देश में कन्ज्यूमर्स का रुझान सस्टेनेबल, अफोर्डेबल ऑल्टरनेटिव्ज की ओर जाने के कारण, लैब ग्रोन डायमंड स्टार्टअप्स का विस्तार हो रहा है। वे देश में अपनी स्पेस क्रिएट कर रहे हैं। ऐसे कन्ज्यूमर्स जो डायमंड ज्वैलरी खरीदने का शौक रखते हैं, लेकिन नेचुरल डायमंड उनकी पहुंच से दूर है, वे अपने डिजायर्ड पीस को लैब ग्रोन डायमंड से पूरा करने लगे हैं। डायमंड सेक्टर में अनेक लीगेसी ज्वैलर्स हैं लेकिन डोमेस्टिक लैब ग्रोन कैटेगरी में कोई इमर्ज नहीं हुआ है। स्पेस में रिक्तता है और इसे स्टार्टअप्स की नई वेव कैप्चर करने लगी है। वे रिटेल फुटप्रिंट बढ़ाने का प्रयास कर रहे हंै ताकि बढ़ती डिमांड को पूरा किया जा सके। डोमेस्टिक लैब ग्रोन डायमंड स्पेस अभी शैशवकाल में है। अभी कन्ज्यूमर्स के बीच जागरुकता आना शेष है। लैब ग्रोन डायमंड स्टार्टअप ज्वैलबॉक्स की को-फाउंडर विदिता कोचर के अनुसार स्पेस धीरे-धीरे बढ़ रही है। स्टार्टअप को शॉर्क टैंक इन्डिया के माध्यम से एक्सपोजर मिला। उनके अनुसार अभी तक कोई भी कम्पनी इस सेक्शन में नेशनल लीडर नहीं बनी है। मार्केट के अवसर को लेकर वे आशावादी हैं। ज्वैलबॉक्स करीब ढाई वर्ष पुराना ब्राण्ड है और वे रिटेल एक्सपेंशन को लेकर प्लान रख रहे हैं। कोलकाता हैडक्वाटर्ड ब्राण्ड वर्तमान में छह शहरों में आठ स्टोर्स ऑपरेट कर रहा है। इनमें दिल्ली, बैंगलुरु और चेन्नई शामिल है। कम्पनी वित्तीय वर्ष के अंत तक 25 नये स्टोर ओपन करने का विचार कर रही है। यह टीयर वन सिटीज में प्रमुख रूप से होंगे। रिटेल पे्रजेंस को बढ़ाया जा रहा है लेकिन हकीकत यह है कि अभी करीब 40 प्रतिशत ऑर्डर ऑनलाइन प्लेटफॉर्म से आ रहे हैं। लैब ग्रोन डायमंड्स का आकर्षण बढ़ रहा है और उनके बीच ज्यादा बढ़ रहा है , जिनके लिये नेचुरल डायमंड्स एक्सपेंसिव हैं। इसलिये यह देश में नया मार्केट डवलप कर रहा है। ज्वैलबॉक्स के अलावा अन्य स्टार्टअप्स भी हैं, जो इस स्पेस में आगे आये हैं। इनमें मुम्बई बेस्ड लाइमलाइट एंड फियोना डायमंड्स, वंडर डायमंड्स, टाइटन कैपीटल बैक्ड ट्रूकैरेट डायमंड्स, ऑपूलेंट ज्वैलरी आदि शामिल हैं। टे्रकएक्सएन डेटा के अनुसार देश में कुल मिलाकर करीब 37 स्टार्टअप्स हैं। किसी और देश की तुलना में यह संख्या सर्वाधिक है। नेचुरल डायमंड से जुदा, लैब ग्रोन डायमंड की प्राइस प्रोडक्शन कॉस्ट और रिटेलर के वैल्यू एडीशन के अनुसार तय होती है। गत करीब एक वर्ष में लैब ग्रोन डायमंड्स की प्राइस 25 से 30 फीसदी घटी हैं। इसका कारण ओवरसप्लाई रहा है। प्रोडक्शन यूनिट्स को सैट करना अफोर्डेबल है और ऐसे में सप्लाई चेन बेहतर रही है। आगे यदि उत्पादन में टेक्नोलॉजिकल एडवांसमेंट होता है तो प्राइस और कम हो सकते हैं। मार्जिन कम होने के कारण चैलेंज है लेकिन मास कन्ज्यूमर्स तक इनकी पहुंच बेहतर हो सकती है।