काबुली चने का उत्पादन,गत वर्ष के बराबर ही आया है, जबकि बजाई पांच प्रतिशत अधिक हुई थी। इस वजह से नया पुराना स्टॉक ज्यादा रहा है। दूसरी ओर बाजारों में रुपए की तंगी से पूरी तरह मंदे का दलदल बन गया है, वहीं दूसरे देशों में यहां की अपेक्षा भाव नीचे हैं। अत: इसमें अब घटने की गुंजाइश नहीं है तथा वर्तमान भाव का आगे चलकर लाभ दे जाएगा। काबुली चने का पुराना स्टॉक इस बार ज्यादा बचा है, क्योंकि पिछला उत्पादन अधिक हुआ था। इस बार भी डिजाइन पांच प्रतिशत अधिक हुई थी कुछ फसल महाराष्ट्र मध्य प्रदेश के सीमावर्ती क्षेत्रों में जनवरी-फरवरी के तापमान से प्रभावित हुई थी, लेकिन सकल उत्पादन गत वर्ष 31 लाख मीट्रिक टन के बराबर ही हुआ है। आंध्र प्रदेश कर्नाटक एवं महाराष्ट्र के खेतों में सामान्य हुए हैं। मध्य प्रदेश के डाबरा लाइन में ज्यादा माल आया है, लेकिन वह भी पिछले एक महीना के अंतराल औने-पौने भाव में कट चुका है। पिछले साल का माल भी नयी फसल आने पर ज्यादा बचा था, जिस कारण अगस्त 2024 के महीने में जो काबली चना 114/115 रुपए प्रति किलो महाराष्ट्र का बिका था, उसके भाव गिरकर नीचे में अब इसके भाव 62/63 रुपए एवं गुजरात के माल 58/60 रुपए प्रति किलो रह गए हैं। अब इसमें घटने की गुंजाइश नहीं है,क्योंकि यह मुफ्त वाले भाव प्रतीत हो रहे हैं, बाजार आगे चलकर जून-सितंबर के बीच में 14/15 रुपए प्रति किलो की तेजी आ सकती है। अत: इन भावों में व्यापार खुलकर करना चाहिए। गौरतलब है कि उत्पादन मुख्य रूप से आंध्र प्रदेश कर्नाटक महाराष्ट्र एवं मध्य प्रदेश में होता है, कुछ माल ललितपुर झांसी लाइन में भी होता है। उत्पादक मंडियों से 2/3 रुपए बेपड़ते का यहां व्यापार हो रहा है, अब इन भावों में और घटने की गुंजाइश नहीं है, यह मंदा केवल ग्राहकी का सन्नाटा का आया हुआ है। इसके अलावा ऑपरेशन सिंदूर का भी प्रभाव है। महाराष्ट्र का माल जो वर्तमान में बोल रहे हैं, ये अगस्त-2024 की तुलना में यहां लगभग 52/53 रुपए नीचे आ गए हैं। इसके अलावा मेक्सिको माल भी आ रहा है यहां नया माल 125/126 रुपए प्रति किलो बिकने के बाद 80/82 रुपए रह गए हैं। अब मंडियों में ज्यादा माल का प्रेशर नहीं है। गौरतलब है कि मंदे में चौतरफा माल दिखाई देता है तथा तेजी में सब माल गायब हो जाता है, यह व्यापार का वसूल है। कारोबारी वर्ग यह अनुमान लगा रहे हैं कि जिस तरह 3 दिन के अंतराल दलदल बना हुआ है, इमें हिम्मत जुटाने वाला लाभ कमा जाएगा। गत दो वर्षों से काबुली चने का उत्पादन 30-31 लाख मैट्रिक टन के करीब बैठ रहा है। इधर ललितपुर झांसी लाइन में भी इस बार कोई विशेष माल का प्रेशर नहीं है तथा पुराना माल कारोबारियों ने काफी काट चुके है तथा दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि अंतरराष्ट्रीय बाजारों में वर्तमान भाव के काबुली चने के आयात पड़ते बिल्कुल नहीं है, बल्कि वहां ऊंचे भाव होने से निर्यात का सपोर्ट भी मिलने की संभावना है।