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05-05-2025

देश की गौरवशाली विरासत को संजोने, संरक्षित करने का वक्त

  •  सस्टेनेबिलिटी विजनरी, ग्रीन आर्किटेक्ट और चेंजमेकर गौरव शौरी ने फिक्की फ्लो जयपुर चैप्टर के साथ एक सेशन में भारत देश के गौरवपूर्ण अतीत की बात की। नारायण निवास पैलेस में आयोजित सेशन सस्टेनेबिलिटी पर आधारित था। इवेंट में फिक्की फ्लो जयपुर चैप्टर की चेयरपर्सन डॉ.रिम्मी शेखावत, मेम्बर्स उपस्थित रही।  गौरव शौरी ने कहा कि भारत को सोने की चीडिय़ां कहा जाता था और वह इससे भी कहीं अधिक मूल्यवान अतीत की धरोहर रखता है। आज हम पश्चिम की अंधी दौड़ में भाषा, भोजन, भेष, भजन और भवन के भारतीय महत्व को भूल रहे हैं। जबकि वे हमारी ही चीजें स्वयं की बातकर हम पर आजमा रहे हैं। जरूरी है कि हम अपनी युवा पीढ़ी, बच्चों को हमारी भाषा, संस्कृति, वेषभूषा आदि के बारे में ज्ञान दें। यह बतायें कि वे हम पर हावी होने का प्रयास करें तो हम अपने स्वविवेक से काम करें। समझने की बात यह है कि उनके देश की आबोहवा के अनुसार ऑलिव ऑइल, कॉफी आदि उनके लिये बेहतर हो सकती है लेकिन हमारे देश का आबोहवा उसके लिये नहीं है। अपने गौरव को संजोने का काम हमें करना है। हमारा देश टेक्सटाइल्स, मसाले, व्यंजन, खाना पकाने की अदभुत विधि, हैंडीक्राफ्ट्स की बेजोड़, अदभुत मिसाल समेटे हुए है। विभिन्न प्रकार के फैब्रिक, कारीगरी, कशीदाकारी आदि की गिनती करने लगें तो अंगुलियां कम पड़ जाती हैं। इसी प्रकार हमारा पहनावा राज्य, मौसम के अनुसार है, पश्चिम की दौड़ में न पड़ें। अपनी मां, दादी, नानी से रसोई आदि का ज्ञान प्राप्त करें। वह हमारी असली शिक्षिका है। क्या हमारे दादा-दादी, नाना-नानी के वक्त मोबाइल, व्हाट्सएप, सोशियल मीडिया था, तब भी वे कितने खुशहाल थे। आज हम सब होते हुए भी लोनलीनैस की बात सुनते हैं। जरुरी है कि युवा पीढ़ी अपने गांव, कस्बे की विशेषताओं को संजोने का काम करे। कपल्स अपने बच्चों को हमारी संस्कृति के बारे में शिक्षा दें। अकेडेमिक्स की शिक्षा तो स्कूल में मिल जायेगी लेकिन इसके बिना वह अधूरी ही कहलायेगी। अब एक उदाहरण देखें कि विशेष संस्कृति ने यह कह दिया कि कंडों पर बना भोजन ठीक नहीं है। यह प्रदूषण का स्रोत है, तो यह जान लें कि एलपीजी पर बना भोजन पेट में गैस बनाता है, बेशक उस पर भोजन पकाने में धूआं नहीं निकलता लेकिन यह कई गुना प्रदूषण वातावरण को दे देता है। उन्होंने एक और गहरी बात बताई कि हमारी कहावतों को देखें, उनमें हमारे पूर्वजों ने कितना संदेश छुपा दिया है। मोर नाचे तो इसका मतलब है कि बारिश आने को है।

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देश की गौरवशाली विरासत को संजोने, संरक्षित करने का वक्त

 सस्टेनेबिलिटी विजनरी, ग्रीन आर्किटेक्ट और चेंजमेकर गौरव शौरी ने फिक्की फ्लो जयपुर चैप्टर के साथ एक सेशन में भारत देश के गौरवपूर्ण अतीत की बात की। नारायण निवास पैलेस में आयोजित सेशन सस्टेनेबिलिटी पर आधारित था। इवेंट में फिक्की फ्लो जयपुर चैप्टर की चेयरपर्सन डॉ.रिम्मी शेखावत, मेम्बर्स उपस्थित रही।  गौरव शौरी ने कहा कि भारत को सोने की चीडिय़ां कहा जाता था और वह इससे भी कहीं अधिक मूल्यवान अतीत की धरोहर रखता है। आज हम पश्चिम की अंधी दौड़ में भाषा, भोजन, भेष, भजन और भवन के भारतीय महत्व को भूल रहे हैं। जबकि वे हमारी ही चीजें स्वयं की बातकर हम पर आजमा रहे हैं। जरूरी है कि हम अपनी युवा पीढ़ी, बच्चों को हमारी भाषा, संस्कृति, वेषभूषा आदि के बारे में ज्ञान दें। यह बतायें कि वे हम पर हावी होने का प्रयास करें तो हम अपने स्वविवेक से काम करें। समझने की बात यह है कि उनके देश की आबोहवा के अनुसार ऑलिव ऑइल, कॉफी आदि उनके लिये बेहतर हो सकती है लेकिन हमारे देश का आबोहवा उसके लिये नहीं है। अपने गौरव को संजोने का काम हमें करना है। हमारा देश टेक्सटाइल्स, मसाले, व्यंजन, खाना पकाने की अदभुत विधि, हैंडीक्राफ्ट्स की बेजोड़, अदभुत मिसाल समेटे हुए है। विभिन्न प्रकार के फैब्रिक, कारीगरी, कशीदाकारी आदि की गिनती करने लगें तो अंगुलियां कम पड़ जाती हैं। इसी प्रकार हमारा पहनावा राज्य, मौसम के अनुसार है, पश्चिम की दौड़ में न पड़ें। अपनी मां, दादी, नानी से रसोई आदि का ज्ञान प्राप्त करें। वह हमारी असली शिक्षिका है। क्या हमारे दादा-दादी, नाना-नानी के वक्त मोबाइल, व्हाट्सएप, सोशियल मीडिया था, तब भी वे कितने खुशहाल थे। आज हम सब होते हुए भी लोनलीनैस की बात सुनते हैं। जरुरी है कि युवा पीढ़ी अपने गांव, कस्बे की विशेषताओं को संजोने का काम करे। कपल्स अपने बच्चों को हमारी संस्कृति के बारे में शिक्षा दें। अकेडेमिक्स की शिक्षा तो स्कूल में मिल जायेगी लेकिन इसके बिना वह अधूरी ही कहलायेगी। अब एक उदाहरण देखें कि विशेष संस्कृति ने यह कह दिया कि कंडों पर बना भोजन ठीक नहीं है। यह प्रदूषण का स्रोत है, तो यह जान लें कि एलपीजी पर बना भोजन पेट में गैस बनाता है, बेशक उस पर भोजन पकाने में धूआं नहीं निकलता लेकिन यह कई गुना प्रदूषण वातावरण को दे देता है। उन्होंने एक और गहरी बात बताई कि हमारी कहावतों को देखें, उनमें हमारे पूर्वजों ने कितना संदेश छुपा दिया है। मोर नाचे तो इसका मतलब है कि बारिश आने को है।


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