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13-08-2025

जीरो-एमिशन को अनिवार्य बनाने का मिशन

  •  भारत ईवी को बढ़ावा देने के लिए थाईलैंड के मॉडल पर चल सकता है। भारत सरकार के साइंस एंड टेक्नोलॉजी विभाग की एक रिसर्च संस्था ने सुझाव दिया है कि ऑटो कंपनियों को कुल सालाना सेल्स का एक तय प्रतिशत जीरो एमिशन वेहीकल्स (जीईवी) बेचना अनिवार्य किया जाना चाहिए। यह प्रस्ताव नेशनल रिसर्च एंड डवलपमेंट काउंसिल (एनआरडीसी) द्वारा तैयार किया गया है, जिसका उद्देश्य कार्बन एमिशन में कमी और क्लीन एनर्जी ट्रांसपोर्टेशन को प्रमोट करना है। एनआरडीसी के अनुसार, सरकार को हर साल एक मिनिमम जीईवी सेल्स का कोटा तय करना होगा जिसे पूरा करना सभी कंपनियों के लिए अनिवार्य होगा। यदि कोई कंपनी इस कोटा टार्गेट को पूरा नहीं कर पाती है तो उसे अन्य कंपनियों से जीईवी क्रेडिट खरीदने होंगे। वहीं, जिन कंपनियों की जीईवी सेल्स टार्गेट से ज्यादा है उन्हें एक्स्ट्रा क्रेडिट मिलेंगे जिन्हें बेचकर वे कमाई भी कर सकती है। दुनियाभर की पेट्रोल-डीजल कार वाली कंपनियां कैफे नॉम्र्स से चूकने पर लगने वाली मोटी पेनल्टी बचाने के लिए टेस्ला और बीवाईडी आदि ईवी कंपनियों से इसी तर्ज पर क्रेडिट्स खरीदती हैं। अमेरिका और चीन में भी क्रेडिट ट्रेडिंग सिस्टम लागू है। एनआरडीसी का कहना है कि भारत में ईवी का दखल बहुत सीमित है। भारत के पैसेंजर वेहीकल सैगमेंट में ईवी का शेयर करीब 2.5 परसेंट है जबकि बस में यह 10 परसेंट तक है। केंद्र सरकार की 14,500 करोड़ की फेम-2 सब्सिडी योजना ने ईवी सेल्स को पुश करने की कोशिश की थी लेकिन ईवी अडॉप्शन की रफ्तार उम्मीद से कमजोर रही है। विशेषज्ञों का मानना है कि केवल इंसेंटिव स्कीम से ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा। जब तक जीईवी नॉम्र्स को अनिवार्य नहीं किया जाएगा, तब तक वित्त वर्ष 2030 तक 30 परसेंट ईवी टार्गेट को हासिल करना मुश्किल होगा। एनआरडीसी के अनुसार पेट्रोल-डीजल वाले वेहीकल्स के लगातार नए मॉडल लॉन्च हो रहे हैं जिससे पेट्रोल और डीजल वेहीकल्स की संख्या बढ़ेगी और पॉल्यूशन में कमी लाना कठिन होगा। इसे देखते हुए अनिवार्य जीईवी नॉम्र्स लागू किए जाने चाहिएं। एक्सपर्ट्स का अनुमान है कि यदि जीईवी कोटा लागू होता है, तो ईवी मैन्युफैक्चरिंग में इंवेस्टमेंट बढ़ेगा, बैटरी मैन्युफैक्चरिंग और चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर का विस्तार तेज होगा। बस, ट्रक और ऑटो-रिक्शा जैसे सीवी सैगमेंट्स में यह पॉलिसी विशेष रूप से फायदेमंद हो सकती है। एनेलिस्ट्स का मानना है कि जीईवी नॉम्र्स को मानक को चरणबद्ध तरीके से लागू करना अधिक व्यावहारिक होगा। इस प्रयोग को सबसे पहले सीवी पर किया जाना चाहिए फिर पैसेंजर वेहीकल्स में।

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जीरो-एमिशन को अनिवार्य बनाने का मिशन

 भारत ईवी को बढ़ावा देने के लिए थाईलैंड के मॉडल पर चल सकता है। भारत सरकार के साइंस एंड टेक्नोलॉजी विभाग की एक रिसर्च संस्था ने सुझाव दिया है कि ऑटो कंपनियों को कुल सालाना सेल्स का एक तय प्रतिशत जीरो एमिशन वेहीकल्स (जीईवी) बेचना अनिवार्य किया जाना चाहिए। यह प्रस्ताव नेशनल रिसर्च एंड डवलपमेंट काउंसिल (एनआरडीसी) द्वारा तैयार किया गया है, जिसका उद्देश्य कार्बन एमिशन में कमी और क्लीन एनर्जी ट्रांसपोर्टेशन को प्रमोट करना है। एनआरडीसी के अनुसार, सरकार को हर साल एक मिनिमम जीईवी सेल्स का कोटा तय करना होगा जिसे पूरा करना सभी कंपनियों के लिए अनिवार्य होगा। यदि कोई कंपनी इस कोटा टार्गेट को पूरा नहीं कर पाती है तो उसे अन्य कंपनियों से जीईवी क्रेडिट खरीदने होंगे। वहीं, जिन कंपनियों की जीईवी सेल्स टार्गेट से ज्यादा है उन्हें एक्स्ट्रा क्रेडिट मिलेंगे जिन्हें बेचकर वे कमाई भी कर सकती है। दुनियाभर की पेट्रोल-डीजल कार वाली कंपनियां कैफे नॉम्र्स से चूकने पर लगने वाली मोटी पेनल्टी बचाने के लिए टेस्ला और बीवाईडी आदि ईवी कंपनियों से इसी तर्ज पर क्रेडिट्स खरीदती हैं। अमेरिका और चीन में भी क्रेडिट ट्रेडिंग सिस्टम लागू है। एनआरडीसी का कहना है कि भारत में ईवी का दखल बहुत सीमित है। भारत के पैसेंजर वेहीकल सैगमेंट में ईवी का शेयर करीब 2.5 परसेंट है जबकि बस में यह 10 परसेंट तक है। केंद्र सरकार की 14,500 करोड़ की फेम-2 सब्सिडी योजना ने ईवी सेल्स को पुश करने की कोशिश की थी लेकिन ईवी अडॉप्शन की रफ्तार उम्मीद से कमजोर रही है। विशेषज्ञों का मानना है कि केवल इंसेंटिव स्कीम से ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा। जब तक जीईवी नॉम्र्स को अनिवार्य नहीं किया जाएगा, तब तक वित्त वर्ष 2030 तक 30 परसेंट ईवी टार्गेट को हासिल करना मुश्किल होगा। एनआरडीसी के अनुसार पेट्रोल-डीजल वाले वेहीकल्स के लगातार नए मॉडल लॉन्च हो रहे हैं जिससे पेट्रोल और डीजल वेहीकल्स की संख्या बढ़ेगी और पॉल्यूशन में कमी लाना कठिन होगा। इसे देखते हुए अनिवार्य जीईवी नॉम्र्स लागू किए जाने चाहिएं। एक्सपर्ट्स का अनुमान है कि यदि जीईवी कोटा लागू होता है, तो ईवी मैन्युफैक्चरिंग में इंवेस्टमेंट बढ़ेगा, बैटरी मैन्युफैक्चरिंग और चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर का विस्तार तेज होगा। बस, ट्रक और ऑटो-रिक्शा जैसे सीवी सैगमेंट्स में यह पॉलिसी विशेष रूप से फायदेमंद हो सकती है। एनेलिस्ट्स का मानना है कि जीईवी नॉम्र्स को मानक को चरणबद्ध तरीके से लागू करना अधिक व्यावहारिक होगा। इस प्रयोग को सबसे पहले सीवी पर किया जाना चाहिए फिर पैसेंजर वेहीकल्स में।


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