ठोस कचरे के प्रबंधन पर लागू 18 प्रतिशत जीएसटी को घटाने की सिफारिश करते हुए एक अध्ययन में कहा गया है कि इससे सरकार को सालाना करीब 65,000 करोड़ रुपये का नुकसान हो रहा है। साथ ही इससे कबाड़ का पर्यावरण अनुकूल तरीके से प्रबंधन भी प्रभावित हो रहा है। शोध संस्थान ‘सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट’ (सीएसई) की जारी एक रिपोर्ट कहती है कि कबाड़ खरीदने-बेचने वाले छोटे कारोबारी 18 प्रतिशत माल एवं सेवा कर (जीएसटी) का बोझ नहीं उठा सकते हैं लिहाजा वे नकद में लेनदेन करते हैं और कर नहीं चुकाते हैं। अध्ययन रिपोर्ट के मुताबिक, इससे न केवल सरकारी राजस्व को नुकसान होता है बल्कि कर चुकाने वाले संगठित कारोबारियों के लिए असंगठित कारोबारियों से प्रतिस्पर्धा कर पाना मुश्किल हो जाता है। रिपोर्ट कहती है कि कबाड़ कारोबार में असंगठित क्षेत्र के इस दबदबे से सालाना करीब 65,000 करोड़ रुपये का जीएसटी नुकसान होता है, जो वर्ष 2035 तक बढक़र 86,700 करोड़ रुपये तक पहुंच सकता है। रिपोर्ट के मुताबिक, धातु, प्लास्टिक, ई-कचरा और औद्योगिक उप-उत्पादों पर समान रूप से 18 प्रतिशत कर लगाने से रिसाइक्लिंग को बढ़ावा देने के प्रयास कमजोर पड़ते हैं। सीएसई की औद्योगिक प्रदूषण इकाई के कार्यक्रम निदेशक निवित के. यादव ने कहा कि मौजूदा जीएसटी व्यवस्था में नए और पुनर्चक्रित उत्पादों में कोई भेदभाव नहीं होने से पर्यावरण के अनुकूल पुनर्चक्रित उत्पाद महंगे पड़ते हैं। संस्था के कार्यक्रम प्रबंधक शुभ्रजीत गोस्वामी ने कहा कि राष्ट्रीय स्टील नीति के तहत वर्ष 2030 तक 40' स्टील उत्पादन कबाड़ से होना है, लेकिन मौजूदा कर दरें छोटे कारोबारियों के लिए संगठित ढंग से कामकाज को अलाभकारी बना रही हैं। धातु, प्लास्टिक और ई-कचरे पर जीएसटी को चरणबद्ध तरीके से घटाकर पहले 12' और फिर 5' पर लाया जाए। साथ ही असंगठित क्षेत्र के कामगारों को संगठित दायरे में लाकर उन्हें सामाजिक सुरक्षा, स्वास्थ्य सेवाएं और सस्ती ऋण सुविधा देने का भी सुझाव दिया गया है। जीएसटी दर घटाकर और आधे असंगठित कारोबारियों को संगठित क्षेत्र में लाने से वर्ष 2035 तक 62,000 करोड़ रुपये से अधिक का शुद्ध राजस्व प्राप्त किया जा सकता है।