भारत और अमेरिका के बीच चल रही ट्रेड एग्रीमेंट की बातचीत में किसी बड़े ब्रेकथ्रू की उम्मीद नहीं है। कहा जा रहा है कि अमेरिका ने स्टील और एल्यूमिनियम पर टैरिफ बढ़ाकर इसे पटरी से उतार दिया है। लेकिन एग्रीकल्चर और डेयरी इंडस्ट्री पर तो डॉनाल्ड ट्रंप की टीम ने पहले से दबाव बना रखा है। पिछले दिनों अमूल वाली जीसीसीडीएफ के चेयरमैन जयेन मेहता ने कहा कि अमेरिका अपने सरप्लस को यहां डंप करना चाहता है। भारत में डेयरी इंडस्ट्री से 8 करोड़ किसानों का घर चलता है। भारत का दूध उत्पादन 239 मिलियन मीट्रिक टन है जबकि अमेरिका का केवल 103 मिलियन। भारत की डेयरी इंडस्ट्री 16.8 बिलियन डॉलर की है। इससे पहले ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड से लेकर कई देश भारत के डेयरी मार्केट को खोलने का दबाव बना चुके हैं। लेकिन डेयरी ही नहीं बल्कि भारत का एग्रीकल्चर सैक्टर भी अमेरिका का टार्गेट पर है। अमेरिका में 88 करोड़ एकड़ फार्म लैंड है जो देश के कुल लैंड एरिया का 39 परसेंट है। इस 88 करोड़ एकड़ फार्म लैंड को केवल 34 लाख किसान जोतते हैं यानी हर अमेरिकी किसान के पास औसत 463 एकड़ जमीन है। इसके उलट भारत में केवल 18 करोड़ एकड़ जमीन है जिस पर 9.30 करोड़ परिवार निर्भर हैं। ट्रंप को चुनाव में अमेरिका की फार्म लॉबी का सबसे ज्यादा सपोर्ट मिला है और भारत के एग्री, डेयरी और पॉल्ट्री मार्केट को खुलवाकर वे इन वोटर्स को रिटर्न गिफ्ट देना चाहते हैं। अमेरिका फिलहाल 8.22 बिलियन डॉलर का डेयरी एक्सपोर्ट करता है।
साथ में लगी टेबल 1 से पता चलता है कि कोविड से पहले वित्त वर्ष 2019-20 में भारत का एग्री एक्सपोर्ट करीब 35.60 बिलियन डॉलर का था जो बड़ी छलांग लगाते हुए वित्त वर्ष 2022-23 में 53.20 बिलियन डॉलर के पीक लेवल तक पहुंच गया। अमेरिका के साथ ही यूके के साथ भी भारत की ट्रेड एग्रीमेंट को लेकर बात चल रही है। लेकिन जिस तेजी से भारत का एग्री एक्सपोर्ट बढ़ा है उतनी ही तेजी से इंपोर्ट भी बढ़ रहा है। वित्त वर्ष 2018-19 में ट्रेड बैलेंस जहां 18 बिलियन डॉलर का था जो पिछले वित्त वर्ष में घटकर 13 बिलियन डॉलर ही रह गया है। टेबल 3 से पता चलता है कि दाल-दलहन का इंपोर्ट 4 साल में ढ़ाई गुना हो गया है। यदि लॉन्ग टर्म देखें तो भारत का एग्री एक्सपोर्ट वित्त वर्ष 2013-14 में 43.3 बिलियन डॉलर था जो वित्त वर्ष 24-25 में 51.9 बिलियन डॉलर यानी केवल 20 परसेंट बढ़ा। इसके उलट इंपोर्ट इसी दौरान 15.5 बिलियन ने 38.5 बिलियन यानी 148 परसेंट बढ़ा है। इस दौरान भारत का ट्रेड सरप्लस 27.7 बिलियन डॉलर से घटकर केवल 13.4 बिलियन डॉलर रह गया। टेबल 3 से पता चलता है कि वित्त वर्ष 2021-22 के बाद केवल एडिबल ऑइल का इंपोर्ट ही घटा है जबकि अमूमन सभी आइटम्स का इंपोर्ट बढ़ रहा है। अमेरिका और यूके की ही तरह ईयू भी भारत से एग्रीकल्चर और डेयरी मार्केट को ओपन एक्सैस कैटेगरी में डालने का दबाव डाल रहे हैं। एक ओर अमेरिका भारत पर मार्केट एक्सैस का दबाव डाल रहा है वहीं भारत के फ्रोजन श्रिम्प (झींगा) पर 17.7 परसेंट (10 परसेंट बेसलाइन मिलाकर) इंपोर्ट ड्यूटी वसूल रहा है। यदि 9 जुलाई के बाद ट्रंप इसे 26 परसेंट कर देते हैं तो भारत से अमेरिका को श्रिम्प एक्सपोर्ट घट सकता है। भारत के श्रिम्प एक्सपोर्ट में 35 परसेंट शेयर अमेरिका का है। भारत का कुल राइस एक्सपोर्ट (बासमाती व नॉन-बासमाती मिलाकर) 12.5 बिलियन डॉलर का है। लेकिन इसका ज्यादातर मार्केट गल्फ और अफ्रीकी देशों में है। पिछले सालों में मसालों का एक्सपोर्ट और इंपोर्ट दोनों बढ़ा है। भारत से जहां हल्दी, धनिया, सौंफ, अदरक और लहसुन का एक्सपोर्ट हो रहा है वहीं कालीमिर्च और इलायची का भारत नेट इंपोर्टर है।

