डॉनाल्ड ट्रंप का यह बयान देखिये...मैं पवन ऊर्जा के बारे में तुमसे ज़्यादा जानता हूं। यह बहुत महंगी है, और सभी पक्षियों को मार डालती है। अगर पक्षियों का कब्रिस्तान देखना है, तो कभी पवनचक्की (विंडमिल) के नीचे जाओ।...आरके पचौरी का नाम आपने सुना होगा। इंटरगवमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) के प्रमुख थे। इसने एक रिपोर्ट में यह कहकर तहलका मचा दिया था कि भारत के हिमालयी ग्लेशियर 2035 तक पिघलकर खत्म हो जाएंगे। यह बात है 2010 की और आज चल रहा है 2025...। यह रिपोर्ट बिल्कुल गलत-सलत थी और इसका मकसद हंगामा खड़ा करना था। हंगामा हुआ भी लेकिन बैकफायर कर गया और आईपीसीसी को रिपोर्ट वापस लेनी पड़ गई। एक और मामला है। आप दशकों से सुनते रहे हैं कि क्लाइमेट चेंज के कारण गर्मी बढऩे से वेदर (मौसम) साइकल बदल जाएगा। सर्दी कम और गर्मी ज्यादा पड़ेगी। बेमौसम और बहुत तेज या बहुत कम बारिश होगी। फसल बर्बाद हो जाएगी और करोड़ों लोग भुखमरी की गिरफ्त में आ जाएंगे। क्लाइमेट चेंज का सबसे खतरनाक असर भारत पर होगा। हालांकि भारत में ऐसे बहुत से लक्षण दिख रहे हैं। लेकिन अमेरिका और यूरोप के देश भी हीटवेट और कोल्ड स्नैप, पोलर वॉर्टेक्स, ब्लि•ाार्ड यानी बेतहाशा ठंड के शिकार हैं। गर्मियों में हालात इतने खराब हो जाते हैं कि इन ठंडे देशों में भी हीटवेट के कारण लोगों की जान जाने लगती है। लेकिन एक लेटेस्ट रिपोर्ट कहती है कि क्लाइमेट चेंज के कारण पूरी धरती गर्म हो रही है लेकिन भारत की गर्म होने की रफ्तार कम है। दक्षिण एशियाई क्षेत्र विशेष रूप से भारतीय उपमहाद्वीप अन्य इलाकों के मुकाबले धीमी गति से गर्म हो रहा है। बीते 40 वर्ष में इस इलाके का तापमान प्रति दशक सिर्फ 0.09 डिग्री सेल्सियस बढ़ा है, जबकि ग्लोबल एवरेज 0.30 डिग्री रहा है। भारत वाले ही अक्षांशों वाले अन्य इलाकों में भी टेंपरेचर औसत 0.23 डिग्री बढ़ा है। विशेषज्ञों का मानना है कि पंजाब, हरियाणा से लेकर बांग्लादेश तक फैले इंडो-गैंगेटिक मैदान में बहुत ज्यादा एयर पॉल्यूशन के कारण तापमान में बढ़ोतरी धीमी गति से हो रही है। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) की एक्जेक्टिव डायरेक्टर अनुमिता रॉयचौधुरी के अनुसार पश्चिमी देशों ने एयरोसोल और ग्रीनहाउस गैसों के स्तर में कटौती की है, लेकिन दक्षिण एशियाई देशों में एयरोसोल का स्तर अभी भी बहुत ऊंचा है। खासकर कोयले की बिजली और इंडस्ट्रियल पॉल्यूशन के कारण एयरोसोल लेवल बढ़ रहा है। वर्ष 2024 के बर्कले अर्थ टेंपरेचर मैप के अनुसार भारत जैसे क्षेत्र में तापमान में असामान्य वृद्धि जहां केवल 1-2 डिग्री रही, जबकि आर्कटिक में यह 4-6 डिग्री और उत्तरी यूरोप में 2-4 डिग्री रही। एयरोसोल दरअसल वातावरण में सूर्य की रोशनी को बिखेरते हैं और सतह तक कम गर्मी पहुंचने देते हैं। इन छोटे कणों के कारण सूरज की किरणें ज्यादा परावर्तित होती है जिससे धरती का टेंपरेचर कम बढ़ता है। यह मास्किंग इफेक्ट कहलाता है और यह ग्रीनहाउस गैसों के प्रभाव को छिपा देता है। रिपोर्ट के अनुसार जैसे-जैसे यह परावर्तक परत कमजोर होगी, ग्रीनहाउस गैसों का पूरा असर सतह पर नजर आने लगेगा। कार्बन डाई ऑक्साइड का वायुमंडल में प्रभाव सदियों तक बना रहता है, जिससे हीट स्ट्रेस और मूसलधार बारिश और बाढ़ जैसी घटनाएं आने वाले सालों में बढ़ेंगी। रॉयचौधुरी कहती हैं कि टेंपरेचर बढऩे की स्लो रफ्तार दरअसल एक टाइम बम है जो फटेगा तो तबाही लाएगा।