भारत में दिवाली के बाद रबी सीजन की बुआई में तेजी आती है। भारत में रबी सीजन के दौरान मुख्य रूप से गेहूं, चना, सरसों, जीरा और धनिया की बुवाई की जाती हैं किसानों को जो फसल सबसे अधिक लाभदायक होती है, इसकी खेती की जाती है। हालांकि इस बार ठंड की शुरुआत नवंबर के आखिरी हफ्ते में ही हुई है, इसलिए कई राज्यों में रबी सीजन की बुआई में भी देरी हुई है, जो अब धीमी गति से बढ़ रही है। चूंकि किसानों को धनिया और जीरा में ज्यादा दाम मिलने की उम्मीद नहीं थी, इसलिए ज्यादा संभावना थी कि किसान इस बार गेहूं या चने की खेती में अपनी किस्मत आजमाएंगे। ऐसे में चने की खेती की तस्वीर साफ होने में अभी दो से तीन हफ्ते लगेंगे, लेकिन शुरुआती रिपोर्ट के मुताबिक आंध्र प्रदेश और गुजरात में चने की खेती बढऩे के संकेत हैं, जबकि खेती में कमी के संकेत हैं राजस्थान, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में जो चना उत्पादन में शीर्ष पर हैं। जब से केंद्र सरकार ने अगले सीजन के लिए चने का समर्थन मूल्य 5440 रुपये से बढ़ाकर 5650 रुपये प्रति क्विंटल किया है, तब से सभी की निगाहें चने की खेती पर टिकी हैं। फिलहाल दिल्ली में चने की कीमत 7040 रुपये, बीकानेर में 6850 रुपये, जबकि अकोला की मंडी में चने की कीमत 6875 रुपये प्रति क्विंटल है। इन सभी मंडियों में कीमतें सरकार द्वारा तय समर्थन मूल्य से अधिक हैं। हालांकि, एक महीने पहले सभी मंडियों में कीमतें 7,000 रुपये प्रति क्विंटल से ऊपर बोली जा रही थीं। इस गिरावट के लिए ऑस्ट्रेलिया से चने के बढ़ते आयात को जिम्मेदार माना जा रहा है। पिछले तीन वर्षों में चना उत्पादन का आंकड़ा 135 लाख टन से 110 लाख टन के बीच रहा है. जिसमें महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और राजस्थान क्रमश: पहले, दूसरे और तीसरे स्थान पर रहे। इस बार अगर इन तीन राज्यों में खेती घटी तो देश के कुल उत्पादन पर बुरा असर पड़ सकता है। पिछले सीजन में महाराष्ट्र में 26.88 लाख हेक्टेयर, राजस्थान में 21.10 लाख हेक्टेयर और मध्य प्रदेश में 17.75 लाख हेक्टेयर में चने की बुआई हुई थी। जबकि देशभर में कुल खेती 95.89 लाख हेक्टेयर दर्ज की गई। वहीं, आंध्र प्रदेश में चने की खेती इस बार 49 फीसदी बढक़र 2.11 लाख हेक्टेयर हो गई है। फिलहाल तेलंगाना में चने की खेती 12 फीसदी घटकर 1.40 लाख हेक्टेयर रह गई है. भारत ने साल 2024-25 में अब तक 1.62 लाख टन चने का आयात किया है। अब भी ऑस्ट्रेलिया और तंजानिया भारत को बड़े पैमाने पर चना सप्लाई करने की कोशिश कर रहे हैं। व्यापारियों का कहना है कि ऑस्ट्रेलियाई चना सस्ता होने के कारण बड़ी खेप की उम्मीद से बाजार में गिरावट आई है, लेकिन हकीकत यह है कि विदेशी खेप रातोरात आने वाली नहीं है। भारत की नई फसल फरवरी माह से शुरू होगी। जबकि जनवरी के दूसरे हफ्ते से भारत में विदेशी चना आ सकता है। इसलिए जनवरी महीने के बाद बाजार में कुछ अंतराल आ सकता है। तब तक, मिलों द्वारा आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति बनाए रखने के लिए भी बाजार में खरीदारी बने रहने की संभावना है। इस समय गुजरात की मंडियों में पुराने चने की आवक कम हो रही है। अब नया माल आने पर आवक का बोझ बढ़ेगा. हालांकि, चने और बेसन की खरीदारी बढ़ेगी क्योंकि आगे शादियां और क्रिसमस का त्योहार है। जो कीमत को सपोर्ट कर सकता है। हालाँकि भारत परंपरागत रूप से चने का एक महत्वपूर्ण निर्यातक नहीं रहा है। इस बार भी अब तक एक लाख टन चने का निर्यात हो चुका है. जो सीजन के दौरान बढक़र 2.5 लाख टन से तीन लाख टन तक पहुंच सकता है। निर्यात काफी हद तक उत्पादन के आंकड़ों पर निर्भर रहेगा।