जीएसटी अपीलीय न्यायाधिकरण (जीएसटीएटी) के एंटी-प्रोफिटियरिंग डिविजन ने अपने पहले आदेश में सबवे की फ्रेंचाइजी अर्बन एसेंस को 5.47 लाख से अधिक की प्रोफिटियरिंग राशि जमा करने का निर्देश दिया है। यह नेशनल एंटी-प्रोफिटियरिंग अथॉरिटी के समाप्त होने और प्रतिस्पर्धा आयोग द्वारा मामलों के निपटारे के बाद एंटी-प्रोफिटियरिंग मैकेनिज्म की शुरुआत का संकेत है। आदेश में कहा गया डीजीएपी (महानिदेशक एंटी-प्रोफिटियरिंग) की रिपोर्ट सही है कि प्रतिवादी (कंपनी) ने जीएसटी घटने का फायदा कस्टमर को नहीं देकर 5,47,005 रुपये का लाभ कमाया। अत: प्रतिवादी को 5,45,005 राशि तथा 18 परसेंट ब्याज (15 नवंबर 2017 से वसूली की तारीख तक) केंद्र और महाराष्ट्र राज्य द्वारा बनाए उपभोक्ता कल्याण कोष में 3 महीने के भीतर जमा करना होगी। जीएसटीएटी के अध्यक्ष संजय कुमार मिश्रा (प्रेसिडेंट, प्रिंसिपल बेंच) ने 5 अगस्त के फैसले में कहा कि 14 नवंबर 2017 तक कोई विवाद नहीं है। 15 नवंबर 2017 से रेस्तरां पर जीएसटी 18 परसेंट से घटाकर 5 परसेंट कर दिया गया था। लेकिन कंपनी ने कीमतें नहीं घटाईं। और ना ही किसी वैध कारण से कीमत बढ़ाने का कोई सबूत पेश नहीं किया। इस प्रकार, कस्टमर को 7.56 परसेंट की वास्तविक कर कटौती का लाभ नहीं मिला। एएमआरजी एंड एसोसिएट्स के सीनियर पार्टनर रजत मोहन ने कहा कि यह जीएसटीएटी के एंटी-प्रोफिटियरिंग डिविजन का पहला अंतिम आदेश है। इससे संकेत मिलता है कि यह नई इकाई अब पूरी तरह सक्रिय हो चुकी है। अध्यक्ष ने खुद मामले की सुनवाई की और आदेश पारित किया, जो एंटी-प्रोफिटियरिंग कार्यवाही को गंभीरता से लेने का संकेत है। ट्रिब्यूनल ने डीजीएपी की सभी प्रॉडक्ट्स पर की गई प्रोफिटियरिंग की गणना को बरकरार रखा, जबकि शिकायत केवल एक आइटम को लेकर थी। इससे यह स्पष्ट हुआ कि जांच का दायरा व्यापक है। साथ ही, परिचालन लागत बढऩे के तर्क को खारिज करते हुए ट्रिब्यूनल ने स्पष्ट किया कि ऐसी बातें जीएसटी दर कटौती का लाभ उपभोक्ताओं को देने की कानूनी बाध्यता को कम नहीं कर सकतीं, और कीमतों में उचित कमी करके यह लाभ देना ही होगा।