इकोनोमी, कारोबार व बाजारों की स्थिति को तरह-तरह के डेटा व रिपोर्टों से समझने का दावा करने वाले इंटेलिजेंट लोगों की संख्या कम ही रहती है लेकिन ऐसे लोग बड़ी संख्या में है जिन्हें आम आदमी कहा जाता है और जो GDP, Inflation, Interest Rate, Export-Import, Growth Rate आदि जैसे ढेरों डेटा से तालमेल नहीं बिठा पाते पर इनकी Common Sense इन्हें इकोनोमी व बाजारों की स्थिति को समझने के
दिलचस्प पर सही बैठने वाले तरीको से मदद करती है।क्या फिल्मों, म्यूजिक व फैशन में आ रहे बदलावों से पता लगाया जा सकता है कि इकोनोमी का रुख किस ओर है? इसी तरह हमारे Culture (संस्कृति) में हो रहे शिफ्ट से क्या अंदाजा मिलता है कि हम बेहतर कल की ओर आगे बढ़ रहे हैं? इकोनोमी में सुस्ती या तेजी की बातें जब घर-घर में होने लगे तो क्या यह रीयल इकोनोमी के लिए अच्छा संकेत है या बुरा? कोई माने या न माने पर ऐसे सवालों के जवाबो का इस्तेमाल इकोनोमी के माहौल को समझने के लिए किया जा रहा है। यह भी सच है कि परिवारों और कारोबारों में इकोनोमी पर चिंता होने से खर्चों में कटौती की सोच डवलप होने लगती है जो इकोनोमी की कमजोरी को ज्यादा बढ़ावा देने वाली ही साबित हो जाती है। यही कारण है कि एक्सपर्टों का एक ग्रुप कमजोर इकोनोमी की बातों को ही आने वाले समय का अंदाजा देने का सबसे सटीक उदाहरण मानता है क्योंकि इन बातों में लोगों की सोच व फीलिंग सही-सही सामने आ जाती है। सरकारी डेटा पर कम होते भरोसे के कारण इकोनोमी की सही स्थिति का पता लगाने के लिए पूरी दुनिया में तरह-तरह के ट्रेंड व डेटा को ट्रेक करने का चलन पिछले कुछ वर्षों में तेजी से बढ़ा है जिन्हें यंग जेनरेशन ज्यादा काम में लेने लगी है। खराब इकोनोमिक माहौल को पुरुषो की गिरती अंडरवियर की सेल्स से जोडक़र देखा गया है तो साथ ही बंग्लादेश में हुए बटर (मक्खन) के प्रोडक्शन से शेयर बाजारों की रिटर्न को समझने व इनके आपस में समान रूप से बिहेव करने की चर्चाए भी रही है।असल में लोगों को ऐसे उदाहरणों की तलाश रहती है जिन्हें वे आसानी से समझ सकते हो। अगर कोई आम आदमी इकोनोमी को समझने की कोशिश करता भी है तो वह रिटर्न और ग्रोथ के डेटा पर आकर अटक जाता है। कपड़ों की बदलती स्टाइल व खाने-पीने में सावधानी के बढते मामलों को भी इकोनोमी को समझने के लिए काम में लिया जा रहा है। इसी तरह जरूरी प्रोडक्ट की गिरती सेल्स व छोटे पैकेट की ज्यादा बिक्री को इकोनोमी में सुस्ती से जोड़ा जाता है यानि जरूरी सामान को खरीदने में अगर लक्जरी खरीदने की फीलिंग होने लगे तो वह इकोनोमी के लिए खराब संदेश देती है।nऑफिस में Casual कपड़ों की जगह Formal कपड़े पहनने के बदलते ट्रेंड को समझाते हुए एक व्यक्ति ने कहा कि आजकल लोग अपने जॉब को कम सुरक्षित मानने लगे हैं इसलिए कपड़ों से खुद को अच्छा दिखाने पर फोकस किया जा रहा है। फैशन को इकोनोमी से जुड़ा सबसे असरदार Indicator (सूचक) माना गया है जो बताती है कि लोग कैसा सोच रहे है। कुल मिलाकर इकोनोमी के डेटा के अलावा रीयल इकोनोमी व बाजारों की स्थिति को समझने और जानने के तरीके हमारे आस-पास कई रूपों में छुपे हुए हैं जिन्हे लम्बे समय तक ट्रेक करते रहने से उनका इकोनोमी के हिसाब से व इकोनोमी का उनके हिसाब से बिहेवियर का अंदाजा मिलने लगता है। हमारे देश में तेजी से बढ़ती शराब, सिगरेट की सेल्स व घर से बाहर खाने का ट्रेंड क्या संकेत देता है इसपर आप विचार करे लेकिन साथ ही होटलों की बुकिंग व हवाई यात्रियों की बढ़ती संख्या भी कुछ बता रही है जिसे ध्यान में रखकर देखने से आने वाला समय अच्छा ही कहा जाएगा भले ही इन सभी के बीच छुपी व दबाई जा रही कई कड़वी सच्चाईयां हो। यह समय की व बदलते कारोबारी माहौल की मांग कही जा सकती है कि डेटा के अलावा आम लाइफस्टाइल के ट्रेंड्स पर भी बराबर नजर बनी रहे ताकि वास्तविकता से समय-समय पर सामना होने की संभावनाएं खत्म न हो पाए।