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01-07-2025

स्पाइन इंजरी के इलाज में नई उम्मीद, शोधकर्ताओं ने डवलप किया इम्प्लांटेबल डिवाइस

  •  ऑस्ट्रेलिया के वैज्ञानिकों की एक टीम ने ऐसा इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस बनाया है, जिसे शरीर में लगाया जा सकता है और जिसकी मदद से रीढ़ की हड्डी में चोट के बाद चलने-फिरने की क्षमता वापस लाई गई है। यह शोध जानवरों पर किया गया और इससे इंसानों और उनके पालतू जानवरों के लिए भी इलाज की उम्मीद जगी है।  रीढ़ की हड्डी में चोट लगने पर इसका इलाज अभी संभव नहीं है और यह व्यक्ति की जिंदगी पर बहुत बुरा असर डालती है। लेकिन न्यूजीलैंड की ऑकलैंड यूनिवर्सिटी के वाइपापा तौमाता राउ में एक परीक्षण एक प्रभावी उपचार की उम्मीद जगाता है। ऑकलैंड विश्वविद्यालय के वाइपापा तौमाता राउ में फार्मेसी स्कूल के वरिष्ठ अनुसंधान फेलो, प्रमुख शोधकर्ता डॉ. बू्रस हारलैंड ने कहा कि जैसे त्वचा पर कट लगने पर घाव अपने आप भर जाता है, वैसे रीढ़ की हड्डी खुद को ठीक नहीं कर पाती, इसी वजह से इसकी चोट बेहद गंभीर होती है और अभी तक लाइलाज है। डॉ. हारलैंड और उनकी टीम ने एक बहुत पतला उपकरण बनाया, जिसे सीधे रीढ़ की हड्डी पर लगाया जाता है, खासकर वहां जहां चोट लगी हो। यह उपकरण वहां विद्युत का हल्का और नियंत्रित प्रवाह भेजता है, जिससे घाव भरने में मदद मिलती है। यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ फार्मेसी में कैटवॉक क्योर प्रोग्राम के निदेशक प्रोफेसर डैरेन स्विरस्किस ने कहा कि इसका मकसद यह है कि रीढ़ की चोट से जो कामकाज रुक जाते हैं, उन्हें फिर से शुरू किया जा सके। चूहों में इंसानों के मुकाबले अपने आप ठीक होने की क्षमता थोड़ी ज्यादा होती है, इसी वजह से वैज्ञानिकों ने चूहों पर इस तकनीक को आज़माया और देखा कि प्राकृतिक रूप से भरने की तुलना में विद्युत स्टिमुलेशन से मदद मिलने पर कितना फर्क पड़ता है। चार हफ्तों बाद, जिन चूहों को हर दिन यह विद्युत स्टिमुलेशन वाला इलाज दिया गया, उनमें चलने-फिरने की क्षमता उन चूहों से बेहतर थी, जिन्हें यह इलाज नहीं दिया गया। 12 हफ्तों की पूरी स्टडी में देखा गया कि ये चूहे हल्के स्पर्श पर भी जल्दी प्रतिक्रिया देने लगे। इसका मतलब है कि इलाज ने चलने-फिरने और महसूस करने दोनों में सुधार किया। 

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स्पाइन इंजरी के इलाज में नई उम्मीद, शोधकर्ताओं ने डवलप किया इम्प्लांटेबल डिवाइस

 ऑस्ट्रेलिया के वैज्ञानिकों की एक टीम ने ऐसा इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस बनाया है, जिसे शरीर में लगाया जा सकता है और जिसकी मदद से रीढ़ की हड्डी में चोट के बाद चलने-फिरने की क्षमता वापस लाई गई है। यह शोध जानवरों पर किया गया और इससे इंसानों और उनके पालतू जानवरों के लिए भी इलाज की उम्मीद जगी है।  रीढ़ की हड्डी में चोट लगने पर इसका इलाज अभी संभव नहीं है और यह व्यक्ति की जिंदगी पर बहुत बुरा असर डालती है। लेकिन न्यूजीलैंड की ऑकलैंड यूनिवर्सिटी के वाइपापा तौमाता राउ में एक परीक्षण एक प्रभावी उपचार की उम्मीद जगाता है। ऑकलैंड विश्वविद्यालय के वाइपापा तौमाता राउ में फार्मेसी स्कूल के वरिष्ठ अनुसंधान फेलो, प्रमुख शोधकर्ता डॉ. बू्रस हारलैंड ने कहा कि जैसे त्वचा पर कट लगने पर घाव अपने आप भर जाता है, वैसे रीढ़ की हड्डी खुद को ठीक नहीं कर पाती, इसी वजह से इसकी चोट बेहद गंभीर होती है और अभी तक लाइलाज है। डॉ. हारलैंड और उनकी टीम ने एक बहुत पतला उपकरण बनाया, जिसे सीधे रीढ़ की हड्डी पर लगाया जाता है, खासकर वहां जहां चोट लगी हो। यह उपकरण वहां विद्युत का हल्का और नियंत्रित प्रवाह भेजता है, जिससे घाव भरने में मदद मिलती है। यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ फार्मेसी में कैटवॉक क्योर प्रोग्राम के निदेशक प्रोफेसर डैरेन स्विरस्किस ने कहा कि इसका मकसद यह है कि रीढ़ की चोट से जो कामकाज रुक जाते हैं, उन्हें फिर से शुरू किया जा सके। चूहों में इंसानों के मुकाबले अपने आप ठीक होने की क्षमता थोड़ी ज्यादा होती है, इसी वजह से वैज्ञानिकों ने चूहों पर इस तकनीक को आज़माया और देखा कि प्राकृतिक रूप से भरने की तुलना में विद्युत स्टिमुलेशन से मदद मिलने पर कितना फर्क पड़ता है। चार हफ्तों बाद, जिन चूहों को हर दिन यह विद्युत स्टिमुलेशन वाला इलाज दिया गया, उनमें चलने-फिरने की क्षमता उन चूहों से बेहतर थी, जिन्हें यह इलाज नहीं दिया गया। 12 हफ्तों की पूरी स्टडी में देखा गया कि ये चूहे हल्के स्पर्श पर भी जल्दी प्रतिक्रिया देने लगे। इसका मतलब है कि इलाज ने चलने-फिरने और महसूस करने दोनों में सुधार किया। 


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