पिछले महीने जेएसडब्ल्यू द्वारा आईबीसी कोड के तहत भूषण स्टील का अधिग्रहण करने को सौदे को सुप्रीम कोर्ट द्वारा खारिज कर देने के बाद सरकार अब इस कानूम में बदलाव करने का प्लान कर रही है। रिपोर्ट में कहा गया है कि किसी स्वीकृत इनसॉल्वेन्सी केस, जिसमें रिजॉल्यूशन प्लान लागू हो चुका है को चैलेंज करने में कुछ शर्त तय की जाने की उम्मीद है। सूत्रों के हवाले से आई रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकार ऐसे नियम लाने पर विचार कर रही है, जिसके तहत यदि किसी इनसॉल्वेंट कंपनी का प्रमोटर किसी प्लान को यदि कोर्ट में चैलेंज करना चाहता है, तो पहले उसे अपने बकाया को चुकाना होगा। इसके अलावा, ऐसे मामलों में जहां एक रिजॉल्यूशन प्लान लागू हो चुका है और बाद में उसमें कोई त्रुटि (फ्लॉ) पाई जाती है। ऐसे मामले में सरकार यह प्रस्ताव करने पर विचार कर रही है कि रिजॉल्यूशन एप्लिकेंट को हर्जाना देना पड़ेगा। इस तरह प्रभावित पक्षों के पास कानूनी सहायता लेने का विकल्प तो होगा लेकिन इससे पूरी इनसॉल्वेन्सी प्रक्रिया को खतरा नहीं होगा। वर्तमान में, किसी स्वीकृत रिजॉल्यूशन प्लान के खिलाफ आपत्तियां नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल में 30 दिनों के अंदर दर्ज की जा सकती हैं। अगर मामला अपीलीय ट्रिब्यूनल में जाता है तो 15 दिन की अतिरिक्त मोहलत मिलती है। सरकार का मानना है कि नए संशोधनों के जरिए फ्रिवोलस (मामूली) आपत्ति लगाकर इस पूरी प्रक्रिया को पटरी से उतारने से रोका जा सकेगा। रिपोर्ट में कहा गया है कि फिलहाल कानून एवं न्याय मंत्रालय इन संशोधनों की समीक्षा कर रहा है। मई में, जब सुप्रीम कोर्ट ने जेएसडब्ल्यू स्टील द्वारा दिए गए भूषण पावर एंड स्टील लिमिटेड के रिजॉल्यूशन प्लान लगभग छह साल बाद खारिज कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश कई पक्षों की आपत्तियों के बाद आया, जिनमें भूषण पावर एंड स्टील के प्रमोटर संजय सिंघल भी शामिल थे।