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16-06-2025

उम्र बढऩे को नकारात्मकता की भावनाओं से जोडक़र देखते हैं 54 फीसदी बुजुर्ग

  •  करीब 54 प्रतिशत बुजुर्ग उम्र बढऩे (वृद्धावस्था) को नकारात्मक भावनाओं से जोडक़र देखते हैं जिनमें अकेलापन (47 प्रतिशत) सबसे आम भावना है। ‘हेल्पएज इंडिया’ के ‘पीढय़िों के बीच संबंधों की प्रक्रिया और वृद्धावस्था पर धारणाओं को समझना’ विषयक अध्ययन ने परिवार में निरंतर संवाद के बावजूद भारत के बुजुर्गों की भावनात्मक जरूरतों और युवाओं की धारणाओं के बीच अंतर को उजागर किया है।  इस सर्वेक्षण के दौरान 10 शहरों में 5,798 उत्तरदाताओं (18-30 वर्ष की आयु के 70 प्रतिशत युवा, 60 वर्ष से अधिक आयु के 30 प्रतिशत बुजुर्ग) के साथ बातचीत की गयी।  इस सर्वेक्षण रिपोर्ट में शहरी बुजुर्गों के सामने अकेलेपन, डिजिटल पहुंच का अभाव और घटते सम्मान की चुनौतियों पर प्रकाश डाला गया है, जबकि युवा उनकी बुद्धिमत्ता की प्रशंसा भी करते हैं। पंद्रह जून को विश्व बुजुर्ग दुव्र्यवहार जागरूकता दिवस पर जारी किए गए इस अध्ययन में शहरी मध्यम और निम्न-मध्यम वर्ग के परिवारों को शामिल किया गया। इसमें पाया गया कि 54 प्रतिशत बुजुर्ग शीघ्र उम्र बढऩे को नकारात्मक भावनाओं से जोडक़र देखते हैं, जिसमें अकेलापन सबसे अधिक प्रचलित भावना है। हालांकि युवाओं में 56 प्रतिशत बुज़ुर्गों को ‘अकेला’ और 51 प्रतिशत उन्हें ‘बुद्धिमान’ मानते हैं, फिर भी वे अक्सर उनकी इस पीड़ा की गहराई को कमतर आंकते हैं। विषय केंद्रित समूह चर्चा के दौरान मदुरै के एक बुजुर्ग ने कहा, ‘‘हमें योजना के बारे में बताया जाता है, हमसे पूछा नहीं जाता। यह चुप रहने से भी अधिक दुखदायी है।’’ इससे परिवार के साथ रहने के बावजूद दरकिनार किये जाने की आम भावना का पता चलता है। दैनिक संवाद आम बात है- 66 प्रतिशत बुज़ुर्गों और 61 प्रतिशत युवाओं ने आमने-सामने संपर्क होने की बात कही, जो मुख्यत: घर पर एक साथ भोजन (युवाओं में 71 प्रतिशत और बुज़ुर्गों में 72 प्रतिशत) और पारिवारिक बातचीत (युवाओं में 87 प्रतिशत और बुज़ुर्गों में 84 प्रतिशत) के माध्यम से होता है। हालांकि, भावनात्मक जुड़ाव अक्सर कम होता है। कानपुर के एक बुज़ुर्ग ने कहा, ‘‘भले ही हम एक ही घर में रहते हों, हम अकेले ही खाते हैं।’’ अध्ययन में पाया गया कि संयुक्त परिवार तथा कानपुर एवं मदुरै जैसे गैर-मेट्रो शहरों में आपसी रिश्ते मजबूत होते हैं, जबकि मुंबई और दिल्ली जैसे मेट्रो शहरों में तेज गति वाली जीवनशैली के कारण आपसी मेलजोल कम होता है। महत्वपूर्ण डिजिटल अंतर, पीढय़िों के बीच की इस दूरी को और जटिल बना देता है। जहां 71 प्रतिशत बुज़ुर्ग केवल बेसिक मोबाइल फोन का इस्तेमाल करते हैं, वहीं महज़ 41 प्रतिशत के पास स्मार्टफोन हैं, और केवल 13 प्रतिशत ही सोशल मीडिया या इंटरनेट से जुड़ाव रखते हैं।

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उम्र बढऩे को नकारात्मकता की भावनाओं से जोडक़र देखते हैं 54 फीसदी बुजुर्ग

 करीब 54 प्रतिशत बुजुर्ग उम्र बढऩे (वृद्धावस्था) को नकारात्मक भावनाओं से जोडक़र देखते हैं जिनमें अकेलापन (47 प्रतिशत) सबसे आम भावना है। ‘हेल्पएज इंडिया’ के ‘पीढय़िों के बीच संबंधों की प्रक्रिया और वृद्धावस्था पर धारणाओं को समझना’ विषयक अध्ययन ने परिवार में निरंतर संवाद के बावजूद भारत के बुजुर्गों की भावनात्मक जरूरतों और युवाओं की धारणाओं के बीच अंतर को उजागर किया है।  इस सर्वेक्षण के दौरान 10 शहरों में 5,798 उत्तरदाताओं (18-30 वर्ष की आयु के 70 प्रतिशत युवा, 60 वर्ष से अधिक आयु के 30 प्रतिशत बुजुर्ग) के साथ बातचीत की गयी।  इस सर्वेक्षण रिपोर्ट में शहरी बुजुर्गों के सामने अकेलेपन, डिजिटल पहुंच का अभाव और घटते सम्मान की चुनौतियों पर प्रकाश डाला गया है, जबकि युवा उनकी बुद्धिमत्ता की प्रशंसा भी करते हैं। पंद्रह जून को विश्व बुजुर्ग दुव्र्यवहार जागरूकता दिवस पर जारी किए गए इस अध्ययन में शहरी मध्यम और निम्न-मध्यम वर्ग के परिवारों को शामिल किया गया। इसमें पाया गया कि 54 प्रतिशत बुजुर्ग शीघ्र उम्र बढऩे को नकारात्मक भावनाओं से जोडक़र देखते हैं, जिसमें अकेलापन सबसे अधिक प्रचलित भावना है। हालांकि युवाओं में 56 प्रतिशत बुज़ुर्गों को ‘अकेला’ और 51 प्रतिशत उन्हें ‘बुद्धिमान’ मानते हैं, फिर भी वे अक्सर उनकी इस पीड़ा की गहराई को कमतर आंकते हैं। विषय केंद्रित समूह चर्चा के दौरान मदुरै के एक बुजुर्ग ने कहा, ‘‘हमें योजना के बारे में बताया जाता है, हमसे पूछा नहीं जाता। यह चुप रहने से भी अधिक दुखदायी है।’’ इससे परिवार के साथ रहने के बावजूद दरकिनार किये जाने की आम भावना का पता चलता है। दैनिक संवाद आम बात है- 66 प्रतिशत बुज़ुर्गों और 61 प्रतिशत युवाओं ने आमने-सामने संपर्क होने की बात कही, जो मुख्यत: घर पर एक साथ भोजन (युवाओं में 71 प्रतिशत और बुज़ुर्गों में 72 प्रतिशत) और पारिवारिक बातचीत (युवाओं में 87 प्रतिशत और बुज़ुर्गों में 84 प्रतिशत) के माध्यम से होता है। हालांकि, भावनात्मक जुड़ाव अक्सर कम होता है। कानपुर के एक बुज़ुर्ग ने कहा, ‘‘भले ही हम एक ही घर में रहते हों, हम अकेले ही खाते हैं।’’ अध्ययन में पाया गया कि संयुक्त परिवार तथा कानपुर एवं मदुरै जैसे गैर-मेट्रो शहरों में आपसी रिश्ते मजबूत होते हैं, जबकि मुंबई और दिल्ली जैसे मेट्रो शहरों में तेज गति वाली जीवनशैली के कारण आपसी मेलजोल कम होता है। महत्वपूर्ण डिजिटल अंतर, पीढय़िों के बीच की इस दूरी को और जटिल बना देता है। जहां 71 प्रतिशत बुज़ुर्ग केवल बेसिक मोबाइल फोन का इस्तेमाल करते हैं, वहीं महज़ 41 प्रतिशत के पास स्मार्टफोन हैं, और केवल 13 प्रतिशत ही सोशल मीडिया या इंटरनेट से जुड़ाव रखते हैं।


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