सिंघम फिलम में जयकांत शिकरे (प्रकाशराज) का वो डायलॉग याद होगा...शॉक लगा! डायलॉग वही है लेकिन कैरेक्टर बदल गए हैं। शॉक देने वाले प्रेसिडेंट ट्रंप हैं और शॉक लगा है भारत को। पंद्रह दिन की शांति के बाद ट्रंप के एक बयान ने भारत में शॉकवेव (झटका तरंग) ट्रिगर कर दी। सोमवार को ट्रंप ने फार्मा इंपोर्ट्स पर टैरिफ लगाने की प्लान की चर्च करते हुए कहा कि...विदइन नेक्स्ट टू वीक्स...यानी दो सप्ताह में ही फैसला हो जाएगा। ट्रंप ने यह बयान अमेरिका में दवा मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देने के लिए एक एक्जेक्टिव ऑर्डर पर हस्ताक्षर करते हुए दिया। ट्रंप ने संकेत दिया है फार्मा इंपोर्ट पर 200 परसेंट तक टैरिफ लगाया जा सकता है। ट्रंप के इस प्लान की फायरिंग लाइन में यूरोप और भारत है। भारत के कुल दवा एक्सपोर्ट में से 25-30 परसेंट अमेरिका को होता है। साथ में लगी टेबल को देखने से पता चलता है कि वित्त वर्ष 17 में भारत का फार्मा एक्सपोर्ट 16.8 बिलियन डॉलर था जो वित्त वर्ष 25 में करीब दोगुना होकर 30.47 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया। इस दौरान अमेरिका को भारत की दवाओं का एक्सपोर्ट 5.60 बिलियन डॉलर से बढक़र 8.95 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया है। ट्रंप की चिंता क्या है: ट्रंप ने कहा है वॉर छिड़ गया तो बड़ी प्रॉब्लम हो जाएगी। इसलिए अमेरिका जरूरी दवाएं खुद बनाना चाहता है। आपको याद होगा कोविड के दौरान अमेरिका में पेरासिटामोल की किल्लत हो गई थी और भारत ने अपनी जरूरत को देखते हुए इसके एक्सपोर्ट को बैन कर दिया था। तब ट्रंप भारत को धमकाने तक पर उतर आए थे।
भारत का मामला : भारत सरकार ने भी एपीआई (एक्टिव फार्मा इंग्रीडियंट्स) यानी दवा बनाने के कच्चे माल के लिए चीन पर निर्भरता को कम करने के लिए 15 हजार करोड़ रुपये की पीएलआई स्कीम शुरू की है। टेबल 2 के अनुसार वित्त वर्ष 2019 में भारत का एपीआई इंपोर्ट 24850 करोड़ रुपये का था जो अगले पांच वर्ष में वित्त वर्ष 24 तक करीब डेढ़ गुना होकर 37721.88 करोड़ रुपये तक हो गया। सरकार की चिंता यह है कि इसमें 65-70 परसेंट इंपोर्ट चीन से होता है और चीन के साथ हमारे रिश्ते कभी भी पटरी से उतर सकते हैं। और ऐसा हो गया तो चीन देश में कभी भी दवाओं की किल्लत पैदा कर सकता है। ट्रंप ने कहा कि अमेरिका खुद अपनी दवाएं बनाएगा। ट्रंप के एक्जेक्टिव ऑर्डर का मतलब है अमेरिका प्रशासन को अमेरिका में दवा मैन्युफैक्चरिंग को फास्ट्रेक पर शुरू करना होगा। ट्रंप ने एफडीए (फेडरल ड्रग अथॉरिटी) को दवा मैन्युफैक्चरिंग के लिए एप्रूवल जल्दी करने के लिए कहा है। साथ ही विदेशी दवा प्लांट्स जो अमेरिका को दवा एक्सपोर्ट करते हैं उनके सरप्राइज इंस्पेक्शन बढ़ाने और विदेशी दवा कंपनियों के लिए इंस्पेक्शन फीस बढ़ाने का भी फैसला किया है। ट्रंप ने ईपीए (एनवायर्नमेंट प्रॉटेक्शन एजेंसी) को दवा फैक्टरियों को जल्दी क्लीयरेंस देने के लिए भी कहा है। उनका मानना है कि बहुत फास्ट्रेक में काम होगा तभी भी अमेरिका को फार्मा इंडस्ट्री तैयार करने में 10 साल लग जाएंगे और यह नेशनल सिक्यॉरिटी के लिए ठीक नहीं है।अमेरिका के कॉमर्स डिपार्टमेंट ने अप्रेल में फार्मा इंपोर्ट पर सैक्शन 232 के तहत जांच शुरू की है जिसके जरिए दवा इंपोर्ट पर टैरिफ तय किया जाएगा। हालांकि एनेलिस्ट और ट्रंप के आलोचकों का कहना है कि फार्मा इंडस्ट्री को वापस लाना आसान नहीं है। क्योंकि अमेरिका में बनी दवाओं के लिए भी एपीआई इंपोर्ट करने होंगे जिन पर टैरिफ लगने से वे महंगे पड़ेंगे जिससे दवाएं महंगी हो जाएंगी। वर्ष 2023 में अमेरिका ने 200 बिलियन डॉलर के फार्मा प्रॉडक्ट्स का इंपोर्ट किया था जिसमें 73 परसेंट शेयर यूरोप के देशों का था। इनमें भी सबसे ज्यादा इंपोर्ट आयरलैंड, जर्मनी और स्विट्जरलैंड के किया गया था। अन्स्र्ट एंड यंग की रिपोर्ट कहती है यदि ट्रंप एडमिनिस्ट्रेशन दवाओं पर 25 परसेंट इंपोर्ट ड्यूटी लगाता है तो अमेरिकियों को दवाओं पर सालाना 51 बिलियन डॉलर ज्यादा खर्च करने पड़ेंगे यानी दवाएं करीब 13 परसेंट महंगी हो जाएंगी।

