सुप्रीम कोर्ट ने इंडस्ट्रीयल कस्टमर्स को बिजली की मुक्त पहुंच को विनियमित करने के लिए राजस्थान बिजली नियामक आयोग (आरईआरसी) के 2016 के नियमों की वैधता को बरकरार रखा। न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति प्रसन्ना बी वरले की पीठ ने राजस्थान हाईकोर्ट के फैसलों के खिलाफ दायर अपीलों के एक समूह को खारिज कर दिया। रामायण इस्पात प्राइवेट लिमिटेड एवं अन्य इंडस्ट्रीयल कस्टमर्स ने ये याचिकाएं दायर की थी। हाईकोर्ट के फैसलों में आरईआरसी (मुक्त पहुंच संबंधी नियम एवं शर्तें) विनियम, 2016 की वैधता को बरकरार रखा गया था। इन नियमों के तहत वितरण लाइसेंसधारी से मुक्त पहुंच और अनुबंधित मांग के जरिये बिजली की एक साथ निकासी पर सीमा लगाई गई थी। इस नियम के मुताबिक, यदि किसी कस्टमर ने खुली पहुंच के जरिये बिजली खरीदने का विकल्प चुना है, तो अनुबंधित मांग को खुली पहुंच के जरिये तय की गई बिजली की मात्रा से कम कर दिया जाएगा। इंडस्ट्रीयल कस्टमर्स की मुख्य शिकायत यह थी कि उनके निजी इस्तेमाल वाले बिजली संयंत्रों (सीपीपी) और बड़े कस्टमर्स पर मुक्त पहुंच बिजली के एक साथ उपयोग और वितरण लाइसेंसधारियों से अनुबंधित मांग के बारे में प्रतिबंध लगा दिए गए। कंपनियों ने दलील दी थी कि इस तरह के प्रतिबंध बिजली अधिनियम, 2003 के लिहाज से मनमाने और प्रतिकूल थे। सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने माना कि आरईआरसी के पास बिजली अधिनियम, 2003 के तहत वैधानिक प्राधिकार है, जो उचित प्रतिस्पर्धा और ग्रिड अनुशासन सुनिश्चित करने के लिए खुली पहुंच को विनियमित करने और शर्तों को लागू करने के लिए है।