क्या लोगों में बदला लेने की भावना का नशा फैल रहा है इस पर आप विचार जरूर करें क्योंकि आजकल यह सिर्फ महसूस ही नहीं किया जा सकता बल्कि साइंस भी इस बात को प्रमाणित करती है कि यह रोग तेजी से फैल रहा है। किसी भी तरह का दर्द, नुकसान, गुस्सा, शर्म, घृणा व पछतावा होने की फीलिंग दिमाग के Pain Network को एक्टिव कर देती है जिसे Anterior Insula कहा जाता है। इस स्थिति में बदला लेने या बदला लेने के बारे में सोचने पर भी दिमाग Dopamine (अच्छा महसूस करने वाला हार्मोन) रिलीज करने लगता है जिससे खुशी या संतुष्टि मिलती है और यह खुशी दर्द, गुस्से, शर्म जैसी फीलिंग्स को कुछ समय के लिए दबा देती है। यह वैसा ही है जैसा शराब या दूसरे तरह का नशा करने के बाद होता है। यह डराने वाला सच है कि बदला लेने की भावना हमारे चारों ओर लोगों में फैल चुकी है। कई रिसर्च और स्टडी में यह साबित भी हो चुका है कि ज्यादातर लोग दिन में कई बार उन लोगों से बदला लेने के बारे में सोचते हैं जिन्होंने उनके साथ कुछ गलत किया या जिसे वो गलत मानते हैं। यह पता लगाने के लिए हमें अपने खुद के घर, स्कूल, कॉलोनी, ऑफिस, सरकार, मीडिया, कंप्यूटर, फोन के नेटवर्क से दूर जाने की जरूरत नहीं है क्योंकि बदले की भावना रखने वाले व बदला लेने के बाद हुए नुकसान को झेल रहे कई लोग हमें अपने आस-पास ही मिल जाएंगे। क्या कोई बदला लेना की लत (addiction) से भी पीडि़त हो सकता है? इसपर न्यूरोसाइंस की एक जर्नल में छपी स्टडी में दावा किया गया है कि ऐसे लोग जो बदला लेने की भावना को अपने ऊपर हावी नहीं होने देते उनके दिमाग का वह हिस्सा ज्यादा पॉवरफुल होता है जो Self-Control व इस तरह के निर्णय लेने में मदद करता है लेकिन बदला लेने की लत जिन्हें हो जाती है उनके दिमाग का यह Function (क्रिया) कमजोर होता जाता है। आसान भाषा में दिमाग को Pleasue व Pain देने वाले Function के बीच बैलेंस बनाकर रखने की शक्ति बदला लेने की भावना के कारण कमजोर हो जाती है जिसे नशे की तरह कुछ समय के लिए दबाने के बाद बदला लेने के बारे में सोचना भी संतुष्टि देने लगता है। लगभग हर किसी को नियम-कानून तोडऩे या गलत व्यवहार करने वालों को सबक सिखाने की इच्छा होती है पर ज्यादातर लेाग अपने Self-Control के कारण व यह सोचकर कुछ नहीं करते कि कहीं कुछ गलत न हो जाए और जो बीत गया उसे भूलने में ही समझदारी है। हालांकि इतिहास बताता है कि बदला लेने के कैसे-कैसे परिणाम लोगों ने अनुभव किए हैं जिनके उदाहरण पर्सनल लाइफ में, कारोबारों में, सरकार व अन्य जगहों पर बड़ी संख्या में देखें जा सकते हैं। कानून की दुनिया में बदला लेने की भावना को लोगों के बीच बेचना ऐसा काम बन चुका है जिसके दम पर इसमें काम करने वाले खूब कमाई कर रहे हैं। अपने क्लाइंटों की बदले की भावना को सपोर्ट करते हुए उनके लिए कानून की लड़ाई लडऩा आम बात हो गई है जो ऐसी भावनाओं को फैलाने में मदद करने वाला काम कहा जा सकता है। यह भी दिलचस्प है कि साइंस कई तरह की थैरेपी से बदले की भावना को कंट्रोल करने के सुझाव तो दे रही है पर साथ ही भगवान बुद्ध की ‘माफ’ करने की सीख के उपयोग को भी प्रमुखता से सपोर्ट करती है। ‘माफ’ करने की भावना जैसी दवा मुफ्त में सभी के पास कभी न खत्म होने वाली मात्रा में उपलब्ध है। एक एक्सपर्ट का कहना है कि बदला लेने की लत से बचने के लिए मॉर्डन साइंस की खोज व पुराने समय के सिद्धांतों का उपयोग करना चाहिए क्योंकि दोनों में ही माफ करने की भावना को डवलप करना सबसे अह्म इलाज बताया गया है। देश, दुनिया और खुद को महान बनाने के लिए लोग न जाने कितने इंटेलिजेंस से भरे काम करते रहते हैं पर इन शब्दों की ताकत को Common Sense का उपयोग करते हुए मन से समझने व व्यवहार में लाने से बचते हैं जो है ‘मैने माफ किया’ और ‘मैं माफी चाहता हूं’, जिनके उपयोग से समाज और दुनिया कैसी हो सकती है, यह अहसास करने की कोशिश करने के लिए खुद को तैयार करने में ही सालों-साल बीतते चले जाते हैं। यूनिवर्सिटी ऑफ केलिफोर्निया द्वारा की गई Brain-Scan की स्टडी में भी यह बात सामने आ चुकी है कि बदला लेने की भावना के कारण कोई एक्शन लेने की बजाए ‘माफी’ को चुनने वाले लोगों के दिमाग के Pain Network को ताकत नहीं मिल पाती यानि वे इस नशे से खुद को बचाने में कामयाब हो जाते हैं।