मर्करी यानी पारा...जरा सी गर्मी मिली नहीं कि चढऩे लगता है। उसी तरह मिनट में तोला मिनट में माशा वाले लोगों को मरक्यूरियल पर्सनैलिटी कहा जाता है जैसे डॉनाल्ड ट्रंप। इन पर भरोसा भी कम ही होता है और इसी ट्रस्ट डेफिसिट के कारण जर्मनी में भी बहस चल रही है...अमेरिका से अपना गोल्ड वापस लाने की। जब तक वाइट हाउस में ट्रंप नहीं थे तब तक केवल राइटविंग पार्टियां ही ऐसी मांग कर रही थीं लेकिन अब आम जर्मन के मन में इनसिक्यॉरिटी सी पैदा हो रही है। जर्मनी से सेंट्रल बैंक बुंडेसबैंक के अनुसार 3352 टन के सोवरीन गोल्ड रिजव्र्स के साथ यह दूसरे पायदान पर है। लेकिन इसका एक तिहाई कोल्ड वॉर और दूसरे वल्र्डवॉर के बाद से ही अमेरिका में फैडरल रिजर्व की तिजोरियों में बंद है। अमेरिका पर इतना भरोसा था कि जर्मनी ने पिछले सालों में इसे संभाला तक नहीं लेकिन ट्रेड और सिक्यॉरिटी को लेकर पुराने पार्टनर देशों से ट्रंप की भिडंत के कारण अब ट्रस्ट डेफिसिट बढ़ रहा है। आपको याद होगा पिछले लोकसभा चुनाव के ऐन बीच में रिजर्व बैंक ने लंदन से अपना सौ टन सोना वापस भारत ले आया था। अपना गोल्ड वापस लाओ...की पॉलिटिकल डिबेट में अब आम जर्मन भी कूद पड़े हैं। पिछले दिनों जर्मनी के टेक्सपेयर्स फेडरेशन ने बुंडेसबैंक और फाइनेंस मिनिस्ट्री को चिट्ठी लिखकर अमेरिका से गोल्ड वापस लाने की मांग की है। इसके वाइस प्रेसिडेंट माइकल याइगर कहते हैं कि ट्रंप तो फैडरल रिजर्व को भी कंट्रोल करना चाहते हैं, इसका सीधा अर्थ है कि वे जर्मन गोल्ड रिजव्र्स को भी कंट्रोल कर रहे हैं..."It's our money, it should be brought back." यूरोपियन पार्लियामेंट में जर्मनी की रूलिंग क्रिश्चियन डेमोक्रेटिक पार्टी के मेंबर मार्कस फर्बर ने कहते हैं कि United States was "no longer the reliable partner it used to be." वे कहते हैं ट्रंप एरेटिक यानी अस्थिर व्यक्ति हैं और पता नहीं कब वे फॉरेन गोल्ड रिजव्र्स के लिए भी कोई क्रिएटिव आइडिया ले आएं। ऐसे में बुंडेसबैंक की गोल्ड रिजव्र्स पॉलिसी बदलती जियोपॉलिटिक्स के हिसाब से होनी चाहिए।
पिछले दिनों जर्मनी के टीवी चैनलों पर भी जर्मनी के गोल्ड के सुरक्षित होने पर स्टोरी चलाई गई थीं। यदि जर्मनी अपना गोल्ड अमेरिका से शिफ्ट करने का संकेत भी देता है जो अमेरिका की इकोनॉमी और जर्मनी की पॉलिटिक्स में भूचाल आ जाएगा। क्योंकि इसे अमेरिका के फैडरल रिजर्व की स्वतंत्रता पर जर्मनी का भरोसा घटना माना जाएगा। हालांकि यूरोपियन सेंट्रल बैंक ने पिछले सप्ताह ही अमेरिका फैडरल रिजर्व को अपना रिलायबल पार्टनर (भरोसेमंद साझीदार) बताया है लेकिन ट्रंप जिस तरह से फैडरल रिजर्व के चेयरमैन जेरोम पॉवेल पर अटैक कर रहे हैं उससे भरोसा जरूर हिला है। आप जानते हैं यूक्रेन पर हमला करने के बाद अमेरिका और यूरोप के देशों ने रूस के 300 बिलियन डॉलर के फॉरेन असैट्स को फ्री•ा कर दिया है। जर्मनी का ज्यादातर गोल्ड पचास और साठ के दशक में एक्सपोर्ट बूम के दौरान का है। गोल्ड को अमेरिका में रखकर जर्मनी इसे रूस के हाथ पडऩे से बचाना चाहता था। इससे जर्मनी और अमेरिका की मिलिटरी पार्टनरशिप भी मजबूत हुई। अमेरिका के आज भी जर्मनी के आस-पास दर्जनों मिलिटरी अड्डे हैं। सोवियत रूस के बिखर जाने के बाद वर्ष 2014 से 2017 के बीच जर्मनी ने 300 टन गोल्ड अमेरिका से वापस मंगा लिया था। लेकिन रूस के यूक्रेन पर हमले को यूरोप के लिए खतरा माना जा रहा है ऐसे में जर्मनी में फिर एक बार जियोपॉलिटिक्स में उलझा हुआ महसूस कर रहा है। अमेरिका के अलावा जर्मनी का गोल्ड रिजर्व बुंडेसबैंक के फ्रेंकफर्ट मुख्यालय के साथ ही बैंक ऑफ इंगलैंड लंदन में भी है। जर्मनी के एक सांसद फ्रित्ज गुएंत्•ालर के अनुसार हालांकि अमेरिका के फैडरल रिजर्व पर शक करने का कोई कारण नहीं है लेकिन बुुंडेसबैंक को बार-बार इसकी जांच जरूर कर लेनी चाहिए।
