सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा है कि यदि चेक बाउंस मामले में दोषी व्यक्ति शिकायतकर्ता के साथ समझौता कर लेता है तो वह सजा से बच सकता है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि जब दोनों पक्षों के बीच समझौता पत्र पर हस्ताक्षर हो जाते हैं, तो फिर धारा 138 नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट के तहत दी गई सजा बरकरार रखने का कोई कारण नहीं है। जस्टिस अरविंद कुमार और संदीप मेहता की बेंच ने कहा कि चेक बाउंस एक सिविल अपराध है, जिसे विशेष रूप से समझौतायोग्य बनाया गया है। पीठ ने पहले दिए गए एक फैसले का हवाला देते हुए कहा, इस अदालत ने धारा 138 एनआई एक्ट के अपराध को ...सिविल भेडिय़ा की खाल में आपराधिक भेड़... कहा था, जिसका अर्थ है कि यह विवाद मूल रूप से निजी प्रकृति के होते हैं जिन्हें नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स की विश्वसनीयता बनाए रखने के लिए आपराधिक अधिकार क्षेत्र में लाया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के उस फैसले को रद्द कर दिया जिसमें समझौते के बाद भी चेक बाउंस के मामले में दोषसिद्धि को खत्म करने से इनकार कर दिया गया था। कोर्ट ने कहा कि जब दोनों पार्टियां आपसी सहमति से समझौता कर विवाद को खत्म कर लेते हैं तो अदालतें इस प्रक्रिया पर अपनी इच्छा थोप नहीं सकतीं। बेंच ने कहा जब शिकायतकर्ता समझौता पत्र पर हस्ताक्षर कर लेता है और बकाया राशि का फुल एंड फाइनल सैटलमेंट स्वीकार कर लेता है तो धारा 138 के तहत कार्यवाही बेमानी हो जाती है।