भारत में फ्रेंच फ्राइज की शुरुआत 1992 में अमेरिकी प्रोसेस्ड फूड कंपनी लैम्ब वेस्टन ने की थी। इसका स्वाद ऐसा मूंह पर चढ़ा कि 2000 के दशक के मध्य तक भारत में सालाना 5 हजार टन से अधिक फ्रेंच फ्राइज इंपोर्ट होने लगी थी। वर्ष 2010-11 में यह आंकड़ा 7,863 टन तक पहुंच गया। लेकिन 2023-24 में भारत ने फ्रेंच फ्राइज का इंपोर्ट तो •ाीरो किया ही बल्कि 1,35,877 टन फ्रेंच फ्राइज का एक्सपोर्ट कर दिया। इसकी एक्सपोर्ट वैल्यू होती है 1,478.73 करोड़ रुपये। एक दौर ऐसा आया कि भारत में फ्रेंच फ्राइज की सालाना डिमांड 1 लाख टन तक पहुंच गई। भारत अब आसियान देशों जैसे फिलीपींस, थाईलैंड, मलेशिया, इंडोनेशिया और वियतनाम को बड़े पैमाने पर फ्रेंच फ्राइज एक्सपोर्ट करता है। सऊदी अरब, यूएई, ओमान, जापान और ताइवान भी भारतीय फ्रेंच फ्राइज के बड़े कस्टमर हैं। हायफन फूड्स, इसकॉन बालाजी फूड्स, फनवेव फूड्स और चिलफिल फूड्स जैसे भारतीय ब्रांड फ्रेंच फ्राइज एक्सपोर्ट के बड़े प्लेयर हैं। इंपोर्टर से एक्सपोर्टर तक का रास्ता तय करने के लिए भारत के आलू किसानों ने प्रोसेसिंग-ग्रेड आलू जैसे सैंटाना, इनोवेटर, लेडी रोसेटा, और कुफरी फ्रायसोना की खेती शुरू की। इनमें से कई वैरायटी शिमला में केंद्र सरकार की लैब केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान द्वारा डवलप की गई हैं। कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग ने इसमें बड़ी भूमिका निभाई। जैसे हायफन फूड्स इस सीजन में 7,250 किसानों से 4 लाख टन आलू 13.8 प्रति किलो के हिसाब से खरीदेगी। रिपोर्ट कहती है कि कॉन्ट्रेक्ट फार्मिंग के चलते प्रति एकड़ 12500 रुपये की बचत हो रही है। फ्रेंच फ्राइज का ग्लोबल मार्केट 2024 में 17.45 बिलियन डॉलर से बढक़र 2025 में 18.54 बिलियन डॉलर हो जाएगा। इसमें भारत का शेयर 2023 के 1.38 बिलियन डॉलर से बढक़र 2034 तक $2.25 बिलियन डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है।