चीन की कंपनी शीन और भारत की रिलायंस हाथ मिला रही हैं। दोनों का प्लान अल्ट्रा फास्ट फैशन के ग्लोबल मार्केट में धमाल मचाने का है। अल्ट्रा-फास्ट फैशन यानी हर सप्ताह नया डिजाइन लॉन्च करना। एक स्टाइल के बहुत कम आइटम बनाना। इसमें डिजाइन से मार्केट तक का पूरा साइकल 2 से 4 सप्ताह में ही पूरा हो जाता है। चूंकि अल्ट्रा-फास्ट फैशन की प्राइस रेंज 200 से 500 रुपये ही होती है इसलिए माना जाता है कि यूजर इन्हें बहुत जल्दी रिजेक्ट कर देता है और ये कपड़े फिर लैंडफिल में पहुंचकर पर्यावरण को नुकसान पहुंचाते हैं। कुछ महीने पहले शीन लंदन में आईपीओ लाने वाली थी। लेकिन बंधुआ मजदूरों द्वारा उइघर इलाके से उपजाया गया कॉटन खरीदने, सप्लाई चेन में ट्रांसपेरेंसी नहीं होने और पर्यावरण मानकों की अनदेखी करने के चलते दुनियाभर की सिविल सोसायटी ने शीन की बड़ी आलोचना की थी। मामला इतना गर्म हुआ कि शीन को लंदन में लिस्टिंग के प्लान को दाखिल दफ्तर करना पड़ गया और अब कंपनी हांगकांग में आईपीओ लाने के प्लान पर काम कर रही है। शीन की ही तरह जारा और एचएंडएम भी अल्ट्रा फास्ट फैशन कैटेगरी में ही ऑपरेट करती हैं। दुनिया का सबसे बड़ा गारमेंट लैंडफिल मेक्सिको में है जहां रोजाना 600 टन पुराने और कम इस्तेमाल हुए कपड़े डंप किए जाते हैं। जापान के सबसे बड़े फास्ट फैशन ब्रांड यूनिक्लो का मार्केट कैप 105 बिलियन डॉलर है और कंपनी का रेवेन्यू 20 बिलियन डॉलर का है। दूसरी ओर फ्रांस की सीनेट ने अल्ट्रा-फास्ट फैशन को कंट्रोल करने के लिए एक कानून में बदलाव किया है। इस कानून के लागू होने पर शीन और तेमू जैसे तेजी से बढ़ते चीनी ई-कॉमर्स प्लेटफॉम्र्स विज्ञापन नहीं कर पाएंगे। इस कानून के जरिए फ्रांस टेक्सटाइल इंडस्ट्री के पर्यावरणीय प्रभाव को कम करना चाहता है। आलोचकों का कहना है कि इस कानून में अल्ट्रा फास्ट फैशन और क्लासिक फास्ट फैशन के बीच अंतर किया गया है। जारा और किआबी जैसे यूरोपिय ब्रांड्स पर कम सख्ती होगी। सीनेट कमेटी के चेयरमैन ज्यां फ्रांस्वा लोंजिओ ने कहा अब शीन और तेमू जैसी फास्ट फैशन कंपनियों को टार्गेट करना आसान हो जाएगा। हालांकि इस कानून के दायरे से यूरोपीय रेडी-टू-वियर सेक्टर की कंपनियों को संरक्षण दिया गया है। बेहद सस्ते प्रोडक्ट्स से मिल रहे कंपीटिशन के कारण फ्रांस के कई बड़े ब्रांड्स भयंकर क्राइसिस में हैं। फ्रांस के रेडी टू वीयर ब्रांड जेनीफर और नैफनैफ दोनों दिवालिया होने के करीब पहुंच चुके हैं। इस कानून के तहत फास्ट और अल्ट्रा फास्ट फैशन कंपनियों पर पर्यावरणीय मानदंडों को न पूरा करने पर जुर्माना भी लगाएगा जो 2030 तक लागू होगा और प्रति गारमेंट 10 यूरो तक वसूला जा सकता है। चर्चा यह भी है कि कॉस्ट ऑफ प्रॉडक्शन पर 50 परसेंट तक जुर्माना लगाया जा सकता है।