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24-04-2025

तुवर : और घटने की गुंजाइश नहीं

  •  तुवर में दाल मिलों की मांग अनुकूल नहीं होने से एक सप्ताह में 100 रुपए प्रति क्विंटल की गिरावट आ गई है, लेकिन अब इन भावों में घटने की गुंजाइश नहीं है, क्योंकि रबी सीजन की घरेलू फसल अनुकूल नहीं है तथा आगे दाल की खपत बढऩे वाली है। तुवर की घरेलू फसल रबी एवं खरीफ दोनों ही सीजन में आई हुई गत वर्ष की तुलना में 14-15 प्रतिशत अधिक है, लेकिन अभी भी हम रंगून मोजांबिक सुडान एवं मालावी तुवर पर ही निर्भर हैं। विदेशों में भी भाव नीचे होने से लेमन तुवर चालू सप्ताह के अंतराल 100 रुपए घटकर यहां 7300 रुपए प्रति कुंतल रह गई है। गौरतलब है कि गत एक दशक से बिजाई लगातार घटती जा रही है, जिसके चलते सकल उत्पादन में प्रत्येक वर्ष कमी आ रही है। हम मानते हैं कि गत वर्ष ऊंचे भाव को देखकर किसानों ने महाराष्ट्र कर्नाटक में बिजाई अधिक किया था, जिसके प्रभाव से दिसंबर से लेकर अब तक बाजार दबे हुए हैं। यहां 7400 रुपए प्रति कुंतल पिछले सप्ताह लेमन तुवर बिकने के बाद वर्तमान में 7300/7325 रुपए रह गई है। वास्तविकता यह है कि जो रबी सीजन में तुवर पलामू डालटनगंज नगर उटारी लाइन के साथ-साथ इधर यूपी के जौनपुर सुल्तानपुर लखनऊ सीतापुर हरदोई लाइन की आती थी, वह पिछले एक दशक में सिमट कर 10 प्रतिशत रह गई है। इसके अलावा एमपी के कटनी नीमच लाइन में आती थी, वह भी एक दशक के अंतराल काफी बिजाई कम होने से उपलब्धि घटती जा रही है। रबी व खरीफ सीजन को मिलाकर सकल उत्पादन 40 लाख मीट्रिक टन होने का अनुमान आ रहा है, जो गत वर्ष 34 लाख मीट्रिक टन था। दूसरी ओर कुछ क्षेत्रों में बर्मा में भी फसल अनुकूल नहीं है, पुराना स्टॉक तुवर का काफी निकल चुका है, वह अब किसी भी कारोबारी के पास नहीं है। पुराना माल पाइप लाइन में पहले ही समाप्त हो चुका है। इधर दिसंबर वाली कर्नाटक आंध्र प्रदेश एवं महाराष्ट्र में तुवर की आवक टूटने लगी है तथा अफ्रीकन देशों में इस बार तुवर का स्टाक एवं उत्पादन दोनों ही कम होने की खबर आ रही है, इसीलिए रंगून के अलावा और किसी भी देश से आयात पड़ता नहीं है। अभी वर्तमान में जो लेमन तुवर 7300/7320 रुपए चल रही है, इसमें अब घटने की गुंजाइश नहीं है। अत: जहां भी 7300 रुपए के आसपास तुवर मिले, खरीद करना चाहिए। हम मानते हैं कि वर्तमान भाव पर घटने की गुंजाइश तो नहीं है, लेकिन गत वर्ष की तरह लंबी तेजी का व्यापार भी इस बार नहीं करना चाहिए, क्योंकि 6 लाख मैट्रिक टन घरेलू फसल अधिक है। दूसरी ओर बर्मा से  फुल अप्रैल वर्तमान भाव में बिकवाल है।

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तुवर : और घटने की गुंजाइश नहीं

 तुवर में दाल मिलों की मांग अनुकूल नहीं होने से एक सप्ताह में 100 रुपए प्रति क्विंटल की गिरावट आ गई है, लेकिन अब इन भावों में घटने की गुंजाइश नहीं है, क्योंकि रबी सीजन की घरेलू फसल अनुकूल नहीं है तथा आगे दाल की खपत बढऩे वाली है। तुवर की घरेलू फसल रबी एवं खरीफ दोनों ही सीजन में आई हुई गत वर्ष की तुलना में 14-15 प्रतिशत अधिक है, लेकिन अभी भी हम रंगून मोजांबिक सुडान एवं मालावी तुवर पर ही निर्भर हैं। विदेशों में भी भाव नीचे होने से लेमन तुवर चालू सप्ताह के अंतराल 100 रुपए घटकर यहां 7300 रुपए प्रति कुंतल रह गई है। गौरतलब है कि गत एक दशक से बिजाई लगातार घटती जा रही है, जिसके चलते सकल उत्पादन में प्रत्येक वर्ष कमी आ रही है। हम मानते हैं कि गत वर्ष ऊंचे भाव को देखकर किसानों ने महाराष्ट्र कर्नाटक में बिजाई अधिक किया था, जिसके प्रभाव से दिसंबर से लेकर अब तक बाजार दबे हुए हैं। यहां 7400 रुपए प्रति कुंतल पिछले सप्ताह लेमन तुवर बिकने के बाद वर्तमान में 7300/7325 रुपए रह गई है। वास्तविकता यह है कि जो रबी सीजन में तुवर पलामू डालटनगंज नगर उटारी लाइन के साथ-साथ इधर यूपी के जौनपुर सुल्तानपुर लखनऊ सीतापुर हरदोई लाइन की आती थी, वह पिछले एक दशक में सिमट कर 10 प्रतिशत रह गई है। इसके अलावा एमपी के कटनी नीमच लाइन में आती थी, वह भी एक दशक के अंतराल काफी बिजाई कम होने से उपलब्धि घटती जा रही है। रबी व खरीफ सीजन को मिलाकर सकल उत्पादन 40 लाख मीट्रिक टन होने का अनुमान आ रहा है, जो गत वर्ष 34 लाख मीट्रिक टन था। दूसरी ओर कुछ क्षेत्रों में बर्मा में भी फसल अनुकूल नहीं है, पुराना स्टॉक तुवर का काफी निकल चुका है, वह अब किसी भी कारोबारी के पास नहीं है। पुराना माल पाइप लाइन में पहले ही समाप्त हो चुका है। इधर दिसंबर वाली कर्नाटक आंध्र प्रदेश एवं महाराष्ट्र में तुवर की आवक टूटने लगी है तथा अफ्रीकन देशों में इस बार तुवर का स्टाक एवं उत्पादन दोनों ही कम होने की खबर आ रही है, इसीलिए रंगून के अलावा और किसी भी देश से आयात पड़ता नहीं है। अभी वर्तमान में जो लेमन तुवर 7300/7320 रुपए चल रही है, इसमें अब घटने की गुंजाइश नहीं है। अत: जहां भी 7300 रुपए के आसपास तुवर मिले, खरीद करना चाहिए। हम मानते हैं कि वर्तमान भाव पर घटने की गुंजाइश तो नहीं है, लेकिन गत वर्ष की तरह लंबी तेजी का व्यापार भी इस बार नहीं करना चाहिए, क्योंकि 6 लाख मैट्रिक टन घरेलू फसल अधिक है। दूसरी ओर बर्मा से  फुल अप्रैल वर्तमान भाव में बिकवाल है।


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