कई ब्रोकर्स व फंड मेनेजर्स ने चिंता जताई है कि स्टॉक एक्सचेंजों के डेरिवेटिव सेगमेंट में अभी भी रिटेल इंवेस्टरों को भारी नुकसान हो रहा है। मार्केट रेगूलेटर द्वारा पिछले कुछ समय में डेरिवेटिव सेगमेंट में रिटेल पाॢटसिपेशन को सीमित करने के लिए उठाए गए कदमों के बावजूद ऐसा हो रहा है। आईसीआईसीआई डायरेक्ट के मुताबिक इंडियन परिवारों की फाइनेंशियल सेविंग्स डेरिवेटिव सेगमेंट के जरिए सट्टेबाजी में चैनलाइज हो रही है जिससे उन्हें भारी नुकसान हो रहा है। इसी तरह एक रिसर्च ड्रिवन एआई पॉवर्ड इंवेस्टमेंट प्लेटफॉर्म ट्रेडोनोमी एआई के फाउंडर का कहना है कि रिटेल इंवेस्टरों को हर दिन प्रमुख रूप से ऑप्शंस सेगमेंट में भारी घाटा हो रहा है। प्रभुदास लीलाधर के ब्रोकिंग प्रमुख का मानना है कि सेबी द्वारा उठाए गए कदम डेरिवेटिव सेगमेंट रिटेल पार्टिसिपेशन को कम करने में नाकाफी साबित हो रहे हैं। उल्लेखनीय है कि सेबी की ही रिपोर्ट के मुताबिक डेरिवेटिव सेगमेंट में 10 में से 9 रिटेल इंवेस्टरों को एवरेज 50,000 रुपये का नेट घाटा होता है। इसके अलावा नेट घाटे के 28 प्रतिशत के बराबर ट्रांजेक्शन कॉस्ट भी उन्हें वहन करनी पड़ती है। कुछ ब्रोकर्स का मानना है कि मिनिमम इंवेस्टमेंट लिमिट के रूप में डेरिवेटिव ट्रेडिंग हेतु रिटेल इंवेस्टरों के लिए Entry-Barriers होने चाहिए। एक फंड मेनेजर के अनुसार इंडियन परिवार अपने फंड्स को सेफ प्रोडक्ट्स में डालने की जगह हर वर्ष डेरिवेटिव ट्रेडिंग में 50,000 से 60,000 करोड़ रुपये खो रहे हैं। बड़ी संख्या में अभी भी रिटेल इंवेस्टर बगैर नॉलेज के डेरिवेटिव सेगमेंट में सट्टेबाजी कर रहे हैं। जून 2024 में ही आरबीआई ने अपनी फाइनेंशियल स्टेबिलिटी रिपोर्ट में डेरिवेटिव मार्केट के टर्नओवर में भारी बढ़ोतरी होने के तथ्य को उजागर किया था। रिपोर्ट में कहा गया था कि प्रीमियम के लिहाज से इंडेक्स ऑप्शंस में होने वाला टर्नओवर वर्ष 2018 में 4.5 लाख करोड़ रुपये के मुकाबले वर्ष 2024 में 140 लाख करोड़ रुपये के लेवल पर पहुंच गया। डेरिवेटिव सेगमेंट में ओवरऑल टर्नओवर भी इस दौरान 210 लाख करोड़ रुपये से बढक़र 500 लाख करोड़ रुपये हो गया। डेरिवेटिव सेगमेंट में ट्रेड करने वाले रिटेल इंवेस्टरों का शेयर भी इस पीरियड में मात्र 2 प्रतिशत से बढक़र 41 प्रतिशत के लेवल पर पहुंच गया।
