अलसी की बिजाई इस बार कम होने से उत्पादन में भारी कमी आई है। अप्रैल के महीने में फसल आने के बाद स्टाकिस्टों एवं तेल मिलों की चौतरफा लिवाली से अच्छी तेजी आ गई थी, लेकिन बढ़े भाव में मुनाफा वसूली आने से मंदे का करेक्शन आ गया है, लेकिन यहां से फिर से बाजार 7/8 रुपए तेज लग रहा है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में अलसी के भाव पिछले एक सप्ताह के अंतराल काफी बढ़ गए हैं। दूसरी ओर मेडिसिन में खपत बढ़ जाने से मंडियों में शॉर्टेज की स्थिति बनने लगी है, नयी फसल आने में अभी 5 महीने का समय लगेगा। वहीं इस बार अलसी का उत्पादन सभी उत्पादक क्षेत्रों में प्रतिकूल मौसम होने से काफी कम हुआ है तथा पिछले तीन वर्षों से अलसी के भाव काफी नीचे रहने से किसानों का रुझान इसकी बिजाई के तरफ कम गया था। गौरतलब है कि अलसी की बिजाई मुख्य रूप से यूपी, बिहार एवं मध्य प्रदेश में होती है। गत वर्ष अलसी का उत्पादन अधिक होने तथा इंडस्ट्रियल मांग कम रहने से किसानों व कारोबारियों को लाभ नहीं मिल पाया था, क्योंकि जो बाजार सीजन में खुले थे, उससे नीचे भाव पर ऑफ सीजन में माल को काटने पड़े थे। इस बार किसानों ने अलसी की बिजाई कम किया था, जिससे कुल उत्पादन 6 लाख मीट्रिक टन के करीब रह जाने का अनुमान आ रहा है, जबकि गत वर्ष उत्पादन साढ़े आठ लाख मीट्रिक टन हुआ था। गत वर्ष सीजन में 67/70 रुपए प्रति किलो कानपुर हमीरपुर बांदा ग्वालियर रीवा सतना इंदौर भोपाल बीनागंज लाइन में भाव खुले थे, जो इस बार 50/52 रूपए प्रति किलो मार्च के महीने में बिकने के बाद ऊपर में 64/65 रुपए बन गया था। वह फिर ग्राहकी कमजोर होने से वर्तमान में 62/63 रुपए प्रति किलो रह गए हैं। गौरतलब है कि पिराई के लिए तेल मिलों में अलसी की आपूर्ति नहीं बन पा रही है। दूसरी ओर आयुर्वेदिक औषधियों में उपयोग हेतु बड़ी कंपनियों ने हर भाव में खरीद किया जा रहा है। इस वजह से बाजार बढऩे लगे हैं तथा आगे संभावना है कि जो मंडियों में 62/63 रुपए प्रति किलो अलसी बिक रही है, उसके भाव 70/72 रुपए प्रति किलो सर्दियों में हो जाएंगे। व्यापारियों का मानना है कि हर्बल कंपनियां अभी से खरीद करने लगी है। दूसरी ओर आयुर्वैदिक मेडिसिन बनाने में इसकी खपत बढ़ गई है, जबकि उसके अनुरूप मंडियों में इस बार माल उपलब्ध नहीं है। पुराना स्टॉक धीरे-धीरे कट गया है, इन परिस्थितियों में अलसी का व्यापार भरपूर लाभदायक लग रहा है। एमपी राजस्थान के अलावा पूर्वी यूपी एवं बिहार में भी आंशिक रूप में अलसी का उत्पादन होता है तथा वहां भी इस बार प्रति हैक्टेयर उत्पादकता कम होने की बात किसानों द्वारा कही जा रही है। अत: वर्तमान भाव की अलसी में रिस्क नहीं है।