काबुली चने के भाव अंतरराष्ट्रीय बाजारों में काफी ऊंचे हैं। दूसरी ओर जितना अनुमान लगाकर कारोबारी मंदे में आ गए थे, उतना स्टॉक कर्नाटक में भी नहीं है। केवल बाजारों में ग्राहकी कमजोर होने एवं रुपए की तंगी के चलते स्टाक के माल की कटिंग पिछले डेढ़ महीने से चल रही थी, अब अधिकतर छोटे कारोबारियों के माल कट चुके हैं, इन परिस्थितियों में 10 रुपए प्रति किलो की और तेजी दिखाई दे रही है। काबुली चने की फसल आए 6 महीने हो चुके हैं तथा व्यापार सुचारू रूप से नहीं चल पा रहा है, क्योंकि बाजारों में रुपए की काफी तंगी चल रही है। उधर इजिप्ट देशों में अशांति फैली हुई है, जिस कारण वहां के उत्पादक देशों के काबुली चने काफी निपट चुके हैं। इसके अलावा हमारा माल चालू माह के शुरुआत से ही निर्यात में जाने के साथ-साथ टेंडर में काफी खप रहा है, जिसका आम कारोबारियों को सटीक अनुमान नहीं है। यद्यपि इसका उत्पादन 30-31 लाख मैट्रिक टन के करीब हुआ है, जो गत वर्ष के लगभग बराबर है, लेकिन इस बार अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में ऊंचे भाव हैं, पिछले 15 दिनों से निर्यात अनुकूल है तथा घरेलू मांग अच्छी होने से बाजार उछलकर काफी तेज हो गया है। काबुली चना महाराष्ट्र का बिना छना हुआ नीचे में 67/68 रुपए प्रति किलो पिछले सप्ताह रह गया था, वह वर्तमान में छलांग लगाकर 71/72 रुपए प्रति किलो बन गया हैं। गौरतलब है कि ग्राहकी का बाजारों में पूरी तरह सन्नाटा चलने के बावजूद यहां बाजार धीरे-धीरे बढ़ता जा रहा है, कर्नाटक के माल भी कोई लंबे चौड़े नहीं है, जो भी माल है, इस बार दिल्ली सहित बड़ी वितरक मंडियों में ही है, इसलिए मध्य प्रदेश वाले सटोरिए भी हवाबाजी नहीं कर रहे हैं। गत वर्ष अगस्त के महीने में निर्यात की हवाबाजी करके महाराष्ट्र का बिना छना चना 114 रुपए बिकवा दिए थे, उसके भाव आज 72 रुपए का भाव है। बुल्गारिया में ऊंचे भाव चल रहे हैं, जॉर्डन तुर्की एवं सीरिया में भी ज्यादा माल नहीं है, ईरान पहले से ही परेशान है।, कनाडा में भी मीडियम माल जो आता था, वह ज्यादा नहीं है। इन सारी परिस्थितियों को देखते हुए जब भी ग्राहकी निकलेगी, यहां से बाजार कम से कम 10 रुपए प्रति किलो बढ़ जाएगा।