पिछले साल की अपेक्षा इस बार इसबगोल का उत्पादन अधिक होने एवं मांग घटने से इसके भावों में नरमी का रुख बना हुआ है। आगे तेजी के आसार नहीं दिखाई दे रहे है। इस वर्ष इसका उत्पादन मौसम अनुकूल होने से अच्छा बताया जा रहा है। यहां पर पुराना स्टाक भी बकाया अधिक है। एक मोटे अनुमान के मुताबिक प्रति हेक्टेयर में लगभग 10/15 क्विंटल इसकी उपज हो जाती है। व्यापारियों ने बताया कि, पिछले एक-दो महीने के अंतराल इसकी कीमतों में 100 रुपए की गिरावट आ चुकी है। इसकी बुवाई अक्टूबर/नवंबर माह के मध्य में की जाती है। इसके अलावा इसकी डिमांड अधिकतर गर्मियों के दिनों में होती है, लेकिन गर्मियों का सीजन निकलने के बावजूद भी इसकी कीमतों में गिरावट आ चुकी है, क्योंकि इस समय मांग कमजोर बनी हुई है। इसबगोल भूसी की मशीन के द्वारा ग्रेडिंग करके क्वालिटी बनाई जाती है। गुजरात के ऊझा मंडी के सीमावर्ती क्षेत्रों में इसका उत्पादन अधिक हुआ है। इस समय ऊझा मंडी में इसबगोल के भाव 400/500 रुपए बोल रहे हैं। इसका निर्यात अरब देशों के लिए होता है। इसके दाने को मशीनों द्वारा प्रोसेस करके इसकी भूसी निकाली जाती है। इसका उपयोग गैस संबंधी रोगों के लिए अच्छा होने के साथ ही मुस्लिम देशों के लिए डिमांड अधिक होती है। दिल्ली की मंडियो में नया माल अप्रैल माह में शुरू हो चुका है, उस समय इसके भाव 550/700 रुपए प्रति किलो बोल रहे थे। जो इस समय घटकर 450/600 रुपए प्रति किलो रह गए है। इसकी क्वालिटी तीन तरह की होती है। पहले क्वालिटी के भाव यहां पर 450/500 रूपए, दूसरी क्वालिटी के भाव 550/650 रुपए एवं तीसरी क्वालिटी के भाव 700/750 रुपए बोल रहे हैं। इसकी अच्छी डिमांड पहले और आखिरी क्वालिटी की होती है। इसबगोल का उत्पादन मुख्य रूप से ईरान, इराक, अरब, अमीरात एवं भारत के गुजरात, राजस्थान के जालौर, बाड़मेर में होता है। इसका निर्यात अरब, अमेरिका एवं यूरोपियन देशों के लिए होता है। व्यापारियों ने बताया कि, 90 प्रतिशत उत्पादन गुजरात में होता है। इस बार विभिन्न उत्पादक मंडियों में उत्पादन अधिक होने के कारण भारत से इसकी निर्यात मांग कमजोर बनी हुई है। अत: पैदावार अच्छी होने से तेजी के आसार नहीं दिखाई दे रहे हैं।