चालू सीजन में सिंघाड़े की फसल तालाबों में पानी की भारी कमी से इस बार 30 प्रतिशत रह गई। दूसरी ओर पुराना स्टॉक 3 वर्षों से मंदे के चलते काफी कट गए थे। इधर सीजन के शुरुआत में स्टॉकिस्ट लिवाली हेतु कूद गए थे, असामयिक तेजी आ गई थी, जो 4 महीने तक दुखदाई रही है। अब धीरे-धीरे चालू माह में और माल कट जाएंगे, जिससे आगे चलकर 200 रुपए किलो बिकने की संभावना बन गई है। सिंघाड़ा इस बार गत वर्ष की तुलना में केवल 28-30 प्रतिशत ही यूपी के तालाबों से निकला है तथा मध्य प्रदेश में केवल पांच-सात प्रतिशत ही आया था, जो लोकल मंडियों में खप गया है, इस वजह से पुराने माल के भाव सीजन के शुरुआत में ही 60/70 प्रतिशत बढ़ गए थे, उसके बाद लिवाल पीछे हट गए, जिसके चलते पिछले 4 महीने के अंतराल 54-55 माल तेजी वाले कट गए हैं। उत्पादक वितरक एवं खपत वाली मंडियों में माल का स्टॉक जो पड़े हैं, उसे सैंपल के लिए ही दुकान पर कारोबारी दिखा रहे हैं तथा हाजिर में माल ज्यादा नहीं है। यूपी से आने वाले माल के व्यापार हो रहे हैं। पिछले तीन दिनों में एक बार फिर पूछ परख आने लगी है, जिस कारण जो माल 125/130 प्रति किलो बिक गया था, उसके बाद दोबारा से 140/145 रुपए बोलने लगे हैं तथा बढिय़ा माल में 160 रुपए बोल रहे हैं। जुलाई के बाद से फलाहारी सीजन शुरू हो जाएगा, इसे देखते हुए वर्तमान भाव के सिंघाड़े में आगे चलकर भरपूर लाभ मिलने की संभावना है। यह जनवरी में फसल आने पर 85/90 रुपए बिका था, लेकिन फसल में भारी पोल से इंदौर कटनी शिवपुरी शिवपुरी कला एवं नीमच लाइन के कारोबारी वहीं उत्पादक मंडियों से प्रतिस्पर्धात्मक खरीद करके सीजन में ही भाव को खराब कर दिए, जो चार माह तक तकलीफ देता रहा है। कानपुर उन्नाव लाइन में माल ज्यादा नहीं बचा है, जिससे वहीं पर भाव, एवरेज माल के 122/125 रुपए बोलने लगे हैं तथा माल मिलने की गारंटी नहीं है। इधर राजस्थान वाले हर भाव में प्रतिस्पर्धात्मक खरीद कर लिए थे, लेकिन वहां भी माल अब समाप्ति की ओर है, जिस कारण मध्य प्रदेश की मंडियों में ही बाजार पिछले वर्ष की तुलना में डेढ़ गुने हो गये हैं। इधर कानपुर उन्नाव लाइन में जो कदमा माल आता है, वह वहीं के व्यापारी रोक लिया हैं तथा लोकल में खप रहा है तथा उत्पादक भी माल नहीं बेच रहे हैं। वास्तविकता यह है कि अभी खुलकर ग्राहकी नहीं आ रही है, अन्यथा कहीं भी खपत के अनुरूप माल नहीं है। जब भी फलाहारी मांग निकलेगी, माल मिलना मुश्किल हो जाएगा तथा इसके भाव 200 रुपए प्रति किलो को भी पार कर सकते हैं। सिंघाड़े का उत्पादन पूरे देश में पांच लाख बोरी के करीब होता है, जो इस बार डेढ़ लाख बोरी से अधिक आने की संभावना नहीं है। हम मानते हैं कि सीजन पर पुराना स्टॉक भी बचा था, लेकिन नये माल की उपलब्धि ही नहीं के बराबर रह जाने से, उत्पादक ही माल को घटाकर नहीं बेच रहे है। दूसरी ओर जून के बाद श्रावण के लिए पिसाई वालों की मांग रहने वाली है, इन सारी परिस्थितियों को देखते हुए 200 रुपए प्रति किलो दिल्ली पार कर जाने की संभावना है।