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02-06-2025

हर यूट्यूबर अमीर नहीं होता: बीसीजी

  •  एयरटेल का वो जिंगल याद है ना...हर एक फ्रेंड जरूरी होता है। लेकिन बीसीजी ने कहा है कि हर एक यूट्यूबर अमीर नहीं होता। बीसीजी दुनिया की दिग्गज बिजनस कन्सल्टेंट कंपनी है। हालांकि भारत में डिजिटल कॉन्टेंट क्रिएटर्स की दुनिया गोल्डफीवर (दीवानगी) जैसी लगती है। लेकिन कांच के पार की सच्चाई इतनी चमकीली नहीं है। वीडियो वायरल हो जाते हैं पर कमा कितने क्रिएटर पाते हैं। बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप (बीसीजी) की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत के 20-25 लाख कॉन्टेंट क्रिएटर हैं लेकिन इनमें से केवल 8-10 परसेंट ही सही तरह से कमाई कर पा रहे हैं। बाकी 90 परसेंट मामूली ही कमा पाते हैं या फिर महीने के आखिर में खाली हाथ रह जाते हैं। तो सवाल है कि 90' क्रिएटर खाली हाथ क्यों हैं। रिपोर्ट कहती है लाखों लोग ऐसे हैं जो अपनी ऑडियंस तैयार करने की कोशिश में लगे रहते हैं लेकिन कुछ ही अपने चैनल को स्थायी आमदनी का जरिया बना पाने में कामयाब हो पा रहे हैं। ज्यादातर क्रिएटर ऐसे हैं जो यूट्यूब से मिलने वाले एड रेवेन्यू और मिल गई तो ब्रांड डील पर निर्भर रहते हैं। ब्रांड डील भी उन्हें मिलती हैं जो अपनी कैटेगरी में लीडिंग पोजिशन पर होते हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि ज्यादातर क्रिएटर ऐसे हैं जो महिने में 18 हजार ही कमा पा रहे हैं। छोटे क्रिएटर साल में 3.80 लाख के लेवल तक पहुंच पाए हैं। वहीं दस लाख से अधिक सब्सक्राइबर वाले दिल खोलकर मेहनत और ब्रांड डील्स के जरिए महीने में 50 हजार के लेवल को पार कर पा रहे हैं। लेकिन 50 हजार के लेवल तक पहुंचने वाले बहुत ही दुर्लभ हैं। भारत में एड रेवेन्यू एक हजार व्यूज पर 50 रुपये से 200 रुपये ही होता है। महीने में यदि एक लाख व्यू मिल रहे हैं तो व्यूअर की लोकेशन और प्रॉफाइल के आधार पर 5,500-20,000 रुपये तक की कमाई होती है। अब नए बिजनस मॉडल उभर रहे हैं जिनमें डायरेक्ट शॉपिंग, वर्चुअल गिफ्ट, मेंबरशिप और एफीलिएटेड मार्केटिंग आदि नए रेवेन्यू सोर्स के रूप में उभर रहे हैं। फैशन, ब्यूटी, फूड़, वीडियो गेम और एंटरटेनमेंट का कॉन्टेंट सबसे ज्यादा बन रहा है लेकिन फाइनेंस, एजुकेशन और टेक्नोलॉजी कॉन्टेंट की कैटेगरी भी दूसरे और तीसरे दर्जे के शहरों में बढ़ रही है। रिपोर्ट में कहा है कि भारत में कॉन्टेंट क्रिएटर साल में 350-400 बिलियन डॉलर के शॉपिंग खर्च को इंफ्लूएंस कर रहे हैं जो 2030 तक 1 ट्रिलियन डॉलर हो जाएगा। क्रिएटर्स का डायरेक्ट रेवेन्यू 20-25 बिलियन डॉलर है जो इस दशक में 5 गुना हो जाने की उम्मीद है।

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हर यूट्यूबर अमीर नहीं होता: बीसीजी

 एयरटेल का वो जिंगल याद है ना...हर एक फ्रेंड जरूरी होता है। लेकिन बीसीजी ने कहा है कि हर एक यूट्यूबर अमीर नहीं होता। बीसीजी दुनिया की दिग्गज बिजनस कन्सल्टेंट कंपनी है। हालांकि भारत में डिजिटल कॉन्टेंट क्रिएटर्स की दुनिया गोल्डफीवर (दीवानगी) जैसी लगती है। लेकिन कांच के पार की सच्चाई इतनी चमकीली नहीं है। वीडियो वायरल हो जाते हैं पर कमा कितने क्रिएटर पाते हैं। बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप (बीसीजी) की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत के 20-25 लाख कॉन्टेंट क्रिएटर हैं लेकिन इनमें से केवल 8-10 परसेंट ही सही तरह से कमाई कर पा रहे हैं। बाकी 90 परसेंट मामूली ही कमा पाते हैं या फिर महीने के आखिर में खाली हाथ रह जाते हैं। तो सवाल है कि 90' क्रिएटर खाली हाथ क्यों हैं। रिपोर्ट कहती है लाखों लोग ऐसे हैं जो अपनी ऑडियंस तैयार करने की कोशिश में लगे रहते हैं लेकिन कुछ ही अपने चैनल को स्थायी आमदनी का जरिया बना पाने में कामयाब हो पा रहे हैं। ज्यादातर क्रिएटर ऐसे हैं जो यूट्यूब से मिलने वाले एड रेवेन्यू और मिल गई तो ब्रांड डील पर निर्भर रहते हैं। ब्रांड डील भी उन्हें मिलती हैं जो अपनी कैटेगरी में लीडिंग पोजिशन पर होते हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि ज्यादातर क्रिएटर ऐसे हैं जो महिने में 18 हजार ही कमा पा रहे हैं। छोटे क्रिएटर साल में 3.80 लाख के लेवल तक पहुंच पाए हैं। वहीं दस लाख से अधिक सब्सक्राइबर वाले दिल खोलकर मेहनत और ब्रांड डील्स के जरिए महीने में 50 हजार के लेवल को पार कर पा रहे हैं। लेकिन 50 हजार के लेवल तक पहुंचने वाले बहुत ही दुर्लभ हैं। भारत में एड रेवेन्यू एक हजार व्यूज पर 50 रुपये से 200 रुपये ही होता है। महीने में यदि एक लाख व्यू मिल रहे हैं तो व्यूअर की लोकेशन और प्रॉफाइल के आधार पर 5,500-20,000 रुपये तक की कमाई होती है। अब नए बिजनस मॉडल उभर रहे हैं जिनमें डायरेक्ट शॉपिंग, वर्चुअल गिफ्ट, मेंबरशिप और एफीलिएटेड मार्केटिंग आदि नए रेवेन्यू सोर्स के रूप में उभर रहे हैं। फैशन, ब्यूटी, फूड़, वीडियो गेम और एंटरटेनमेंट का कॉन्टेंट सबसे ज्यादा बन रहा है लेकिन फाइनेंस, एजुकेशन और टेक्नोलॉजी कॉन्टेंट की कैटेगरी भी दूसरे और तीसरे दर्जे के शहरों में बढ़ रही है। रिपोर्ट में कहा है कि भारत में कॉन्टेंट क्रिएटर साल में 350-400 बिलियन डॉलर के शॉपिंग खर्च को इंफ्लूएंस कर रहे हैं जो 2030 तक 1 ट्रिलियन डॉलर हो जाएगा। क्रिएटर्स का डायरेक्ट रेवेन्यू 20-25 बिलियन डॉलर है जो इस दशक में 5 गुना हो जाने की उम्मीद है।


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