फैशन ब्रांड प्रादा ने कोल्हापुरी चप्पल की नकल कर शोकेस क्या की उसे घुटनों पर आना पड़ गया। सीएट टायर्स वाले हर्ष गोयनका ने प्रादा के विरोध का झंडा उठाया तो कोल्हापुरी चप्पल बनाने वालों के संगठन ने महाराष्ट्र सरकार से शिकायत कर दी। पिछले सप्ताह मिलान फैशन वीक में हुए शो के दौरान मॉडल्स ने जो ओपन-टो लेदर सैंडल्स पहने थे, वो कोल्हापुरी चप्पल के डिजाइन से चोरी किए गए थे। कोल्हापुरी चप्पल भारत के कारीगर पूरी तरह हाथ से बनाते हैं और इनका इतिहास 12वीं सदी तक जाता है। प्रादा ने भारत के इस जीआई टैग वाले कल्चरल आइटम की चोरी करने से पहले सोचा भी नहीं होगा कि वह बिजली का तार पकड़ रही है। मीडिया से लेकर राजनेताओं के विरोध के बाद प्रादा की ओनर फैमिली के वारिस और हेड ऑफ कॉरपोरेट सोशल रेस्पॉन्सिबिलिटी लोरेन्जो बर्टेली ने महाराष्ट्र चैंबर ऑफ कॉमर्स को एक पत्र भेजकर इस डिजाइन की भारतीय जड़ों को मान्यता दी। उन्होंने लिखा कि यह सैंडल डिजाइन भारत के पारंपरिक हस्तनिर्मित फुटवियर से प्रेरित है, जिसकी विरासत सदियों पुरानी है। बर्टेली ने यह भी जोड़ा कि ये सैंडल अभी डिजाइनिंग के प्रारंभिक चरण में हैं और अभी यह तय नहीं है कि उन्हें बाजार में उतारा जाएगा या नहीं। हालांकि उन्होंने यह कहा कि प्रादा भारतीय कारीगरों के साथ बातचीत के लिए तैयार है। प्रादा के प्रवक्ता ने कहा कि इस डिजाइन की प्रेरणा भारत से ली गई है, और कहा कि कंपनी हमेशा क्राफ्ट्समैनशिप, हेरिटेज और डिजाइन ट्रेडिशन को सम्मान देती है। प्रादा के पुरुषों के लेदर सैंडल्स की कीमत $844 (लगभग 70 हजार रुपये ) से शुरू होती है — वहीं पारंपरिक कोल्हापुरी चप्पल एक हजार रुपये यानी करीब 12 डॉलर में ही मिल जाती हैं। तीन हजार कोल्हापुरी सैंडल कारीगरों का प्रतिनिधित्व करने वाले संगठन के प्रमुख ने प्रादा को औपचारिक शिकायत भेजी थी और यह मुद्दा सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो गया था। कोल्हापुर शाही परिवार के सदस्य संभाजी छत्रपति ने भी कहा कि वे इस बात से आहत हैं कि कारीगरों को उनकी सदियों पुरानी विरासत और इतिहास के लिए कोई मान्यता नहीं दी गई। हालांकि, कोल्हापुर के एक व्यापारी दिलीप मोरे ने कहा कि कुछ कारीगर प्रादा की सैंडल डिजाइन देखकर खुश हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि उनकी दस्तकारी को अब ग्लोबल पहचान मिल रही है।