पिछले 5-7 सालों से पूरी दुनिया को इस बात से डराया जा रहा है कि AI (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) की नई टेक्नोलॉजी आने वाले समय में 50 प्रतिशत से ज्यादा नौकरियों को खत्म कर देगी लेकिन इतने सालों बाद एक भी उदाहरण ऐसा सामने नहीं आया जिसमें दुनिया में कही भी किसी कारोबार या सरकार में काम करने वाले 50 प्रतिशत लोगों का काम AI ने संभाल लिया हो और उन्हें नौकरी से हाथ धोना पड़ा हो। ज्यादातर कारोबार AI के पक्ष में बनाए जा रहे माहौल के कारण व खुद को बनाए रखने के लिए AI जरूरी है, इस भ्रम के चलते ्रढ्ढ का उपयोग मजबूरी में करने लगे हैं भले ही इसका उन्हें कोई खास फायदा नहीं हो रहा हो। आजकल हम कुछ टीवी चैनलों पर AI से बनाए गए वीडियो, फोटो व एंकर को बोलते देखने लगे हैं जो आपको पसंद आ रहा है या नहीं इसपर आप विचार करें पर यह काम अभी experiment के तौर पर ही किया जा रहा है जो आगे जारी रहेगा या नहीं इसपर भरोसा कम ही है। इतिहास गवाह है कि जब भी कोई नई टेक्नोलॉजी आई है तो लोगों ने उसे स्वीकार करते हुए उसके हिसाब से खुद को तैयार किया है। AI के मामले में भी ऐसा ही होगा क्योंकि AI का असर होता तो दुनिया में लाखों-करोड़ों नौकरियां खत्म होने की शुरुआत बहुत पहले ही हो जाती। यह सच है कि हमारे सामने ढेरों ऐसे उदाहरण है जहां नई टेक्नोलॉजी ने काम करने वालों की जगह ली है लेकिन इससे होने वाले पॉजिटिव असर को इंटेलिजेंट लोग व एक्सपर्ट जानते हुए भी लोगों को नहीं बताते क्योंकि उनका काम व शक्ति लोगों में डर फैलाने और उसका समाधान बताते हुए तरह-तरह के सुझाव, रिपोर्ट, रिसर्च, सलाह देने जैसे इंटेलिजेंट काम करने से बढ़ती है और इस काम के लिए करोड़ों रुपये बनाए जाते हैं। किसी जमाने में लिफ्ट को चलाने के लिए ऑपरेटर हुआ करता था जिसका काम ऑटोमेटिक लिफ्ट आने से खत्म हो गया। इसी तरह खेती में ट्रेक्टर के आने से किसान व मजदूरों का रोल कम हुआ और सिनेमा में प्रोजेक्टर को संभालने वालों का भी अब कोई काम नहीं रहा।
ऐसे कई उदाहरण है जिनमें काम करने वालों की जरूरत नहीं रही पर फिर भी बेरोजगारी उतनी नहीं बढ़ी जितना नई टेक्नोलॉजी के कारण माना जा रहा था। AI अगर जॉब्स के लिए खतरा है, प्रोडक्टिविटी बढ़ाती है या बचत करती है तो यह भी तय है कि जो बचत होगी वह किसी न किसी रूप में फिर से इकोनोमी में खर्च के रूप में जुड़ेगी क्योंकि यह बचत तकिए के नीचे संभालकर रखने वाली नहीं होगी। इस बचत से लोगों की सैलेरी बढ़ेगी, कारोबारों का प्रॉफिट बढ़ेगा व बाजार में कीमतें कम होगी। इससे नए प्रोडक्ट व सर्विस की डिमांड बढ़ेगी जिससे जॉब के नए अवसर पैदा होंगे। इन जॉब्स में कुछ नए तरह के काम वाले होंगे पर ज्यादातर पहले जैसे होंगे जिनकी डिमांड लोगों में बढ़ेगी। उदाहरण के लिए पर्सनल ट्रेनर, जिम, ब्यूटीकेयर, होटल, रेस्टोरेंट, ट्रेवल आदि की डिमांड बढ़ रही है जिसके चलते ऐसे कई सेक्टरों में नए जॉब बड़ी संख्या में पैदा होंगे।इसके अलावा भले ही कैसी भी टेक्नोलॉजी आ जाए पर कुछ कामों के लिए तो इंसान की जरूरत हमेशा रहेगी। बच्चों को स्कूल ले जाने के लिए अगर Self Driving बसे या कारे आती है तो बच्चों का ध्यान रखने के लिए व्यक्ति की जरूरत होगी। AI से चलने वाले रोबोट अपराधियों को पकडक़र पुलिस का काम कम नहीं कर पाएंगे। यही स्थिति कार्पेंटर, प्लम्बर, फैशन मॉडल, AI मैकेनिक, धर्म गुरू या पुजारी, स्पोटर्स कोच, एयर होस्टेस जैसे ढेरों तरह का काम करने वालों की रहेगी। हमें यह समझना होगा जिस AI का हव्वा खड़ा किया जा रहा है वास्तव में उससे प्रभावित होने वाले जॉब्स की संख्या दूसरे पैदा होने वाले जॉब्स के मुकाबले बहुत कम लगती है। ऊंची पोजीशन या प्रोफेशन में निर्णय लेने के साथ-साथ बिजनस प्लान बनाने, पॉलिसी तय करने और इंवेस्टमेंट करने जैसे मुश्किल कामों को करने वालों की जगह AI कभी नहीं ले पाएगी। हाल ही में Appleकंपनी ने अपनी स्टडी में AI को The Illusion of thinking (सोचने का भ्रम) कहा है और इस स्टडी को करने वाले 6 टॉप रिसर्च एक्सपर्टो का मानना है कि AI की ‘सोचने’ की शक्ति के जितने दावे किए जा रहे हैं, वास्तव में AI उन दावों के आसपास भी नहीं पहुंच पाई है। इतना ही नहीं एक छोटा बच्चा थोड़ी सी मदद से जिन सवालों के हल ढूंढ लेता है उन सवालों के जवाब भी AI के सुपर इंटेलिजेंट मॉडल नहीं दे पा रहे हैं। AI को डवलप करने वाली कंपनियों सहित पूरा तंत्र इसे सफल बनाने के काम में लगा हुआ है पर हमें इतिहास से सीखते हुए व Common Sence का उपयोग करके AI की Limit (सीमा) पर भी फोकस रखना चाहिए क्योंकि हर टेक्नोलॉजी कही न कही एक सीमा से बंधी रहती है जो किसी आश्चर्य से कम नहीं है और यह चमत्कार कुदरत (Natur) की शक्ति का कमाल ही कहा जाएगा जिसके कारण इंसान की अहमियत व जरूरत हर क्रांतिकारी इन्नोवेशन के बाद भी कम नहीं होती।