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Daily Business Newspaper | A Knowledge Powerhouse in Hindi

02-07-2025

गधे बन रहे ग्रोथ का फैक्टर

  •  एक बार की बात है....ऊंट की शादी थी...सबको न्यौता दिया....कोई नहीं गया...लेकिन गधा पहुंच गया। ऊंट ने सोचा सबको बुलाया केवल गधा आया। और गधे ने सोचा पहली बार किसी ने बुलाया है। नतीजा दोनों यार...मिल बैठ कसीदे पढऩे लगे हजार...इस किस्से को संस्कृत में एक सुभाषित में लिखा गया है...

    ऊष्ट्राणां विवाहेषु गीतं गायन्ति गर्दभा: 
    परस्परं प्रशंसन्ति अहो रूपम् अहो ध्वनि:!!
    .....यानी ऊंट के विवाह में गधा गीत गा रहा है, और दोनों एक दूसरे की प्रशंसा कर रहे हैं...। ...वाह वाह क्या रूप है...वाह वाह क्या सुरीली आवाज है। लेकिन समय की बलिहारी है कि गधे आज बिलियन डॉलर बिजनस बन गए हैं। गधों को ग्रोथ का फैक्टर बनाने का यह कारनामा किया है चीन ने। हाल ही एक एनजीओ ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि चीन में हर साल 60 लाख गधे कत्ल किए जा रहे हैं...दवा बनाने के लिए। चीन की एक देसी दवा होती है एजियाओ...फीमेल फर्टिलिटी बढ़ाने की। गधों की खाल से बने जिलेटिन ने यह दवा बनती है... और चीन में इसे मिरेकल मेडिसिन कहा जाता है। इकोनॉमिक सुपरपावर चीन गिरते बर्थरेट (1.2 प्रति  महिला) के आगे बेबस है। आबादी के स्थिर (टीएफआर यानी घटने से बचाने) रहने के लिए बर्थ रेट 2.1 होना चाहिए। बस इसीलिए गधे बिलियन डॉलर बिजनस के लिए क्रिटिकल इनपुट हैं। चीन ने क्रिटिकल रेयर अर्थ के एक्सपोर्ट को बैन कर रखा है। तो गधों के एक्सपोर्ट को बैन कर चीन से बदला लिया जा सकता है? गधों से इम्यूनिटी, एंटी एजिंग, एनीमिया, कैंसर और ब्लड सर्कुलेशन की दवा भी बनाई जाती है। चीन में एजियाओ दवाओं का कारोबार 58 हजार करोड़ यानी 6.8 बिलियन डॉलर का है। गधों की डिमांड का फायदा पाकिस्तान को हो रहा है जिसका यह प्रीमियम पर बिकने वाला एक्सपोर्ट आइटम है। रिपोर्ट कहती है कि गधे शॉर्टसप्लाई हैं इसलिए प्राइस 4-5 साल में 30 हजार से 2 लाख रुपये तक पहुंच गई है और एजियाओ दवाओं का पूरा धंधा ध्वस्त होने के लेवल तक पहुंच गया है। अफ्रीका से भी गधों का एक्सपोर्ट चीन होता है लेकिन अफ्रीकी देशों का भी गधों पर प्रेम उमड़ आया है और उन्होनें इन्हें चीन भेजने पर बैन लगा दिया है। नतीजा अफ्रीकी देशों के अलावा सेंट्रल एशिया और साउथ अमेरिका के देशों से भी गधों को स्मगलिंग कर चीन लाया जा रहा है। कुछ देशों में अवैध बूचडख़ानों में जिलेटिन तैयार कर चीन भेजी जा रही है। ब्रूक एक्शन फॉर वर्किंग हॉर्सेज एंड डोंकीज की रिपोर्ट बताती है कि एजियाओ दवाओं की डिमांड की 90 परसेंट जिलेटिन इंपोर्ट होती है। चीन में वर्ष 2013 में 3,200 मीट्रिक टन जिलेटिन बनाई गई थी जो 2016 में 5,600 मीट्रिक टन हो गई। यह संख्या 2027 तक तीन गुनी होने का अनुमान है। और इसके लिए सालाना 70 लाख गधों की जरूरत होगी। स्थिति यह है कि एक देश गधों के एक्सपोर्ट पर बैन लगाता है और दूसरा देश मौके को लपक लेता है। पिछले सालों में मिस्र, घाना और बुर्किना फासो नए सप्लायर के रूप में सामने आए है और चोरी व कत्ल के कारण माल ढोने और खेती में इस्तेमाल के लिए गधों की किल्लत से होने लगी है।
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गधे बन रहे ग्रोथ का फैक्टर

 एक बार की बात है....ऊंट की शादी थी...सबको न्यौता दिया....कोई नहीं गया...लेकिन गधा पहुंच गया। ऊंट ने सोचा सबको बुलाया केवल गधा आया। और गधे ने सोचा पहली बार किसी ने बुलाया है। नतीजा दोनों यार...मिल बैठ कसीदे पढऩे लगे हजार...इस किस्से को संस्कृत में एक सुभाषित में लिखा गया है...

ऊष्ट्राणां विवाहेषु गीतं गायन्ति गर्दभा: 
परस्परं प्रशंसन्ति अहो रूपम् अहो ध्वनि:!!
.....यानी ऊंट के विवाह में गधा गीत गा रहा है, और दोनों एक दूसरे की प्रशंसा कर रहे हैं...। ...वाह वाह क्या रूप है...वाह वाह क्या सुरीली आवाज है। लेकिन समय की बलिहारी है कि गधे आज बिलियन डॉलर बिजनस बन गए हैं। गधों को ग्रोथ का फैक्टर बनाने का यह कारनामा किया है चीन ने। हाल ही एक एनजीओ ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि चीन में हर साल 60 लाख गधे कत्ल किए जा रहे हैं...दवा बनाने के लिए। चीन की एक देसी दवा होती है एजियाओ...फीमेल फर्टिलिटी बढ़ाने की। गधों की खाल से बने जिलेटिन ने यह दवा बनती है... और चीन में इसे मिरेकल मेडिसिन कहा जाता है। इकोनॉमिक सुपरपावर चीन गिरते बर्थरेट (1.2 प्रति  महिला) के आगे बेबस है। आबादी के स्थिर (टीएफआर यानी घटने से बचाने) रहने के लिए बर्थ रेट 2.1 होना चाहिए। बस इसीलिए गधे बिलियन डॉलर बिजनस के लिए क्रिटिकल इनपुट हैं। चीन ने क्रिटिकल रेयर अर्थ के एक्सपोर्ट को बैन कर रखा है। तो गधों के एक्सपोर्ट को बैन कर चीन से बदला लिया जा सकता है? गधों से इम्यूनिटी, एंटी एजिंग, एनीमिया, कैंसर और ब्लड सर्कुलेशन की दवा भी बनाई जाती है। चीन में एजियाओ दवाओं का कारोबार 58 हजार करोड़ यानी 6.8 बिलियन डॉलर का है। गधों की डिमांड का फायदा पाकिस्तान को हो रहा है जिसका यह प्रीमियम पर बिकने वाला एक्सपोर्ट आइटम है। रिपोर्ट कहती है कि गधे शॉर्टसप्लाई हैं इसलिए प्राइस 4-5 साल में 30 हजार से 2 लाख रुपये तक पहुंच गई है और एजियाओ दवाओं का पूरा धंधा ध्वस्त होने के लेवल तक पहुंच गया है। अफ्रीका से भी गधों का एक्सपोर्ट चीन होता है लेकिन अफ्रीकी देशों का भी गधों पर प्रेम उमड़ आया है और उन्होनें इन्हें चीन भेजने पर बैन लगा दिया है। नतीजा अफ्रीकी देशों के अलावा सेंट्रल एशिया और साउथ अमेरिका के देशों से भी गधों को स्मगलिंग कर चीन लाया जा रहा है। कुछ देशों में अवैध बूचडख़ानों में जिलेटिन तैयार कर चीन भेजी जा रही है। ब्रूक एक्शन फॉर वर्किंग हॉर्सेज एंड डोंकीज की रिपोर्ट बताती है कि एजियाओ दवाओं की डिमांड की 90 परसेंट जिलेटिन इंपोर्ट होती है। चीन में वर्ष 2013 में 3,200 मीट्रिक टन जिलेटिन बनाई गई थी जो 2016 में 5,600 मीट्रिक टन हो गई। यह संख्या 2027 तक तीन गुनी होने का अनुमान है। और इसके लिए सालाना 70 लाख गधों की जरूरत होगी। स्थिति यह है कि एक देश गधों के एक्सपोर्ट पर बैन लगाता है और दूसरा देश मौके को लपक लेता है। पिछले सालों में मिस्र, घाना और बुर्किना फासो नए सप्लायर के रूप में सामने आए है और चोरी व कत्ल के कारण माल ढोने और खेती में इस्तेमाल के लिए गधों की किल्लत से होने लगी है।

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