यद्यपि दिल्ली से बाहर की दाल मिलों में दाल के भाव सस्ते चल रहे हैं, जिससे यहां बिक्री बहुत ही कम रह गई है तथापि चेन्नई से अब इससे नीचे का पड़ता नहीं लग रहा है। मटर की मिक्सिंग होने एवं हाथरस कटनी लाइन में तुवर के भाव नीचे होने से इस बार लंबी तेजी तो नहीं आएगी, लेकिन अब मंदे को विराम लग रहा है। तुवर में दाल मिलों की मांग पूरी तरह ठंडी पड़ गई है। दूसरी ओर चेन्नई से लगातार सटोरिये, वर्तमान भाव में माल बेच रहे हैं। इसके अलावा भी अगाऊं सौदे नीचे भाव के मिल रहे हैं, जिससे स्टॉक का व्यापार पूरी तरह समाप्त हो गया है। दली हुई दाल में ग्राहकी अनुकूल नहीं होने तथा स्टॉक के माल निकलने से बाजार दोबारा 6600 रुपए लेमन क्वालिटी का रह गया है। अब यहां से और मंदा नहीं लग रहा है तथा लंबी तेजी की तो बिल्कुल धारणा नहीं है। गौरतलब है कि बीते सीजन में तुवर की महाराष्ट्र कर्नाटक दोनों ही राज्यों में उत्पादन अधिक होने तथा अनुकूल मौसम से क्वालिटी बहुत बढिय़ा हुई थी। इस बार तुवर की खेती में किसानों का रुझान अधिक रहा है, लेकिन आने वाली फसल बरसात अधिक होने से फिर कम होने की सर्वे रिपोर्ट आने लगी है। हम मानते हैं कि चालू सीजन वाली रंगून में फसल बहुत ही बढिय़ा होने से वहां के निर्यातक लगातार बिकवाल घटाकर माल बेच गए थे, लेकिन इससे नीचे अब भाव कोड नहीं कर रहे हैं। इस वजह से 89/90 रुपए की तूर दाल को खरीदने में कोई रिस्क नहीं है तथा 66 रुपए की लेमन तुवर में और मंदा नहीं लग रहा है। इसमें आगे चलकर दो पैसे का लाभ मिल सकता है। पिछले सप्ताह चेन्नई में भी आयातक घटाकर बोलने लगे हैं, क्योंकि वहां 10-15 डॉलर प्रति टन की घटती लिए बाजार बंद हुए हैं। गौरतलब है कि गत सीजन देश में तुवर का उत्पादन 52-53 लाख मीट्रिक टन हुआ था, जो इस बार अधिक बरसात से 47-48 लाख मैट्रिक टन रह जाने का ताजा अनुमान आ रहा है। हालांकि सरकार द्वारा उन्नतशील बीज, दालों पर आत्मनिर्भरता के लिए किसानों को वितरित किया जा रहा है, इन परिस्थितियों में तुवर के भाव एकदम एटपार आ चुके हैं, जिससे यहां से घटने की भी गुंजाइश नहीं है। बर्मा में तुवर के भाव एक सप्ताह के अंतराल 745 डॉलर से घटाकर 740 डॉलर प्रति टन बोल रहे हैं।