हां...सही है। एक दौर था जब राजस्थान को बीमारू कहा जाता था। बीमारू यानी आर्थिक, सामाजिक और डेमोग्राफिक नजरिए से पिछड़े राज्य। लेकिन नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 (एनएफएचएस-5) का ताजा डेटा कहता है कि राजस्थान में टोटल फर्टिलिटी रेट यानी कुल प्रजनन दर (टीएफआर) 2.4 से घटकर 2.0 रह गई। जो रिप्लेसमेंट रेट 2.1 से नीचे है। रिप्लेसमेंट रेट वह दर होती है जिस पर बच्चों का जन्म होना चाहिए ताकि जनसंख्या एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक स्थिर बनी रहे। आसान भाषा में कहें तो जितनी मौतें हो रही हैं उतने ही नए जन्म होने चाहिएं। ताकि आबादी घटे नहीं और स्थिर रहे। यदि टीएफआर रिप्लेसमेंट रेट से नीचे फिसल जाती है तो इसका अर्थ है आने वाले वर्षों में राज्य की जनसंख्या में जापान और कोरिया की तरह बुजुर्गों की संख्या बढ़ेगी और जनसंख्या वृद्ध होती जाएगी। इस गिरावट का बड़ा कारण आधुनिक गर्भनिरोधक तरीकों का अपनाया जाना है, जो अब 62.1 प्रतिशत तक पहुंच गया है। हाल ही विकल्प प्रॉजेक्ट द्वारा आयोजित एक वर्कशॉप में विशेषज्ञों ने पहली प्रेगनेंसी को देर से करने और बच्चों के बीच अंतर रखने के स्वास्थ्य लाभों पर जोर दिया। फैमिली वेलफेयर डिपार्टमेंट के डायरेक्टर सुरेंद्र सिंह शेखावत ने कहा महिलाएं अब ज़्यादा संख्या में अस्थायी गर्भनिरोधक तरीके अपना रही हैं, जिससे वे सूझबूझ के साथ निर्णय ले पा रही हैं। एसएमएस हॉस्पिटल की सेवानिवृत्त प्रोफेसर डॉ सुमन मित्तल ने कहा कि पहले बच्चे के जन्म में दो साल की देरी और आगे के बच्चों के बीच अंतर रखने से मां की सेहत बेहतर होती है और मृत्यु दर में कमी आती है। हालांकि टीएफआर में यह गिरावट भारत और विशेष रूप से राजस्थान के लिए बहुत अच्छा संकेत नहीं है। संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (यूएनपीएफ) की रिपोर्ट इंडिया एजिंग 2017 के अनुसार, गिरती हुई प्रजनन दर के साथ, भारत में बुजुर्ग जनसंख्या 2050 तक कुल जनसंख्या का 19 परसेंट हो जाएगी।