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Daily Business Newspaper | A Knowledge Powerhouse in Hindi

11-06-2025

स्लो पेमेंट में फंसी कंस्ट्रक्शन इक्विपमेंट की सेल्स

  •  वर्ष 2014 तक जितने एक्सप्रेस-वे बने उनके 60 परसेंट दस साल में ही बन गए। वर्ष 2006-07 में रूरल रोड्स पर केवल 10 हजार करोड़ रुपये खर्च हुए थे जो 2024-25 में 3.31 लाख करोड़ तक पहुंच गये। इस दौरान 14 हजार किमी रेलवे ट्रेक डबलिंग की गई है। लेकिन बजट में घोषित 11.21 लाख करोड़ रूपये को खर्च करने की रफ्तार ने हाल ही में जोर पकड़ा है। जर्मनी की पहचान हिटलर के दौर में बनी फास्ट रोड्स टोबान) के लिए थी वो अब इनके मेंटीनेंस के लिए भी फंड नहीं जुटा पा रहा है। अमेरिका ने पिछली सदी के पहले 30 साल में जो इंफ्रास्ट्रक्चर बना लिया वो आज तक चल रहा है। चीन इंफ्रास्ट्रक्चर डवलपमेंट से कंज्यूमर स्पेंड के दौर में पहुंच चुका है। यानी इंफ्रास्ट्रक्चर कोई ऑलवेदर एक्टिविटी नहीं है। भारत में भी इंफ्रास्ट्रक्चर का काम कुछ सालों में पूरा हो जाएगा फिर सरकार का पूरा फोकस कंज्यूमर इकोनॉमी को बढ़ाने पर होगा। कंस्ट्रक्शन इक्विपमेंट सेल्स की टेबल से पता चलता है कि वित्त वर्ष 2017-18 से वित्त वर्ष 2024-25 के बीच कंस्ट्रक्शन इक्विपमेंट (सीई) की सेल्स 90 हजार यूनिट्स से 1.26 लाख यूनिट्स तक ही पहुंच पाई है। इसका सीधा अर्थ है कि 8 साल में करीब 37 परसेंट  यानी औसत ग्रोथ रेट 5 परसेंट भी नहीं रही है। वित्त वर्ष 24 के मुकाबले वित्त वर्ष 25 में तो ग्रोथ रेट केवल 2.67 परसेंट ही रह गई। इंडस्ट्री रिपोर्ट कहती है कि ज्यादातर  प्रॉजेक्ट फंडिंग नहीं बल्कि लेबर शॉर्टेज के कारण लटक रहे हैं। हालांकि एनेलिस्ट यह भी कहते हैं कि पिछले वित्तीय वर्ष में सुस्त पड़ी ग्रोथ रेट का बड़ा कारण चुनाव नियमों के कारण नए प्रॉजेक्ट शुरू नहीं होना और केंद्र व राज्य के चल रहे प्रॉजेक्ट्स की रफ्तार सुस्त पड़ जाना रहा है। भारतीय निर्माण उपकरण निर्माता संघ (आईसीईएमए) के आंकड़ों के अनुसार भारत की इस इंडस्ट्री का साइज 86 हजार करोड़ रुपये (करीब 10 बिलियन डॉलर) का है। वित्त वर्ष24 में इसकी ग्रोथ रेट 24 परसेंट और वित्त वर्ष 23 में 21 परसेंट थी। आईसीईएमए के अध्यक्ष वी. विवेकानंद के अनुसार इंफ्रास्ट्रक्चर पर काम स्लो पड़ गया है। न केवल नेशनल हाईवे बल्कि रूरल रोड्स पर की काम धीमा पड़ा है। माइनिंग में भी पिछले 15 महीनों से डिमांड घटी है। रिपोर्ट्स कहती है कि कई इंफ्रास्ट्रक्चर प्रॉजेक्ट्स में कॉन्ट्रेक्टर्स के पेमेंट रुके हुए हैं। सबसे ज्यादा क्राइसिस सब कॉन्ट्रेक्टर और एग्रीगेट सप्लायर के सामने है। जो थिन मार्जिन पर काम कर रहे हैं और पेमेंट लटकने के कारण संकट में हैं। जेवर एयरपोर्ट्स से भी ऐसी ही खबरें आ रही हैं और एयरपोर्ट की ओनर कंपनी ने स्लो कंस्ट्रक्शन के कारण टाटा पर डेली पेनल्टी लगाने की बात कही थी। पहले इसका काम जनवरी 25 तक पूरा होना था जिसे बढ़ाकर अप्रेल 25 कर दिया गया। लेकिन अभी भी काम पूरा नहीं हो पाया है।

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स्लो पेमेंट में फंसी कंस्ट्रक्शन इक्विपमेंट की सेल्स

 वर्ष 2014 तक जितने एक्सप्रेस-वे बने उनके 60 परसेंट दस साल में ही बन गए। वर्ष 2006-07 में रूरल रोड्स पर केवल 10 हजार करोड़ रुपये खर्च हुए थे जो 2024-25 में 3.31 लाख करोड़ तक पहुंच गये। इस दौरान 14 हजार किमी रेलवे ट्रेक डबलिंग की गई है। लेकिन बजट में घोषित 11.21 लाख करोड़ रूपये को खर्च करने की रफ्तार ने हाल ही में जोर पकड़ा है। जर्मनी की पहचान हिटलर के दौर में बनी फास्ट रोड्स टोबान) के लिए थी वो अब इनके मेंटीनेंस के लिए भी फंड नहीं जुटा पा रहा है। अमेरिका ने पिछली सदी के पहले 30 साल में जो इंफ्रास्ट्रक्चर बना लिया वो आज तक चल रहा है। चीन इंफ्रास्ट्रक्चर डवलपमेंट से कंज्यूमर स्पेंड के दौर में पहुंच चुका है। यानी इंफ्रास्ट्रक्चर कोई ऑलवेदर एक्टिविटी नहीं है। भारत में भी इंफ्रास्ट्रक्चर का काम कुछ सालों में पूरा हो जाएगा फिर सरकार का पूरा फोकस कंज्यूमर इकोनॉमी को बढ़ाने पर होगा। कंस्ट्रक्शन इक्विपमेंट सेल्स की टेबल से पता चलता है कि वित्त वर्ष 2017-18 से वित्त वर्ष 2024-25 के बीच कंस्ट्रक्शन इक्विपमेंट (सीई) की सेल्स 90 हजार यूनिट्स से 1.26 लाख यूनिट्स तक ही पहुंच पाई है। इसका सीधा अर्थ है कि 8 साल में करीब 37 परसेंट  यानी औसत ग्रोथ रेट 5 परसेंट भी नहीं रही है। वित्त वर्ष 24 के मुकाबले वित्त वर्ष 25 में तो ग्रोथ रेट केवल 2.67 परसेंट ही रह गई। इंडस्ट्री रिपोर्ट कहती है कि ज्यादातर  प्रॉजेक्ट फंडिंग नहीं बल्कि लेबर शॉर्टेज के कारण लटक रहे हैं। हालांकि एनेलिस्ट यह भी कहते हैं कि पिछले वित्तीय वर्ष में सुस्त पड़ी ग्रोथ रेट का बड़ा कारण चुनाव नियमों के कारण नए प्रॉजेक्ट शुरू नहीं होना और केंद्र व राज्य के चल रहे प्रॉजेक्ट्स की रफ्तार सुस्त पड़ जाना रहा है। भारतीय निर्माण उपकरण निर्माता संघ (आईसीईएमए) के आंकड़ों के अनुसार भारत की इस इंडस्ट्री का साइज 86 हजार करोड़ रुपये (करीब 10 बिलियन डॉलर) का है। वित्त वर्ष24 में इसकी ग्रोथ रेट 24 परसेंट और वित्त वर्ष 23 में 21 परसेंट थी। आईसीईएमए के अध्यक्ष वी. विवेकानंद के अनुसार इंफ्रास्ट्रक्चर पर काम स्लो पड़ गया है। न केवल नेशनल हाईवे बल्कि रूरल रोड्स पर की काम धीमा पड़ा है। माइनिंग में भी पिछले 15 महीनों से डिमांड घटी है। रिपोर्ट्स कहती है कि कई इंफ्रास्ट्रक्चर प्रॉजेक्ट्स में कॉन्ट्रेक्टर्स के पेमेंट रुके हुए हैं। सबसे ज्यादा क्राइसिस सब कॉन्ट्रेक्टर और एग्रीगेट सप्लायर के सामने है। जो थिन मार्जिन पर काम कर रहे हैं और पेमेंट लटकने के कारण संकट में हैं। जेवर एयरपोर्ट्स से भी ऐसी ही खबरें आ रही हैं और एयरपोर्ट की ओनर कंपनी ने स्लो कंस्ट्रक्शन के कारण टाटा पर डेली पेनल्टी लगाने की बात कही थी। पहले इसका काम जनवरी 25 तक पूरा होना था जिसे बढ़ाकर अप्रेल 25 कर दिया गया। लेकिन अभी भी काम पूरा नहीं हो पाया है।


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