ग्लोबलाइजेशन के गढ़ में मेक अमेरिका ग्रेट अगेन का नारा बुलंद हो रहा है। फिएट है अमेरिका में गाड़ी बेचनी है तो अमेरिका में बनानी पड़ेगी। फिएट...नहीं ...नहीं इटली का कार ब्रांड फिएट नहीं बल्कि ट्रंप का फरमान। अमेरिका में वर्ष 2024 में 1.60 करोड़ (एक करोड़ साठ लाख) लाइट मोटर वेहीकल्स (कार, यूवी और पिकअप ट्रक) बने थे। वहीं वर्ष 2023 में 1.06 करोड़ (एक करोड़ छह लाख)और वर्ष 2022 में 1.05 करोड़ (एक करोड़ पांच लाख)। प्रेसिडेट ट्रंप चाहते हैं कि कार ही नहीं कंपोनेंट्स भी अमेरिका में बनें। लेकिन ज्यादातर मेड इन अमेरिका वेहीकल्स के बॉडी पार्ट्स से लेकर कंपोनेंट्स तक इंपोर्ट किए जाते हैं और अमेरिका में असेंबली ही होती है। इंडस्ट्री एक्सपटर््स कहते हैं कि कोई ऑटोमोबाइल कंपनी 100 परसेंट ...मेड इन द यूएसए...वेहीकल के जितना करीब पहुंचती है, कॉस्ट उतनी ही बढ़ती जाती है। उदाहरण के लिए फोर्ड एक्सपेडिशन 2025 की पूरी असेंबली केंटकी प्लांट में होती है लेकिन इस पर लगे विंडो स्टिकर पर लिखा है 58 परसेंट कंपोनेंट अमेरिका के बाहर बने हैं...22 परसेंट मेक्सिको में। प्रेसिडेंट ट्रंप ने इंर्पोटेड वेहीकल्स और कंपोनेंट्स पर 25 परसेंट टैरिफ लगा दिया है। हालांकि पूरी ऑटो सप्लाई चेन को अमेरिका में शिफ्ट करना करीब-करीब नामुमकिन है लेकिन अमेरिका, यूरोप कोरिया और जापान की ऑटो कंपनियों ने अमेरिका में पुराने प्लांट्स का विस्तार करने के प्लान पर काम शुरू कर दिया है। शुक्रवार को प्रेसिडेंट ट्रंप ने कहा कि इंपोर्टेड पर स्टील और एल्यूमिनियम पर 50' टैरिफ लगेगा। लेकिन एनेलिस्ट कहते हैं कि स्टील, एल्यूमीनियम और सेमीकंडक्टर चिप्स के लिए जरूरी पैलेडियम जैसे मेटल की माइनिंग से लेकर प्रॉसेसिंग की सुविधा अमेरिका में है ही नहीं। प्लांट लगाने में कम से कम दस साल लगेंगे। माना प्लांट लग भी गए तो कॉस्ट ऑफ प्रॉडक्शन का क्या होगा। मानकर चलिए कि 100 परसेंट मेड इन अमेरिका कार 100 परसेंट ही महंगी हो जाएगी। यानी प्रॉडक्ट वायबिलिटी के सवाल है। फोर्ड के सीईओ जिम फार्ले ने हाल ही कहा...सबकुछ अमेरिका शिफ्ट किया जा सकता है लेकिन 50 हजार डॉलर की कार के साथ ना तो कंपनी जीतेगी और ना कस्टमर। गाड़ी के 15-20 परसेंट कंपोनेंट ऐसे है जो ना तो बन सकते हैं और मिल सकते हैं। एक गाड़ी में करीब 5 हजार डॉलर के तो सेमीकंडक्टर ही लग जाते हैं और ये ज्यादातर एशियाई देशों में बनते हैं। एस एंड पी ग्लोबल मोबिलिटी के अनुसार एक गाड़ी में करीब 20 हजार कंपोनेंट होते हैं और इनकी सप्लाई चेन 50 से 120 देशों के बीच फैली है। उदाहरण के लिए फोर्ड एफ-150 और फोर्ड एक्सपेडिशन प्लेटफॉर्म और ज्यादातर पार्ट्स शेयर करने के बावजूद 2700 पार्ट्स अलग होते हैं। हालांकि ट्रंप एडमिनिस्ट्रेशन कस्टमर के लिए कार को अफोर्डेबल बनाने के लिए टेक्स छूट और ईवी की तरह 7500 डॉलर का इंसेंटिव दे सकता है। एनेलिस्ट कहते हैं कि अमेरिका और कनाडा की सप्लाई चेन तो इतनी इंटीग्रेटेड हैं कि स्टिकर पर भी इन्हें जोडक़र ही लिखने का नियम है। यदि मैन्युफैक्चरिंग की कॉस्ट किनारे रख दें तो भी केवल मैटीरियल कॉस्ट बढऩे से एक गाड़ी कई हजार डॉलर महंगी हो जाएगी।
100 परसेंट मेड इन अमेरिका : ऑटो कन्सल्टेंट एलिक्सपार्टनर्स के मार्क वेकफील्ड कहते हैं कुछ भी असंभव नहीं है लेकिन 90 परसेंट लोकेलाइजेशन महंगा होगा और 95 परसेंट बहुत ही महंगा। 100 परसेंट लोकेलाइजेशन बहुत-बहुत-बहुत महंगा तो होगा ही इसमें समय भी बहुत लगेगा। 95 परसेंट से ज्यादा लोकेलाइजेशन तो करीब-करीब नामुमकिन ही है। डेट्रॉयट के बिग थ्री में से एक के टॉप एक्जेक्टिव कहते हैं केवल अमेरिका और कनाड़ा से ही ज्यादातर कंपोनेट सोर्स करने भर से एक पिकअप ट्रक 7 हजार डॉलर महंगा हो जाएगा। 70 परसेंट अमेरिकी/कनाडाई कंपोनेंट्स वाली गाड़ी को 75 या 80 तक ले जाने भर से लागत 5 हजार डॉलर बढ़ जाएगी और 90 परसेंट करने पर और 5 हजार डॉलर। कॉक्स ऑटोमोटिव के अनुसार अमेरिका मे नई गाड़ी की औसत प्राइस 48 हजार डॉलर है। इसमें करीब 30 हजार डॉलर का मैटीरियल और कंपोनेंट्स लगे होते हैं। सप्लाई चेन को अमेरिका व कनाड़ा शिफ्ट करने से मैटीरियल कॉस्ट 20 हजार डॉलर तक बढ़ सकती है।
फरारी तो फोर्ड क्यों नहीं : कार्स डॉट कॉम की रिपोर्ट कहती हैं कि मेड इन अमेरिका कारों की औसत प्राइस 53200 डॉलर है। जबकि मेक्सिको में 40700, कनाडा में 46148 और चीन में 51 हजार डॉलर। हालांकि फरारी जैसी आइकॉनिक कार केवल इटली में ही बनती है और इसके ज्यादातर कंपोनेंट भी लोकल होते हैं। लेकिन फरारी दुनियाभर में एक साल में केवल 13-14 हजार गाडिय़ां ही बेचती है। ऐसे में लोकल सप्लाई चेन से फोर्ड, जीएमड, होंडा और टोयोटा जैसी 20-30-40-50 लाख यूनिट्स के सेल्स वॉल्यूम वाली कंपनी नहीं बनाई जा सकती। वेकफील्ड कहते हैं फरारी जैसी आइकॉनिक लो वॉल्यूम कार 3-4 लाख डॉलर मेंं पूरी अमेरिका में बन सकती है लेकिन हाई वॉल्यूम गाड़ी बनाने में 10-15 साल और 100 बिलियन डॉलर खर्च होंगे। यानी 100 परसेंट लोकेलाइजेशन के बजाय 75 परसेंट अमेरिकी/कनाडाई कंपोनेंट और फाइनल असेंबली अमेरिका में करना ज्यादा व्यावहारिक है। अभी किआ ईवी6, टेस्ला मॉडल 3 के दो वेरिएंट और होंडा रि•ालाइन में 75 परसेंट कंपोनेंट्स अमेरिका/कनाडाई हैं। कम से कम बीस ऐसे मॉडल हैं जिनमें 70 परसेंट कंपोनेंट अमेरिका और कनाडा से सोर्स किए गए हैं। नेशनल हाईवे ट्रेफिक सेफ्टी एडमिनिस्ट्रेशन (एनएचटीएसए) का एक डेटा कहता है कि वर्ष 2007 में जीएम और फोर्ड के 16 मॉडल ऐसे थे जिनमें 90 परसेंट से ज्यादा कंपोनेंट अमेरिकी और कनाडाई थे। फोर्ड एक्सपेडिशन 95 परसेंट लोकेलाइज्ड थी। लेकिन 2008 के फाइनेंशियल क्राइसिस के बाद से सप्लाई चेन ग्लोबलाइज करने के मिशन में मेक्सिको बड़ा सप्लायर बनकर उभरा है। अमेरिकी सरकार का डेटा कहता है कि अमेरिका के टॉप10 बेस्ट सेलर मॉडलों में 63 से 69 परसेंट कंपोनेंट अमेरिकी और कनाडाई है। लेकिन जर्मन लक्जरी ब्रांड्स और टोयोटा लैक्सस आदि में 1-2 परसेंट भी लोकल कंपोनेंट नहीं है। यह भी है कि टॉप 10 बेस्ट सेलर में फोर्ड और जीएम का एक भी मॉडल नहीं है।

