जेन•ाी, जेनएक्स और जेनएल्फा भारत की इकोनॉमी के ग्रोथ ड्राइवर बने हुए हैं। इनमें भी जेन•ाी तो छा चुके हैं और हर कंपनी कैच दैम यंग...के मंत्रा के साथ काम कर रही है। आपको शायद भरोसा नहीं हो लेकिन देश में मर्सिडीज कार ओनर्स की एवरेज एज 44 से घटकर 38 साल रह गई है। और शेयर मार्केट में ट्रेडिंग में तो टीनेजर्स ने जैसे धावा ही बोल दिया है। भारत में डीमैट अकाउंट होल्डर्स की एवरेज एज 31 से घटकर 29 साल हो गई है। जिस तेजी से कंज्यूमर इकोनॉमी में न्यूजेन की धमक बढ़ रही है वैसे ही लोन लेने की एंट्री एज भी लगातार कम हो रही है। एक दौर ऐसा था जब 1970 के दशक में एचडीएफसी ने होमलोन की शुरुआत की थी तब यह किसी प्रिविलेज से कम नहीं था। होनलोन की जरूरत होने के बावजूद एप्लाई करने तक से लोग झिझकते थे और डाउनपेमेंट का अरेंजमेंट भी बड़ा रोड़ा था। साथ में लगी टेबल से पता चलता है कि 60 के दशक में पैदा हुए लोगों ने अपने जीवन का पहला लोन औसत 47 साल की उम्र में लिया था। जैसे-जैसे जन्म का दशक बढता गया लोन लेने की औसत एंट्री एज भी घटती चली गई। फाइनेंस को लेकर न्यूजेन इतनी कंफर्टेबल हो चुकी है कि यूपीआई पेमेंट तो 10 साल का बच्चा ही करने लगता है। 15-16 साल की उम्र में आप बच्चे को फोन दिला देते हैं। बैंक अकाउंट के साथ पॉकेट मनी शुरु हो जाती है। फिनटेक पैसाबाजार की रिपोर्ट कहती है कि फाइनेंस मैनेजमेंट को लेकर अवेयरनैस बढऩे के साथ ही क्रेडिट की एंट्री एज बहुत तेजी से घट रही है और 20 से 30 साल की उम्र में नई पीढ़ी पहला लोन ले रही है।
रियल एस्टेट डेटा के अनुसार लक्जरी प्रॉपर्टी खरीदने वालों में 32 परसेंट ऐसे हैं जिनकी उम्र 30 साल से कम है। फिनटेक स्टार्टअप पैसाबाजार की स्टडी के अनुसार तीन पीढिय़ों में पहला लोन लेने की औसत आयु में 21 साल की गिरावट आई है। कॉरपोरेशन बैंक के पूर्व अध्यक्ष चेरियन वर्गीज कहते हैं कि उधार लेने की क्षमता सीधे डिस्पोजेबल आय के आकार से जुड़ी हुई है। उन्होंने कहा इसकी शुरुआत आमतौर पर कंज्यूमर ड्यूरेबल लोन, पर्सनल लोन या होम लोन से होती है। 70 के दशक में ईएमआई चुकाने लायक भी आमदनी नहीं होती थी। आईटी और स्टार्टअप्स एक्जेक्टिव्स को बढिय़ा पैकेज मिल रहा है। कई बैंक तो सीधे कंपनी के साथ ही टाईअप कर लेते हैं जिससे पूरे ग्रुप के लिए प्री-अप्रूव्ड लोन मिल जाता है। एक करोड़ से अधिक कंज्यूमर के लोन बिहेवियर पर की गई स्टडी के अनुसार 1990 के दशक में पैदा हुए व्यक्ति आमतौर पर 25-28 वर्ष की आयु तक अपना पहला लोन ले लेते हैं जो आमतौर पर क्रेडिट कार्ड, पर्सनल लोन या फिर कंज्यूमर ड्यूरेबल लोन होता है। भारत में पहला क्रेडिट कार्ड 80 के दशक की शुरुआत में सेंट्रल बैंक ने मास्टर्ड कार्ड के साथ लॉन्च किया गया था। तब यह हाई इनकम कैटेगरी वाले लोगों को ही मिल पाता था। लेकिन आज देश में 10 करोड़ से ज्यादा लोग क्रेडिट कार्ड का इस्तेमाल करते हैं। स्टडी के अनुसार 1960 के दशक में पैदा हुए लोगों के लिए पहला लोन होमलोन हुआ करता था। वहीं 1970 और 1980 के दशक में पैदा हुए लोग अपना लोन कार या टू-व्हीलर के लिए लेते थे। पहली बार होम लोन लेने वाले की औसत आयु 41 (1970 के दशक में पैदा हुए लोगों के लिए) से घटकर 28 (1990 के दशक में जन्मे लोगों के लिए) हो गई है।
