ही वे इंजन हैं जो रोजगार, नवाचार और उत्पादकता को गति देते हैं। छोटे और मध्यम स्तर के उद्योग विशेष रूप से देश की आर्थिक रीढ़ हैं। इन्हें सशक्त बनाकर हम स्थानीय स्तर पर बड़े बदलाव ला सकते हैं। वहीं बड़े कॉरपोरेट्स को भी सिर्फ मुनाफा कमाने तक सीमित नहीं रहना चाहिए बल्कि उन्हें सामाजिक और पर्यावरणीय उत्तरदायित्वों को भी अपनाना चाहिए। किसी भी देश की सबसे बड़ी पूंजी उसके लोग होते हैं। एक स्वस्थ, शिक्षित और कुशल जनसंख्या ही किसी इकोनॉमी की असली शक्ति होती है। इसलिए हमें शिक्षा और स्वास्थ्य में निरंतर निवेश करना होगा। शिक्षा केवल डिग्री तक सीमित न रहकर व्यावसायिक और तकनीकी दक्षता पर आधारित होनी चाहिए ताकि युवाओं को रोजगार योग्य बनाया जा सके। उद्योगों को चाहिए कि वे कौशल विकास, इंटर्नशिप और ट्रेनिंग प्रोग्राम के माध्यम से शिक्षा प्रणाली से जुड़ें। साथ ही महिलाओं और वंचित वर्गों को मुख्यधारा में लाना आर्थिक रूप से भी फायदेमंद है, क्योंकि इससे श्रमिक बल का विस्तार होता है और समावेशी विकास को बल मिलता है। तकनीक ने आर्थिक विकास को एक नई दिशा दी है।

डिजिटल भुगतान, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, ऑटोमेशन और ई-कॉमर्स जैसे क्षेत्र देश के कोने-कोने तक पहुंच बना रहे हैं। इससे छोटे व्यवसायों को भी वैश्विक बाजार तक पहुंच मिल रही है लेकिन डिजिटल डिवाइड को समाप्त करना अत्यंत आवश्यक है ताकि रूरल इंडिया भी इस क्रांति का लाभ उठा सके। स्टार्टअप्स, इनोवेशन और रिसर्च को बढ़ावा देने के लिए सरकार और निजी क्षेत्र को मिलकर प्रयास करने होंगे। हालांकि तकनीकी विकास के साथ कुछ जोखिम भी हैं  जैसे कि रोजगार में कमी, डेटा की सुरक्षा और निजता का हनन। इसलिए यह आवश्यक है कि हम तकनीक का प्रयोग विवेकपूर्वक करें और उसके सामाजिक प्रभावों को भी समझें। अब जब हम भारत की बात करते हैं तो तस्वीर चुनौतीपूर्ण होने के साथ-साथ आशाजनक भी है। भारत के पास विश्व की सबसे बड़ी युवा जनसंख्या है जिसे डेमोग्राफिक डिविडेंड कहा जाता है। यदि इस युवा शक्ति को ठीक से प्रशिक्षित किया जाए तो यह देश की सबसे बड़ी आर्थिक ताकत बन सकती है। अगले 20 वर्षों में भारत के तीसरी सबसे बड़ी ग्लोबल इकोनॉमी बनने की संभावना है लेकिन यह अपने आप नहीं होगा। इसके लिए हमें लगातार बुनियादी ढांचे में निवेश करना होगा, युवाओं को व्यापक रूप से प्रशिक्षित करना होगा और डिजिटल तकनीक को हर वर्ग तक पहुंचाना होगा। स्टार्टअप्स को सहयोग, पूंजी और विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्धा करने के अवसर मिलने चाहिए। साथ ही कृषि क्षेत्र का आधुनिकीकरण और विनिर्माण क्षेत्र को मेक इन इंडिया 2.0 जैसे अभियानों से प्रोत्साहन देना होगा। शहरीकरण अवश्यंभावी है, लेकिन उसे सुनियोजित बनाना आवश्यक है। मेट्रो शहरों पर बोझ कम करने के लिए द्वितीय और तृतीय श्रेणी के शहरों को आर्थिक केंद्रों के रूप में विकसित किया जाना चाहिए। हरित ऊर्जा, इलेक्ट्रिक वाहनों और टिकाऊ औद्योगीकरण में भारत वैश्विक नेतृत्व कर सकता है। हमें केवल तकनीक के उपभोक्ता नहीं, बल्कि नवाचार और उत्पादन के क्षेत्र में भी अग्रणी बनना होगा। भविष्य का भारत सिर्फ जीडीपी की गति से नहीं, बल्कि उस गति से तय किया जाएगा कि यह विकास कितने लोगों की जिंदगी को बेहतर बनाता है। आखिरकार देश का हर नागरिक भी इस प्रक्रिया में भागीदार है। हर उपभोक्ता, कर्मचारी, व्यवसायी और निवेशक इकोनॉमी को आकार देता है। स्थानीय उत्पादों को अपनाना, ईमानदारी से टैक्स देना, संसाधनों की बचत करना और सामुदायिक कार्यों में भाग लेना ये सभी छोटे लेकिन महत्वपूर्ण कदम हैं जो आर्थिक मजबूती की नींव रखते हैं। आर्थिक विकास सिर्फ बड़ी योजनाओं या ग्लोबल समझौतों से नहीं आता, बल्कि लाखों छोटे योगदानों से बनता है जो हम सब रोज़ करते हैं। निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि आर्थिक विकास एक सामूहिक प्रयास है। जब हर क्षेत्र, हर नागरिक अपनी भूमिका को समझता है और उसे जिम्मेदारी से निभाता है, तभी हम तेज़ और संतुलित रूप से आगे बढ़ सकते हैं। हमें एक ऐसी इकोनॉमी बनानी है जो न केवल बड़ी हो, बल्कि सभी को साथ लेकर चले जहां विकास सभी की जिम्मेदारी हो और समृद्धि सबका अधिकार।


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