बीते सीजन में साबूदाने का उत्पादन 38-40 प्रतिशत अधिक होने से पूरी तरह मंदे का दलदल बन गया है। नई फसल आने में अभी एक महीने का समय बाकी है, उसमें पोल आ रही है। अत: अब भाव निम्न स्तर पर आ चुके हैं, इसमें और मंदा नहीं लग रहा है। साबूदाना का मुख्य उत्पादन दक्षिण भारत के तमिलनाडु में होता है। इस बार कच्चे माल की उपलब्धि अधिक होने तथा मौसम साफ रहने से साबूदाने का उत्पादन 38-40 प्रतिशत अधिक हुआ है। यही कारण है की सीजन में जो यहां 71/72 रुपए प्रति किलो बिका था, उसके भाव 58/60 रुपए रह गए हैं। नीचे वाले माल 57 रुपए भी बोल रहे हैं। वास्तविकता यह है कि पुराना स्टॉक ज्यादा बचा था तथा बाजारों में रुपए की तंगी होने से स्टॉक क्षमता अनुकूल नहीं थी। वहीं विगत 2 वर्षों की तेजी को देखकर सीजन में खपत वाले उद्योगों के द्वारा भी माल भारी मात्रा में पकड़ लिया गया, जिससे पिछले डेढ़ महीने के अंतराल मांग केवल 52-53 प्रतिशत रह गई है। यही कारण है कि बाजार लगातार टूटता चला गया है। अब बाहरी ट्रेड के कारोबारी के काफी माल कट चुके हैं तथा बड़े कारोबारियों के हाथ में माल है, इसलिए यहां से अब और मंदा नहीं लग रहा है। जो साबूदाना यहां 60 रुपए प्रति किलो बोल रहे हैं, यह सेलम कोयंबटूर लाइन से आज की तारीख में माल मंगाने पर 63 रुपए प्रति किलो का पड़ता लग रहा है, इन परिस्थितियों में अब वर्तमान भाव में धैर्य रखने की जरूरत है। यहां से बाजार पांच-सात रुपए बढ सकता है। नई फसल इसकी अप्रैल में आएगी। वहीं किसानों का रुझान इस बार शकरकंद की तरफ कम है।