श्रम एवं रोजगार मंत्रालय ने कहा कि श्रम कल्याण योजनाओं से देश भर में 50 लाख से अधिक असंगठित श्रमिकों, खासकर बीड़ी, सिनेमा और खनन क्षेत्र के कामगारों को लाभ मिला है। हालांकि इन श्रमिकों की कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) और कर्मचारी राज्य बीमा निगम (ईएसआईसी) जैसे अन्य निकायों द्वारा संचालित सामाजिक सुरक्षा योजनाओं तक पहुंच नहीं है। मंत्रालय ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अगुवाई वाली सरकार के 11 साल पूरे होने पर जारी एक बयान में कहा कि वह श्रम कल्याण महानिदेशालय (डीजीएलडब्ल्यू) के माध्यम से देश में असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए समर्पित कल्याणकारी योजनाओं की एक शृंखला को लागू कर रहा है। इनमें बीड़ी, सिनेमा और खनन क्षेत्रों में कार्यरत मजदूरों पर सरकार का विशेष ध्यान है। आधिकारिक बयान के मुताबिक, देश भर के 50 लाख से अधिक श्रमिकों और उनके परिवारों पर सीधा असर डालने वाली ये योजनाएं सरकार की समावेशी और श्रम कल्याण रणनीति की बुनियाद हैं। डीजीएलडब्ल्यू के तहत कार्यरत श्रम कल्याण संगठन (एलडब्ल्यूओ) 18 कल्याण आयुक्तों के माध्यम से इन श्रम कल्याण योजनाओं पर नजर रखता है। इन कल्याणकारी योजनाओं का व्यापक लक्ष्य अक्सर दूरदराज और वंचित क्षेत्रों में रहने वाले श्रमिकों को सामाजिक सुरक्षा, स्वास्थ्य सेवाएं, शिक्षा के लिए वित्तीय सहायता और आवास सहायता प्रदान करना है। कल्याणकारी ढांचे के प्रमुख घटकों में से एक शिक्षा सहायता योजना है जो बीड़ी, सिनेमा और गैर-कोयला खदान श्रमिकों के बच्चों के लिए 1,000 रुपये से 25,000 रुपये तक की वार्षिक छात्रवृत्ति प्रदान करती है। इस योजना में हर साल एक लाख से अधिक आवेदन आते हैं। स्वास्थ्य योजना के तहत डिस्पेंसरी के राष्ट्रीय नेटवर्क के जरिये बाह्य रोगी सेवाएं, हृदय रोग, किडनी प्रत्यारोपण, कैंसर, टीबी जैसी गंभीर बीमीरियों और छोटी सर्जरी के लिए विशेष उपचार पर हुए खर्च की भरपाई की जाती है। छोटी सर्जरी के लिए 30,000 रुपये से लेकर कैंसर के इलाज के लिए 7.5 लाख रुपये तक की वित्तीय सहायता दी जाती है, जिससे कम आय वाले श्रमिकों के लिए जीवन रक्षक स्वास्थ्य सेवा तक पहुंच सुनिश्चित होती है। हालांकि 2016 में शुरू की गई संशोधित एकीकृत आवास योजना अब समाप्त हो गई है और इसे प्रधानमंत्री आवास योजना (पीएमएवाई) में मिला दिया गया है।