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Daily Business Newspaper | A Knowledge Powerhouse in Hindi

02-08-2025

बढ़ते क्रेज से इंडिया में लक्जरी वॉच का ग्रोथ फेज

  •  भारत में स्विस लक्जरी घडिय़ों की डिमांड तेज-तेज टिकिंग कर रही है। यह सवाल ब्रांड, रिटेलर और कंज्यूमर एनैलिस्ट की जुबान पर है। स्विस वॉच इंडस्ट्री फेडरेशन के अनुसार, जनवरी-मई 2025 के बीच भारत को स्विस घडिय़ों का एक्सपोर्ट 104.3 मिलियन स्विस फ्रैंक (लगभग 1,100 करोड़) रहा, जो पिछले वर्ष की इसी अवधि में 94.2 मिलियन फ्रैंक था। वर्ष 2024 में स्विस लक्जरी घडिय़ों का भारत को एक्सपोर्ट 2,600 करोड़ रूपये तक पहुंच गया था। भारत 2025 की पहली छमाही में दुनिया का 21वां सबसे बड़ा स्विस घड़ी मार्केट बन गया है। भारत ही नहीं, स्पेन (10 परसेंट), ताइवान (9 परसेंट) और तुर्की (8 परसेंट) में भी स्विस लक्जरी घडिय़ों की सेल्स में ग्रोथ हो रही है यानी ये नए ग्रोथ मार्केट बनकर उभरे हैं। वहीं, चीन (-23.1 परसेंट), थाईलैंड (-22.7 परसेंट) और हांगकांग (-13.8 परसेंट) पावरहाउस मार्केट्स स्लोडाउन की गिरफ्त में हैं। स्विस लक्जरी घडिय़ों के ग्लोबल मार्केट में भारत का  शेयर केवल 1 परसेंट है लेकिन ग्रोथ रेट तेज है। इथोस वॉचेज के चेयरमैन यशोवर्धन साबू के अनुसार बायर  अब लक्जरी घडिय़ों को इंवेस्टमेंट और स्टाइल दोनों मान रहे हैं। रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 40 परसेंट लक्जरी घडिय़ां गिफ्ट करने के लिए खरीदी जा रही है, खासतौर पर शादियों और त्योहारों में। वहीं 64 परसेंट बायर ब्रांड इमेज को सबसे ज्यादा महत्व देते हैं और 30 परसेंट बायर घड़ी पर 1.2 लाख रुपये से ज्यादा खर्च करते हैं। भारत डिजिटल लक्जरी रिटेलिंग में ग्लोबली सबसे आगे है। यहां 70 परसेंट बायर ऑनलाइन प्लेटफॉर्म या ब्रांड वेबसाइट से लक्जरी घडिय़ां खरीदते हैं, जो अमेरिका (38 परसेंट) के मुकाबले दोगुना है। स्विट्जलैंड सहित तीन अन्य देशों के ग्रुप के साथ भारत की ट्रेड डील हो गई है जो अक्टूबर से लागू होगी। इस इंडिया-ईएफटीए ट्रेड डील के कारण अगले 7 वर्ष में भारत में स्विस घडिय़ों पर 22 परसेंट इंपोर्ट टैरिफ घटकर •ाीरो हो जाएगा।  इससे ऑफिशियल ब्रांड्स को लाभ मिलेगा और अनऑथराइज़्ड या ग्रे मार्केट पर निर्भरता कम होगी। लक्जरी घडिय़ां वैसे भी इंवेस्टमेंट का साधन बन रही हैं। रोलेक्स जैसी घडिय़ों की लिमिटेड स्केल मैन्युफैक्चरिंग होती है और कई बार इन पर 6 साल तक की वेटिंग होती है। जिसके चलते इसकी वैल्यू भी बढ़ती रहती है। नाइट फ्रेंक की रिपोर्ट कहती है कि लक्जरी घडिय़ों की वैल्यू पिछले 10 वर्ष में 9 परसेंट सीएजीआर से बढ़ी है जो आर्ट, विंटेज एंड क्लासिक कार व डायमंड्स के भी ज्यादा है। वर्ष 2020 में रोलेक्स इंडेक्स में 80 परसेंट  की तेजी आई, जबकि उसी साल निफ्टी 29 परसेंट, एसएंडपी500 55 परसेंट और सोना 30 परसेंट ही बढ़ा था।

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बढ़ते क्रेज से इंडिया में लक्जरी वॉच का ग्रोथ फेज

 भारत में स्विस लक्जरी घडिय़ों की डिमांड तेज-तेज टिकिंग कर रही है। यह सवाल ब्रांड, रिटेलर और कंज्यूमर एनैलिस्ट की जुबान पर है। स्विस वॉच इंडस्ट्री फेडरेशन के अनुसार, जनवरी-मई 2025 के बीच भारत को स्विस घडिय़ों का एक्सपोर्ट 104.3 मिलियन स्विस फ्रैंक (लगभग 1,100 करोड़) रहा, जो पिछले वर्ष की इसी अवधि में 94.2 मिलियन फ्रैंक था। वर्ष 2024 में स्विस लक्जरी घडिय़ों का भारत को एक्सपोर्ट 2,600 करोड़ रूपये तक पहुंच गया था। भारत 2025 की पहली छमाही में दुनिया का 21वां सबसे बड़ा स्विस घड़ी मार्केट बन गया है। भारत ही नहीं, स्पेन (10 परसेंट), ताइवान (9 परसेंट) और तुर्की (8 परसेंट) में भी स्विस लक्जरी घडिय़ों की सेल्स में ग्रोथ हो रही है यानी ये नए ग्रोथ मार्केट बनकर उभरे हैं। वहीं, चीन (-23.1 परसेंट), थाईलैंड (-22.7 परसेंट) और हांगकांग (-13.8 परसेंट) पावरहाउस मार्केट्स स्लोडाउन की गिरफ्त में हैं। स्विस लक्जरी घडिय़ों के ग्लोबल मार्केट में भारत का  शेयर केवल 1 परसेंट है लेकिन ग्रोथ रेट तेज है। इथोस वॉचेज के चेयरमैन यशोवर्धन साबू के अनुसार बायर  अब लक्जरी घडिय़ों को इंवेस्टमेंट और स्टाइल दोनों मान रहे हैं। रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 40 परसेंट लक्जरी घडिय़ां गिफ्ट करने के लिए खरीदी जा रही है, खासतौर पर शादियों और त्योहारों में। वहीं 64 परसेंट बायर ब्रांड इमेज को सबसे ज्यादा महत्व देते हैं और 30 परसेंट बायर घड़ी पर 1.2 लाख रुपये से ज्यादा खर्च करते हैं। भारत डिजिटल लक्जरी रिटेलिंग में ग्लोबली सबसे आगे है। यहां 70 परसेंट बायर ऑनलाइन प्लेटफॉर्म या ब्रांड वेबसाइट से लक्जरी घडिय़ां खरीदते हैं, जो अमेरिका (38 परसेंट) के मुकाबले दोगुना है। स्विट्जलैंड सहित तीन अन्य देशों के ग्रुप के साथ भारत की ट्रेड डील हो गई है जो अक्टूबर से लागू होगी। इस इंडिया-ईएफटीए ट्रेड डील के कारण अगले 7 वर्ष में भारत में स्विस घडिय़ों पर 22 परसेंट इंपोर्ट टैरिफ घटकर •ाीरो हो जाएगा।  इससे ऑफिशियल ब्रांड्स को लाभ मिलेगा और अनऑथराइज़्ड या ग्रे मार्केट पर निर्भरता कम होगी। लक्जरी घडिय़ां वैसे भी इंवेस्टमेंट का साधन बन रही हैं। रोलेक्स जैसी घडिय़ों की लिमिटेड स्केल मैन्युफैक्चरिंग होती है और कई बार इन पर 6 साल तक की वेटिंग होती है। जिसके चलते इसकी वैल्यू भी बढ़ती रहती है। नाइट फ्रेंक की रिपोर्ट कहती है कि लक्जरी घडिय़ों की वैल्यू पिछले 10 वर्ष में 9 परसेंट सीएजीआर से बढ़ी है जो आर्ट, विंटेज एंड क्लासिक कार व डायमंड्स के भी ज्यादा है। वर्ष 2020 में रोलेक्स इंडेक्स में 80 परसेंट  की तेजी आई, जबकि उसी साल निफ्टी 29 परसेंट, एसएंडपी500 55 परसेंट और सोना 30 परसेंट ही बढ़ा था।


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